आज पुण्यतिथि-पंचम दा ने संगीत जगत में खींची थी अपनी
एक अलग लकीर,जिस पर आज की पीढ़ी भी शान से चल रही
दिलीप कुमार पाठक
हिन्दी सिनेमा में ‘पंचम दा’ के नाम से विख्यात राहुल देव बर्मन उर्फ ‘आर डी बर्मन’ अपने पिता के दौर में ही शोहरत की बुलन्दियों में पहुंच गए थे. पंचम दा के गीतों में शास्त्रीय संगीत, के साथ ही वेस्टर्न टच म्युज़िक का अनोखा प्रयोग देखने को मिलता है. सांस्कृतिक, भारतीय संगीत के साथ-आधुनिक संगीत का शानदार मिश्रण करते थे.
‘पंचम दा’ के गीतों में जितनी मनहूस शाम मिलेगी, उतनी ही उमंगमयी सुबह मिलेगी. बे करार करती हुई बोझल रातों की आहटें उनके गीत में तैरती मिल जाती है. एक ऐसा हरफ़नमौला संगीतकार विरले थे. जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपना एक नया ट्रेंड सेट किया. उदाहरण के लिए शंकर-जय किशन ने ‘बरसात’ फिल्म में संगीत की दुनिया में अपना खुद का एक सिग्नेचर लेकर आए.
बर्मन दादा,अपनी सिग्नेचर स्टाइल के लिए विख्यात थे, ओ पी नैयर भी अपनी सिग्नेचर स्टाइल के लिए प्रसिद्ध थे, इन सभी से हटकर ‘पंचम दा’ ने भारतीय संगीत के साथ वेस्टर्न संगीत का ऐसा संतुलन साधा, संगीत की दृष्टि से उनकी फिल्मों के संगीत को सुनकर अंदाजा लगाया जा सकता है, जो हर एक फिल्म एक अनोखा अध्याय रचती हैं.
‘चिंगारी कोई भड़के’ या ‘ओ मांझी रे अपना किनारा’ गीत सुनते हुए कोई भी दुःख को महसूस करते हुए डूब सकता है. ‘महबूबा महबूबा’ गूंजती-भारी आवाज़ में बह सकते हैं. ‘हमें तुमसे प्यार कितना’ जैसे उनके दर्द के नगमे सुनते हुए रूमानियत की दुनिया की सैर पर ले जाते हैं.
सत्तर के दशक तक हिन्दी सिनेमा पूरी तरह बदल गया था, जो ‘दम मारो दम’ की धुनों में झूमने लगा था, उस वक़्त संगीत के जानकार बगावती ‘पंचम दा’की खूब आलोचना करते कि बर्मन दादा जैसे शास्त्रीय संगीत को तरजीह देने वाले संगीतकारों के बेटे ‘पंचम’ लगता है आधुनिकता की चकाचौंध में लगता है, खुद के भारतीय संगीत को कहां जगह मिलेगी, वहीं ‘पंचम दा’ क्लासिकल संगीत रचते थे, लोगों के मुँह बंद हो जाते थे. पंचम दा के संगीत का कैनवास इतना बड़ा था कि किसी भी संगीत जानकारों के पास इसका मापक ही नहीं था.
पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. ‘पंचम दा’ बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने बचपन से ही अनूठी प्रतिभाएं सीख चुके थे. बचपन से ही तबला बजाने में पारंगत थे, तब उनकी दादी उनको प्यार से तबलू कहकर बुलाती थीं. बाद में उनको पंचम नाम दादा मोनी अशोक कुमार ने दिया था. दरअसल, संगीत के सुर ‘सा, रे, ग, म, प’ में ‘प’ का स्थान पंचवा है, और आर.डी बर्मन जब छोटे से बालक थे, रोते थे,उनकी आवाज ‘प’ वर्ण संगीत रचती थी. इस बात को भांपते हुए अशोक कुमार ने उन्हें पंचम कहना शुरू कर दिया. यह नाम इतना मशहूर हुआ कि वे फिर ‘पंचम दा’ के ही नाम से आरडी बर्मन विख्यात हुए.
महज़ 9 साल की उम्र में ‘पंचम दा’ने पहला गाना कंपोज किया था. बर्मन दादा ने अपने पुत्र से पूछा- ‘पंचम तुम ज़िन्दगी में क्या बनना चाहते हो? क्या करोगे बड़े होकर’? ‘पंचम दा’ ने कहा बाबा संगीतकार बनना हैं! सुनकर बर्मन दादा ने कहा कि क्या तुमने कोई धुन बनाई है?
यह कोई सीरियस बात नहीं थी, क्या नौ साल का बच्चा कोई धुन थोड़ा ही बना सकता है. पंचम ने अपने पिता से कहा मैंने दो साल पहले ही बनाया था. बर्मन दादा ने सुना तो सुनकर आवाक रह गए. ये गाना था ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ इस गाने को उनके पिता एसडी बर्मन दादा ने फिल्म ‘फन्टूश’ में उपयोग किया था. यह फिल्म 1956 में रिलीज हुई थी.
‘सर जो तेरा चकराए’ भी आरडी बर्मन ने स्कूल के दिनों में ही बनाया था.एसडी बर्मन ने वो गाना फिल्म ‘प्यासा’ 1957 में फिल्माया था. पर उसका क्रेडिट आरडी बर्मन को नहीं दिया. बाद में ‘पंचम दा’ ने बर्मन दादा से अपनी नाराज़गी जाहिर किया था,कि बाबा आपने मुझे क्रेडिट क्यों नहीं दिया.
सबसे पहले गुरुदत्त के असिस्टेंट फिल्मकार निरंजन ने 1959 में फिल्म ‘राज’ के लिए साइन किया था. उन्होंने दो गाने रिकॉर्ड भी किए. फिल्म का पहला गाना आशा भोंसले और गीता दत्त और दूसरा गाना शमशाद बेगम ने गाया था. अफ़सोस बाद में यह फिल्म बंद हो गई.
इसके बाद उनको पहला बड़ा मौका 1966 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ से मिला. फिल्म के हीरो शम्मी कपूर और निर्माता नासिर हुसैन नहीं चाहते थे कि आरडी इस फिल्म में संगीत दें. निर्देशक के जोर देने पर उन्होंने हां कर दी. फिल्म का संगीत सुपरहिट रहा और आर.डी. बर्मन बॉलीवुड स्थापित हो गए…
‘पंचम दा’पहले ऐसे कंपोज़र थे, जिन्होंने रेट्रो बीट को म्युजिक में लाकर कभी न पुराना होने वाला हमेशा प्रासंगिक रहने वाला संगीत दिया. रेल की पटरी पर संगीत, कप, प्लेटों, बर्तनों की ध्वनियों, आदि में संगीत की धुनें तैयार करते थे, तेज ध्वनियों में पश्चिम के संगीत के साथ क्लासिकल भारतीय संगीत का ऐसा मिश्रण किया, जिसका कैनवास इतना बड़ा है, कि बड़े – से बड़े संगीतकार हतप्रभ हो जाएं.
रेल की सीटी बजाने के साथ नायिका के नृत्य के साथ अपनी धुन का बेजोड़ मिश्रण करते थे, फिर गिटार पर अजीब-सी बेहोशी और तनाव पैदा करने वाला इफेक्ट बजना शुरू होता है. उस दौर में यह सब बहुत नए प्रयोग थे, पंचम विद्रोही कहे जाने के बाद भी अपनी तरह का संगीत रचते जा रहे थे.
उनके तेज संगीत की आवाज़ भी कई परतों को भेदती हुई गिटार और तबले की अनोखी शैली के साथ तबले के साथ गिटार की जुगलबंदी आधुनिक संगीत शास्त्रीय संगीत के समानांतर प्रतिस्पर्धा करने को बेचैन पंचम दा युवाओं के पसंदीदा संगीतकार बनते जा रहे थे. आज से लगभग पचास साल पहले ऐसी आधुनिक कम्पोज़िशन का प्रयोग हर किसी के बस की बात नहीं थी, ओपी नैयर के युग में शास्त्रीय संगीत को परवान चढ़ाने वाली आशा भोसले, बदलते हुए युग में पंचम दा’ के युग में झूमने वाले गीतों को खूब गाते हुए खुद भी अपनी दूसरी पारी में भी परवान चढ़ रही थीं.
पूरी तरह से क्लासिकल सिनेमा में शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाते हुए देव-राज-दिलीप का युग बदल चुका था, सत्तर के दशक तक सुपरस्टारों की बाढ़ आ गई थी, शम्मी कपूर एवं राजेश खन्ना भी देव-राज-दिलीप की विरासत को आगे ले जाने के लिए बढ़ रहे थे, रफ़ी साहब, मन्ना दा, हेमंत दा,मुकेश जी के बाद किशोर दा पार्श्व गायन में अपना युग शुरू करने वाले थे, इन सभी की सिनेमाई सफलता के कर्णधार ‘पंचम दा’ को ही माना जाता है.
Remembering the great music composers of all time #Rahul_Dev_Burman on his #Death_Anniversary 🙏.
From the 1960s to the 1990s,Burman composed musical scores for 331 films.
enjoy
Rare video of Rahul Dev Burman performing "Duniya me logon ko"..
YTL👇https://t.co/K03IPD8kC9 pic.twitter.com/4GM4ezBIo4
— #चित्रपट📽️🇮🇳 (@ChitrapatP) January 4, 2023
नियति बहुत पहले ही कुछ बातों को लिख देती है, ऐसे लगता है, कि नियति बर्मन दादा एवं उनके पुत्र ‘पंचम दा’ दोनों को नियति राजघराने से बहुत दूर ले जा रही थी. यह कल्पना की जाए कि अगर सब कुछ उसी तरह से चल रहा होता तो बर्मन दादा के पिता नवदीप चंद्र बर्मन अपनी रियासत के राजा बन गए होते तो संभवत हम एसडी बर्मन और आरडी बर्मन के संगीत से वंचित रह गए होते.
भारतीय फिल्म संगीत में पिता-पुत्र की इस कमाल जोड़ी ने मिल कर संगीत की दुनिया में एक पूरा का पूरा बर्मन संगीत युग रच दिया था.यदि पिता-पुत्र दोनों दोनों महान संगीतकारों की तारीफ में कुछ लिखा जाए तो बड़े – बड़े महाकाव्य लिखने पडेंगे. बर्मन दादा दा ने बचपन से ही शास्त्रीय संगीत से लेकर बंगाल की समृद्ध लोक-संगीत परम्परा को को तो पहचान दिलाया ही, वहीं साहेब अली फकीरों से सूफी गीतों और नजरुल इस्लाम जैसे महाकवियों से कविता की तालीम हासिल करते हुए साहित्यिक बारीकियों को सीखते हुए पारंगत हुए जो उनके संगीत में खूब दिखता है.
Remembering Legendary Music Composer / Singer #Rahul_Dev_Burman ( Beloved #PanchamDa ) On His Birth Anniversary.
( 27th June, 1939 ) pic.twitter.com/5N4jn0WglW
— Incredible tripura (@tripura_glow) June 27, 2021
बर्मन दादा शुरुआत में रेडियो में गाना गाते हुए, संगीत का ट्यूशन देना शुरू किया. 1937 में उन्होंने अपनी एक छात्रा से विवाह कर तो लिया पर राजपरिवार ने अपनी नवेली बहू को स्वीकारने से मना कर दिया. इस बात से दुखी होकर बर्मन दादा बहुत ही आधुनिक सोच के इंसान थे, त्रिपुरा की अपनी राजसी ठाठ छोड़कर अपनी पहचान बनाने निकल गए. संगीत की दुनिया में बर्मन दादा ने पंचम दा नामक संगीतकार के रूप में एक नायाब तोहफा भी दिया.
जब कोई व्यक्ति लीक से हटकर कुछ करता है तो उसको आलोचना भी झेलना पड़ सकता है. अपने पुत्र ‘पंचम दा’ को बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने वाले बर्मन दादा ने ‘दम मारो दम’ गीत ‘पंचम दा’ ने आधुनिक ज़ीनत अमान के लिए वेस्टर्न टच संगीत जब रचा, बर्मन दादा हमेशा अपने पुत्र के साथ संगीत की धुनों को लेकर विमर्श करते थे, इस गीत को लेकर ‘पंचम दा’ ने उनसे कोई विमर्श नहीं किया, सीधे रिकॉर्डिंग के दिन अपने गुरु पिता को बुलाया.
In 1978, when Pt Shiv Kr Sharma had become very busy with concerts, recordings and composing, Pt Ulhas Bapat joined RD's team. He played the santoor for the songs and background score in the film Ghar.
Interestingly, when asked for his tenure with RD…1/2https://t.co/nJULTLNMD8
— New Delhi Film Foundation (@CinemaNDFF) January 4, 2023
अत्याधुनिक तेज संगीत को सुनकर बर्मन दादा नाराज हो गए, कहा “पंचम शास्त्रीय संगीत जो मैंने तुम्हें बचपन से तुम्हें तालीम दी क्या तुम भूल गए हो? कहकर गुस्से से बाहर आ गए. बर्मन दादा की संगीत की महान विरासत को को आगे ले जाने वाले ‘पंचम दा’ के साथ दोनों खूब सहमत होते थे, उन्होंने शायद ही कोई संगीत रचा होगा जो उनके पिता को पसंद न आया हो. दोनों के बीच में संगीत को लेकर कई बार मतभेद और असहमतियां हुआ करती थीं.
आज भी पंचम दा के गाने सुनते गुनगुनाते हुए युवा झूमने लगते हैं. आरडी बर्मन अपने आप में अपने आप में एक संगीत के ‘इंस्टीट्यूट’ हैं.. साल 1971 में फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के लिए जब आरडी बर्मन ने एक गाना बनाया तो उसे सुन पंचम दा के पिता नाराज हो गए थे। पंचम दा उस वक्त जीनत अमान पर फिल्माया गया गाना ‘दम मारो दम’ बना रहे थे। फिल्म का ये गाना सुपरहिट हुआ था.जो आज भी बहुत पसंद किया जाता है। लेकिन इस गाने को सुन कर आरडी बर्मन के पिता ने अपना सिर झुका लिया था।एसडी बर्मन पर लिखी किताब में इस किस्से का जिक्र किया गया है-‘जब एसडी बर्मन ने बेटे द्वारा बनाए गाने ‘दम मारो दम’ की रिकॉर्डिंग सुनी तो गाना सुन कर पिता बहुत निराश हो गए.
https://twitter.com/RakBakX/status/1610580123958534145
उस दिन ‘पंचम दा’ ने अपने महान संगीतकार पिता जो उनके गुरु थे, गाना सुनने के दौरान सिर झुकाते और स्टूडियो से बाहर जाते देखा.इस फिल्म के गाने में एक लाइन देव साहब बोलते नजर आते हैं- ‘राम का नाम बदनाम न करो’. इसके पीछे का किस्सा एक बार ‘पंचम दा’ ने एक इंटरव्यू में शेयर किया था. ‘एक दिन’ पंचम दा’ आनंद बक्शी के साथ स्टूडियो पहुँचे,इस फिल्म के गाने पर काम कर रहे थे. कि तभी देव साहब को बर्मन दादा की नाराजगी का पता चला.
देव साहब को बर्मन दादा की नाराज़गी खल रही थी. स्टूडियो में दाखिल होते हुए देवानंद साहब के मुंह से निकला – ‘राम का नाम बदनाम न करो’ इसे जब’ पंचम दा’ एवं आनंद बक्शी ने सुना तो इसे फिल्म के गाने में रखने का फैसला कर लिया. बाद में बर्मन दादा को गीत सुनाया गया था, तो बर्मन दादा ने थोड़ा राहत की साँस ली, देव साहब ने उनके प्रति जो आदर का भाव व्यक्त किया, बर्मन दादा की कुछ नाराज़गी दूर हुई.
"ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम वो फिर नहीं आते…" Legend Music Director RD Burman.
Hearty tribute to R D Burman
( Pancham ), Bollywood's one of the most prolific music directors, on his 26th death anniversary. pic.twitter.com/fH70VXNzE4
— Subhash Shirdhonkar (@4331Subhash) January 4, 2023
देव साहब के लिए तो बर्मन दादा ने उस गीत को फिर से सुना,और शुभकामनाएं दीं नए प्रयोगों में खूब आलोचना सहना पड़ता है.’पंचम दा’ हर आलोचना को सहते हुए जिंदा रहते हुए ही किवदंती बन गए. पंडित हरिप्रसाद और विश्व विख्यात संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा तब बर्मन दादा के साथ काम किया करते थे. ‘पंडित शिवकुमार शर्मा’ एवं ‘राहुल देव बर्मन’ उर्फ़ आर डी बर्मन जिनको दुनिया ‘पंचम दा ‘के नाम से जानती थी. पंचम दा एवं ‘पंडित शिवकुमार’ की गहरी दोस्ती थी. दोनों अपनी-अपनी विधा में पारंगत थे, दोनों अपनी-अपनी फील्ड के मास्टर थे, दोनों महान कलाकार एक-दूसरे से अत्यंत प्रभावित थे.
दोनों की इसी दोस्ती की वजह से ही शिवकुमार शर्मा ने अपने बेटे का नाम भी राहुल रखा था. दोनों ने घर आसपास ही बना रखे थे. इसलिए शामें भी अक्सर साथ में ही गुज़रती थीं. कभी-कभार देर रात तक रियाज़ करते रहते थे. अक्सर वो दोनों गाड़ी में संगीत सुनते हुए लांग ड्राइव पर निकल पड़ते थे.
Remembering R.D Burman today.
Thank you for all the beautiful songs and melodies 🙏🎼#RDBurman pic.twitter.com/d9rMVleBPF
— Moses Sapir (@MosesSapir) January 4, 2023
पंचम दा जब स्वतंत्र रूप से संगीतकार बन गए, उसके बाद भी काफ़ी समय तक अपने पिता बर्मन दादा को असिस्ट करते रहे एक दिन पंचम दा को पता चला कि शिवकुमार शर्मा तबला भी बजा लेते हैं, तो उन्होंने शिवकुमार शर्मा से फ़िल्म ‘गाइड’ में तबला बजाने को कहा..शिवकुमार शर्मा इसके लिए तैयार ही नहीं हुए क्योंकि तबले का रियाज़ वो काफ़ी समय पहले ही छोड़ चुके थे.
अब उनका पूरा ध्यान संतूर पर था,लेकिन पंचम दा नहीं माने वो अपनी ज़िद पर अड़े रहे. शिव कुमार शर्मा इसलिए भी घबराए हुए थे, क्योंकि वो गीत शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नृत्यगीत था, उसमें कमी की ज़रा भी गुंजाईश नहीं थी, लेकिन मजबूरन उन्हें पंचम दा की बात माननी पड़ी. आख़िरकार शिव कुमार शर्मा ने तबला बजाया, और बहुत ही उम्दा बजाया, यूँ लगता है, जैसे तबला में भी उन्हें मास्टरी प्राप्त थी. उस कालजयी गीत को लता मंगेशकर ने अपनी आवाज़ दी. गीत के बोल ‘मोसे छल किए जा सैयां बईमान’, शिव कुमार जी के अनुसार सिर्फ यही एक ऐसा गीत है जिसमे उन्होंने तबला बजाया है.
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— The Inquilab (@theinquilabin) January 4, 2023
‘पंचम दा’ ने अपने महान पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, बर्मन दादा की सिग्नेचर स्टाइल थाट बिलावल के राग बिहाग जो 8 मात्रा की ताल है. राग पर हमेशा गीत रचते थे. उन्होंने अपनी खुद की कालजयी ऑटोट्यून पैदा की, बाद में संगीतकार रोशन ने उनकी इजाजत से कई सुपरहिट गीतों का निर्माण किया. महान संगीतकार मदनमोहन ने भी उनकी इजाज़त से कई गीतों का निर्माण किया, उनकी धुन साउथ इंडिया तक पॉपुलर थी.
1951 में ‘नौजवान’ फ़िल्म के गीत ‘ठंडी हवाएं लहरा के आएं’ गीत के ऑटोट्यून से प्रेरित होने के सिलसिले का लंबा इतिहास है. ‘पंचम दा’ अपने पिता की सिग्नेचर स्टाइल गीत ‘ठंडी हवाएं लहरा के आएं’ तर्ज़ से प्रेरित होकर शम्मी कपूर निर्देशित फिल्म ‘बंडलबाज’ में किया.’पंचम दा’ ने अपने पिता के संगीत से प्रेरित होकर एक यादगार गीत रच दिया, गीत के बोल थे,’नगमा हमारा गाएगा सारा ज़माना’ आरडी बर्मन अभी भी इस धुन का खूब इस्तेमाल कर रहे थे.
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सन 1981 में फिल्म ‘नरम- गरम’ फिल्म में एक गीत के साथ राग बिहाग जो नए फिर से नए सिरे से परिचय करवाया. गीत के बोल थे,” हमें रास्तों की ज़रूरत नहीं है” इसी धुन पर एक बार फिर से एक गीत बना डाला. जो खूब लोकप्रिय हुआ. उनके पिता की सिग्नेचर धुन पंचम दा के लिए लकी साबित हो रही थी, जो भी गीत बनाते हिट साबित होता.
साल 1983 में फिल्म ‘अगर तुम न होते’ फिल्म में रिपीट किया वो गीत था ‘हमें और जीने की चाहत न होती अगर तुम न होते’ बनाया जो सुपरहिट साबित हुआ, ये वही दौर था, जब हिन्दी सिनेमा में आरडी बर्मन, किशोर कुमार, राजेश खन्ना तीनों मील का पत्थर छू रहे थे, जिसने राजेश खन्ना एवं किशोर कुमार को सुपरस्टार बनाया. सन 1985 में फिल्म आई ‘सागर’ जो अपने यादगार संगीत के लिए जानी जाती है. गीत के बोल हैं, ‘सागर किनारे दिल ये पुकारे’ आज भी लोकप्रिय गीत है, अगर इस गीत को ध्यान से सुना जाए तो इसमे गीत ‘ठंडी हवाएं लहरा के आएं’ की फीलिंग आती है, जिसमें उसकी खुशबू आती है.
“zindagi ek safar hai suhana
yahaan kal kya ho kisne jaana”
– Hasrat Jaipuri, Shankar Jaikishan
“zindagi ka safar,
hai yeh kaisa safar”
– Indeevar, Kalyanji Anandji
“zindagi ke safar mein
guzar jaate hain jo maqaam..”
– Anand Bakshi, RD Burman
Kishore Kumar & Rajesh Khanna pic.twitter.com/A2QMxKGute
— Film History Pics (@FilmHistoryPic) December 29, 2022
एक अच्छा संगीतकार होने के साथ ही आर.डी बर्मन बहुत अच्छा माउथ ऑर्गन भी बजाते थे. आर.डी बर्मन के गीत युवाओं को बहुत पसंद आते थे. उनका अंदाज और संगीत सदैव जवान रहा. मगर वर्ष 1985 के बाद आर.डी बर्मन का करियर ग्राफ नीचे गिरने लगा. जिस फिल्म में उनके गीत होते, वह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल साबित हो जाती थी. ऐसे में लोगों ने फिल्मों की असफलता के लिए आर.डी बर्मन के संगीत को दोषी ठहराना शुरू कर दिया.
वर्ष 1988 में इन्हीं सब बातों से परेशान आर.डी बर्मन को दिल का दौरा पड़ा. लंदन में जब उनका इलाज चल रहा था, उस दौरान भी आर.डी बर्मन ने धुनें बनाना नहीं छोड़ा. उनकी आखिरी फिल्म ‘1942: लव स्टोरी’ थी. फिल्म के सभी गीत हिट थे, मगर जब सफलता का स्वाद चखने की बारी आई तो 4 जनवरी 1994 को पंचम दा ने दुनिया से ही मुंह फेर लिया और हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
“… woh achanak aa gayi
yun nazar ke saamne
jaise nikal aaya
ghataa se chand ..
ek ajanabee haseena se..”
by Kishore Kumar, RD Burman and Anand Bakshi
(1974) Ajanabee – Rajesh Khanna, Zeenat Aman pic.twitter.com/YR7SWRnmHl
— Film History Pics (@FilmHistoryPic) December 29, 2022
‘पंचम दा के सर्वकालिक कुछ महान गीत
महबूबा महबूबा…
आने वाला पल जाने वाला है…
ओ मेरे दिल के चैन…
हमें तुमसे प्यार कितना…..
चुरा लिया है तुम ने…
तुम आ गए हो…
कुछ तो लोग कहेंगे…
ये शाम मस्तानी…
तूने ओ रंगीले…
गुलाबी आंखें…
बचना ऐ हसीनों…
बाहों में चले आओ…
एक अजनबी हसीना से..