दुर्लभ फल-सब्जियां इस्तेमाल होती है उच्च
आय वर्ग में, इसका बाजार बढ़ रहा लगातार
हम अपने आसपास बहुत सी फल सब्जियां देखते हैं। इनमें से अधिकांश हर रोज हमारे खाने की प्लेट में होती हैं लेकिन इन्हीं में कुछ ऐसी फल-सब्जियां भी हैं जिनके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते।
असल में ये अनोखी फल सब्जियां होती सामान्य सब्जियों और फलों का ही रूप हैं लेकिन इनके अनोखे रंग, स्वाद और गुण इन्हें विशेष और महंगे बनाते हैं।
तो चलिए जानते हैं ऐसे ही कुछ अनोखे फलों और सब्जियों के बारे में-
पूरे साल में फलता है सिर्फ 100 काला तरबूज
हम यहां सबसे पहले बात करेंगे दुनिया के सबसे महंगे तरबूज के बारे में। डेनसुक प्रजाति के इन तरबूजों को काला तरबूज (black watrmelon) भी कहा जाता है।केवल जापान के होकाइडो आइलैंड के उत्तरी भाग में पाए जाने वाले इन दुर्लभ तरबूजों की पैदावार भी बेहद कम है. ये पूरे साल में मात्र 100 पीस ही उगते हैं।
ये तरबूज इतने खास हैं कि ये आम तरबूजों की तरह किसी दुकान पर नहीं बिकते, बल्कि हर साल इनकी नीलामी होती है। इसके साथ ही बड़े बड़े बिडर इसके लिए बढ़चढ़ कर बोली लगती है और ये तरबूज हजारों-लाखों की कीमत में बिकते हैं। इस नस्ल का सबसे महंगा तरबूज साल 2019 में बिका था। इसकी कीमत 4.5 लाख रुपये थी।
गुच्छी की खेती नहीं होती, इसे ढूंढकर लाया जाता है जंगलों से
यह मशरूम की एक प्रजाति है, जिसकी कीमत 30000 रुपये किलोग्राम तक है। हिमालय की घाटियों और जंगलों में उगने वाला ये दुनिया का सबसे महंगा मशरूम (mushrooms Agro Kashmir) और देश की सबसे महंगी सब्ज़ी है।
इसे गुच्छी या स्पंज मशरूम कहा जाता है। ये सब्ज़ी हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर के बर्फ़ीले इलाकों में पाई जाती है। गुच्छी की खेती संभव नहीं है और इसे जंगलों में जाकर ही ढूंढ कर लाना पड़ता है। इसे स्थानीय भाषा में छतरी, टटमोर या डुंघरू कहा जाता है।
गुच्छी से कई तरह की डिशेज़, जैसे-गुच्छी पुलाव बनाई जाती है। इसमें आयरन की अधिक मात्रा, विटामिन डी, विटामिन बी और कई तरह के मिनरल्स पाये जाते हैं। इसमें लो फ़ैट और हाई ऐंटीऑक्सिडेंट्स, फ़ाइबर होते हैं। गांव कनेक्शन के मुताबिक, इस सब्ज़ी को खाने से दिल की बीमारियां नहीं होती।
हरी से ज्यादा पौष्टिक होती है लाल भिंडी
लाल रंग की इस भिंडी को काशी लालिमा भिंडी (Kashi Lalima) कहते हैं। बताया जाता है कि ये हरे रंग की भिंडी से ज़्यादा पौष्टिक होती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ वेजिटेबल रिसर्च वाराणसी के कृषि विशेषज्ञों ने दो साल पहले ही ये लाल भिंडी (Red Bhindi Alibaba) विकसित की। हरी भिंडी में क्लोरोफ़िल होता है इसलिए ये हरे रंग की होती है।
वहीं लाल भिंडी में एंथोस्यानिन नामक तत्व पाया जाता है। ये एक प्राकृतिक Pigment है, लाल, बैंगनी और नीले रंग के पौधों में ये Pigment पाया जाता है।
विशेषज्ञों की माने तो लाल भिंडी, हरी भिंडी से ज़्यादा पौष्टिक होती है। लाल भिंडी में ऐंटी ऑक्सिडेंट्स, कैल्शियम और आयरन की अधिक मात्रा होती है।
तेज गंध नहीं होती और पोषक तत्वों से भरपूर है काला लहसुन
काला लहसुन, सफ़ेद लहसुन का ही नया रूप है। इसकी गंध सफ़ेद लहसुन की तरह तेज़ नहीं होती लेकिन ये पोषक तत्वों से भरपूर है।
ताज़े कच्चे लहसुन को 60 से 90 दिनों तक उच्च तापमान पर फ़र्मेंट करके काला लहसुन (black garlic) तैयार किया जाता है। सफ़ेद लहसुन की तुलना में ये मीठा या खट्टा होता है।
काला लहसुन ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है, कॉलेस्ट्रॉल कम करता है और कार्डियोवस्कुलर बीमारियों को दूर करता है। इस लहसुन में ऐंटीबैक्टीरियल, ऐंटीवायरल गुण होते हैं जिससे हमारे शरीर का ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है।
100 साल में 1-2 बार ही उगता है बांस का चावल
बैम्बू राइस या बांस का चावल (bamboo rice) का एक अन्य नाम मूलयारी भी है। कहते हैं ये एक मरते बांस के पेड़ की आख़िरी निशानी है। बांस की झाड़ में अगर फूल आ जाए तो इसका मतलब होता है कि वो झाड़ मरने वाली है।
बैम्बू राइस या बांस का चावल मरते बांस के झाड़ की आख़िरी निशानी है। बांस के फूल से एक बेहद दुर्लभ किस्म का चावल निकलता है और यही है बांस का चावल। केरल के वायानाड सैंचुरी के आदिवासियों के लिए ये चावल न सिर्फ़ खाने पीने का बल्कि आय का भी साधन है।
इस क्षेत्र में जाने पर कई महिलाएं और बच्चे बांस के चावल इकट्ठा करते और बेचते नज़र आते हैं। आमतौर पर किसी बांस की झाड़ में 50-60 साल बाद ही फूल निकलते हैं। ऐसे में बांस के चावल 100 साल में 1-2 बार ही उगते हैं।
साफ़-सुथरा बांस का चावल इकट्ठा करने के लिए बांस के मूल के आस-पास के क्षेत्र को अच्छे से साफ़ किया जाता है। इसके बाद मूल पर मिट्टी पोती जाती है और उसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद बांस के चावल को स्टोर किया जाता है और फिर इकट्ठा किया जाता है।