आज पुण्य तिथि पर विशेष
दीना पाठक एक ऐसा नाम, जिसे लेते ही आंखों के सामने दादी-नानी का किरदार निभाती अभिनेत्री का चेहरा घूम जाता है। सफेद बाल, बोलने का क्यूट अंदाज बरबस ही सबको अपनी तरफ खींच लेता था। 4 मार्च 1922 में पैदा हुईं दीना सादा जीवन उच्च विचार के साथ साथ महिला सशक्तिकरण का उदाहरण हैं।
कुछ हस्तियां ऐसी होती हैं जो भले ही दुनिया में नहीं होती लेकिन उनका जीवन, उनका काम, संघर्ष आने वाली पीढ़ियों को काफी कुछ सिखाता है, ऐसी ही थीं दीना पाठक।
8 मार्च को पूरी दुनिया महिला दिवस मनाती है लेकिन दीना पाठक की पूरी जिंदगी ही महिलाओं को सीख देने वाली है। 60 साल तक लगातार फिल्मों-थियेटर में काम करती रही।
120 से अधिक फिल्मों में काम करने वाली दीना ने एक्टिंग के मंच पर तब कदम रखा था जब महिलाओं के लिए अच्छा नहीं माना जाता था, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और गुजराती रंगमंच की कलाकार बन गईं।
दीना काठियावाड़ी का जन्म 4 मार्च 1922 में अमरेली के एक गुजराती परिवार में हुआ था। उस दौर में पिता इंजीनियर थे, वहीं बड़ी बहन शांता पुणे के एक एक्सपेरिमेंटल स्कूल इंदिरा गांधी की क्लासमेट थीं। दीना का मन बचपन से ही रंगमंच पर लगता था, यही वजह थी उन्होंने मंझी हुआ कलाकार के तौर पर एक अलग मुकाम हासिल किया।
दीना पाठक आजादी के लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर सामने आईं थीं। आजादी की जंग लड़ने के कारण उन्हें मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से निकाल दिया गया था। मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में दीना ने बताया था कि कॉलेज से निकाले जाने के बाद उन्होंने किसी दूसरे कॉलेज से डिग्री हासिल की।
नाटक ‘भवई थियेटर’ ने दीना पाठक की जिंदगी में नया मोड़ लेकर आया। जिसके बाद दीना ने अपने इन नाटकों के जरिए लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूक करने का काम किया। एक समय ऐसा था जब गुजरात में दीना पाठक के नाटकों की धूम रहती थी। उनके नाटकों को देखने के लिए लोग सुबह 4 बजे से लाइन लगाया करते थे। दीना का प्ले ‘मेना गुर्जरी’ आज भी परफॉर्म किया जाता है, साल 1957 में राष्ट्रपति भवन में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के सामने भी इस नाटक को प्रस्तुत किया था।
दीना की शादी की कहानी भी काफी दिलचस्प रही। किसी बॉलीवुड स्टार की जगह उन्होंने कपड़े सिलने वाले दर्जी को अपना हमसफर बनाया। बता दें कि दीना ने बलदेव पाठक नाम के जिस इंसान से शादी की वो गेटवे ऑफ इंडिया के पास कपड़े की एक दुकान चलाते थे।
लेकिन वो आम दर्जी नहीं थे, उन्होंने बॉलीवुड के कई दिग्गज अदाकारों के कपड़े डिजाइन किए थे। इसके अलावा उन्होंने उस दौर के सुपरस्टार राजेश खन्ना का कुर्ता भी डिजाइन किया था। जब राजेश खन्ना का करियर खत्म हुआ, तो इसका असर बलदेव पाठक पर भी पड़ने लगा। दुकान नुकसान में आने की वजह से कुछ समय बाद बंद हो गई, जिसके बाद 52 साल की उम्र में वो चल बसे।
पति के जाने के बाद सारी जिम्मेदारियां दीना पर आ गईं। उस वक्त उनके बच्चे छोटे थे, उन्होंने घर के साथ-साथ बाहर काम भी किया। वो रोज सुबह बच्चों को पड़ोसी के घर छोड़कर काम पर निकल जातीं। घर चलाने के कारण दीना का ज्यादा समय उनके बच्चों के साथ नहीं बीत पाया।
दीना पाठक की दोनों बेटियां आज बॉलीवुड का बड़ा चेहरा हैं। उनकी बेटी रत्ना पाठक ने नसीरुद्दीन शाह की पत्नी हैं, वहीं सुप्रिया ने एक्टर पंकज कपूर से शादी की। बता दें कि फिल्म ‘मिर्च मसाला’ में दीना ने दामाद नसीरुद्दीन शाह और बेटी रत्ना के साथ फिल्मी पर्दे पर काम किया।
दीना पाठक ने अपने करियर की शुरुआत गुजराती फिल्म से की थी। हालांकि इसके बाद वो लंबे समय तक फिल्मों से गायब हो गईं। जिसके बाद उन्होंने साल 1966 में अपने करियर की पहली हिंदी फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ और ‘सत्यकाम’ में नजर आईं।
‘कोशिश’ ‘चितचोर’ ‘गोल माल’ ‘खुबसूरत’ ‘मोसम मोहन जोशी हाजिर हो’ ‘उमराव जान’ ओर कई प्रमुख फिल्मों का हिस्सा रहीं, लेकिन साल 1977 में आई फिल्म ‘भूमिका’ से दीना ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बना ली। जिसके बाद दशकों तक दीना अलग-अलग किरदारों में नजर आती रहीं। दूरदर्शन के धारावाहिक ‘तमस’ ‘तहकीकत’ ‘जुनून’ ओर ‘मालगुडी डेज’ मे भी अभिनय करती नजर आई।
दीना की आखिरी फिल्म ‘पिंजर’ थी, जिसमें उनकी एक्टिंग को बेहद पसंद किया गया। 11 अक्टूबर 2002 के दिन दीना पाठक ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन दीना की एक्टिंग और उनके किरदार आज भी लोगों के बीच जिंदा है।