आज जन्मदिन विशेष: असरानी सिर्फ कॉमेडी के दायरे में नहीं बंधे
बल्कि कुछ गंभीर भूमिकाएं भी कीं, फिल्में बनाईं और गाने भी गाए
वर्ष 1967 की बात है, एक दिन जयपुर के एमआई रोड पर दो युवक मस्ती से एक साइकिल पर बातें करते चले जा रहे थे। साइकिल के आगे डंडे पर बैठा युवक जिसने हैंडिल के ऊपर से अपना एक पैर लटका रखा था, एमआई रोड पर स्थित, एक सरकारी मोटर गैराज जहाँ अब गणपति प्लाजा है, वहाँ पहुंचते ही इशारा करके अपने दोस्त से साइकल रोकने को कहता है,
दोस्त साइकल रोकता है और वह युवक साइकिल से उतरता है और सामने लगी एक होर्डिंग के पास जाकर रुक जाता है, जिस पर उसी वर्ष रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘मेहरबान’ का पोस्टर लगा हुआ था। उस युवक ने होर्डिंग की ओर इशारा करके दोस्त से कहा-“इसे देख रहे हो? कभी मेरा भी ऐसा ही पोस्टर लगेगा।”
असरानी के जुनून और संघर्ष की कहानी बेहद ही दिलचस्प और प्रेरणादायक
दोस्त ने कहा-“हां, भाई तेरा भी जल्दी ही लग जाएगा।चिंता मत कर।” कुछ ही महीनों बाद, उसी वर्ष, उसी होर्डिंग पर फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ का पोस्टर लगा, जिसमें बिश्वजीत, नैना साहू, शिव कुमार, हेलन और राजेंद्र नाथ जैसे एक्टर्स के साथ ही एक कोने में उस युवक की फोटो भी थी, जिसने एक दिन अपने दोस्त से कहा था कि कभी उसका पोस्टर भी यहाँ लगेगा।
उस युवक का नाम था असरानी और उन्हें बैठाकर साइकिल चला रहे उनके बचपन के दोस्त थे प्रसिद्ध नाटककार मदन शर्मा जो बाद में जयपुर आकाशवाणी में प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव बने। असरानी के जुनून और संघर्ष की कहानी बेहद ही दिलचस्प और प्रेरणादायक है।
जयपुर के सिंधी परिवार में जन्में,मित्रों के बीच ‘चोंच’ नाम से मशहूर
जयपुर राजस्थान के एक सिंधी परिवार में 1 जनवरी, 1941 को जन्मे असरानी का पूरा नाम गोवर्धन असरानी है। असरानी के पिता वर्ष 1936 में ही पाकिस्तान के कराची से जयपुर आ गए थे। जयपुर आने के बाद सबसे पहले उन्होंने एमआई रोड स्थित ‘इंडियन आर्ट्स कार्पेट फैक्ट्री’ में नौकरी की और बाद में अपना व्यवसाय करने लगे।
चार बहनों और तीन भाइयों में से एक असरानी की पढ़ाई जयपुर के सेंट जेवियर स्कूल और राजस्थान कॉलेज से हुई थी। असरानी अपने मित्रों के बीच ‘चोंच’ नाम से मशहूर थे।
हर माता-पिता की तरह असरानी के पिता भी चाहते थे कि वो अच्छे से पढ़-लिख कर सरकारी नौकरी करें, लेकिन असरानी तो पहले से ही एक ऐक्टर बनने का सपना देख चुके थे जिसकी इजाज़त उनके पिता ने उन्हें कभी भी नहीं दी। असरानी को तब यही लगता था कि शायद वे कभी भी एक्टर नहीं बन पाएंगे और उनका सपना अधूरा ही जाएगा।
दोस्तों ने आर्थिक मदद के नाटक मंचित किए और भेजा बाम्बे
असरानी बचपन से ही जयपुर में रेडियो से जुड़ हुए थेे और पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने कई वर्षों तक बतौर रेडियो आर्टिस्ट काम भी किया था। जब उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया तो जयपुर में उनके रंगकर्मी दोस्तों ने उनकी मदद के लिए दो नाटक किए-“जूलियस सीजर’ और “अब के मोय उबारो’। इन दोनों नाटकों के टिकट से जो भी थोड़ी-बहुत कमाई हुई, वह असरानी को बाम्बे जाने के लिए दे दी गई। बस मौक़ा देखकर एक दिन असरानी अपने घर से भागकर बाम्बे जा पहुंचे।
वर्ष 1962 में मुंबई पहुंचे असरानी की मुलाक़ात एक वर्ष के बाद अचानक निर्माता निर्देशक किशोर साहू और लेखक निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी से हो गई। उन्होंने असरानी को पहले पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट यानि एफटीआईआई से एक्टिंग का कोर्स करने की सलाह दी। असरानी ने उनकी बात मानते हुए वर्ष 1964 में वहाँ दाखिला ले लिया और वर्ष 1966 में अपना प्रशिक्षण पूरा कर काम की तलाश में मुंबई आ गये।
एफटीआईआई के बाद घर वाले जबरदस्ती ले गए जयपुर, फिर
ऋषिकेष मुखर्जी का साथ मिला और चल निकली गाड़ी
इधर स्ट्रगल के दौरान असरानी के परिवार वाले मुंबई पहुँच गये और उन्हें ज़बरदस्ती वापस जयपुर घर लेते गए। हालांकि असरानी का मन वहाँ ज़्यादा दिनों तक नहीं लगा और कुछ समय बाद ही वे वापस मुंबई लौट आए और काम की तलाश में लग गये। लेकिन मुंबई में बहुत दिनों तक काम ढूंढने के बाद भी जब असरानी को कोई काम नहीं मिला तो वे वापस पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट लौट आए और बतौर ऐक्टिंग टीचर वहां नौकरी करने लगे।
इसी दौरान एक बार ऋषिकेश मुखर्जी, राइटर व डायरेक्टर गुलज़ार के साथ वहां पहुंचे। उन्हें देखकर असरानी बड़े ख़ुश हुए और उनसे कहा-“दादा, आपने मुझे काम देने के लिए कहा था।” इस पर मुखर्जी बोले-“देगा, काम देगा, पहले यह बताओ कि जया भादुड़ी कौन है?” असरानी ने तुरंत जया को बुला दिया और इस बीच असरानी ने गुलज़ार से पूछा कि “ऋषि दा क्यों आए हैं?”
तो उन्होंने बताया कि-“गुड्डी को ढूंढने आए हैं।’ यहाँ हम बता दें कि उस वक़्त जया भादुड़ी असरानी की स्टूडेंट हुआ करतीं थीं और आज भी वे असरानी को “सर’ ही कहा करती हैं। कम लोगों को ही पता होगा कि अमिताभ बच्चन की अचानक हुई शादी में असरानी ने ही जया के भाई बनकर शादी की रस्म अदायगी की थी।
ख़ैर ‘गुड्डी’ फिल्म के बनने में अभी वक़्त था जिसके लिये फ़िलहाल जया को सेलेक्ट कर लिया गया था। इस बीच असरानी को हिंदी फिल्मों में अपना पहला ब्रेक 1967 में रिलीज़ हुई किशोर साहू जी की फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां ‘ में अभिनेता बिस्वजीत के दोस्त की भूमिका के रूप में मिल गया। हालांकि इस फ़िल्म से उन्हें कोई विशेष फ़ायदा नहीं मिला।
एलवी प्रसाद ने जो कहा, उसे कभी नहीं भूल पाये असरानी
एक शो में उन्होंने बताया था कि एक बार वो अपने परफार्मेंस की रील, जो तब इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग के दौरान वहाँ के स्टूडेंट्स को दिये जाते थे, उसे उस ज़माने के मशहूर डायरेक्टर एलवी प्रसाद के पास दिखाने ले गए, जिसे देखकर उन्होंने कहा कि “असरानी तुम्हें कैसा रोल दें? हीरो हमारे पास बहुत है, विलेन तू लगता नहीं, कॉमेडियन का सवाल ही पैदा नहीं होता और रोमांटिक सीन तुम कर नहीं सकते। तुम्हीं बताओ बेटा क्या रोल दे तुम्हें?” इस पर असरानी ने कहा “कोई बात नहीं सर, मैं रील का डब्बा वापस लेता हूँ, मुझे माफ़ करो।” यह बोलकर असरानी वहाँ से चले आये।
हालांकि बाद के वर्षों में प्रसाद जी ने उन्हें अपनी कई फिल्मों में अच्छे किरदार दिये। बहरहाल इस दौरान असरानी ने कुछ हिंदी फिल्मों के अलावा वर्ष 1967 से 1969 तक चार गुजराती फिल्मों में बतौर मुख्य अभिनेता और सहायक अभिनेता के रूप में भी काम किया।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि असरानी के करियर में निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी जी का योगदान सबसे बड़ा है। ऋषिकेश मुखर्जी ने वर्ष 1969 में फिल्म “सत्यकाम में असरानी को सपोर्टिंग एक्टर की एक भूमिका दी और उसके बाद उन्होंने फिल्म ‘गुड्डी’ में असरानी को एक बढ़िया किरदार दिया जिसे असरानी ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से यादगार बना दिया।
इस फ़िल्म में असरानी को ‘गुड्डी’ में एक ऐसे लड़के का रोल मिला जो हीरो बनने मुंबई आता है, लेकिन जूनियर आर्टिस्ट बनकर रह जाता है। इसके बाद तो ऋषिकेश मुखर्जी ने असरानी को लगभग अपनी हर फिल्म में काम दिया जिनमें बावर्ची, नमक हराम, अभिमान, और ‘चुपके-चुपके’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के नाम भी शामिल हैं।
ॠषिकेश मुखर्जी से अपनी घनिष्टता को लेकर असरानी कहते हैं कि-“मै ऋषि दा से उनके आखिरी दिनों में अस्पताल में मिलने गया तो उन्होंने एक कागज पर लिखकर दिया-“असरानी मुखर्जी’। दरअसल वो कहना चाहते थे कि तुम मेरे बेटे हो।”
..फिर हर निर्माता निर्देशक की पहली पसंद बन गये असरानी
बहरहाल धीरे-धीरे असरानी हर निर्माता निर्देशक की पहली पसंद बन गये। अपने शुरुआती संघर्षों के दिनों को याद कर एक टीवी इंटरव्यू में असरानी ने बताया था कि पहले लोग उनको कमर्शियल एक्टर नहीं समझते थे और उन लोगों में डायरेक्टर गुलजार भी शामिल थे।
उन्होंने बताया कि गुलजार उनसे अक्सर कहते कि तुम्हारा चेहरा कुछ अजीब सा है। हालांकि बाद में असरानी गुलजार निर्देशित वर्ष 1971 में रिलीज़ हुई उनकी पहली फिल्म “मेरे अपने’ सहित उनकी कई फ़िल्मों में नज़र आये। असरानी ने इसके बाद साउथ फिल्म इंडस्ट्री का रुख कर लिया और वहाँ के लगभग सभी बड़े डायरेक्टर के साथ काम किया। उन्होंने साउथ की हिंदी रीमेक में भी ख़ास भूमिकाएं निभाईं। धीरे-धीरे असरानी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री चहेते कलाकार बन गये।
नकारात्मक भूमिकाएं भी निभाईं असरानी ने
इसी बीच निर्माता निर्देशक बीआर चोपड़ा ने उन्हें फ़िल्म ‘निकाह’ के लिये साइन कर लिया जो असरानी की बेहद ख़ास फ़िल्मों में से एक है। हालांकि इस फिल्म में उन्हें साइन किये जाने पर लोगों ने बी आर चोपड़ा को ऐसा करने से मना किया था क्योंकि वह किरदार निगेटिव था। उन्होंने बताया कि जब बीआर चोपड़ा ने निकाह में उन्हें रोल दिया तो सबने कहा कि “ये क्या कर रहे हैं ये।
ये तो विलेन का रोल है, सलमा आगा से मोहब्बत करता है ये आदमी”। हालांकि बी आर चोपड़ा अपने फैसले पर अडिग रहे और फिल्म सुपरहिट रही। असरानी ने इस फ़िल्म के अलावा भी कई फिल्मों में नकारात्मक भूमिका निभाई थीं जिनमें कोशिश और चैताली जैसी फ़िल्में भी शामिल हैं।
असरानी की जोड़ी सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ बहुत सफल हुई थी और उन्होंने लगभग 25 फिल्मों में साथ काम किया है। बाद में असरानी, कादर ख़ान और अरुणा ईरानी की तिकड़ी भी ख़ूब पसंद की गयी। असरानी ने हिंदी फ़िल्मों के लगभग सभी दिग्गज अभिनेताओं के साथ अभिनय किया है और लगभग सभी कामयाब निर्देशकों की फ़िल्में की हैं, जो आज भी बदस्तूर ज़ारी है। असरानी अब तक तकरीबन 350 से अधिक हिंदी, गुजराती, पंजाबी और अंग्रेजी फिल्मों में अभिनय कर चुकें हैं और लगभग पांच दशकों से हिंदी फ़िल्मों में सक्रिय हैं।
नई सदी में भी सक्रिय हैं असरानी, कांग्रेस में भी शामिल हुए
वर्ष 2000 के बाद के दौर की बात करें तो धमाल, ढोल और मालामाल विकली जैसी दर्जनों फ़िल्मों में असरानी सबको हँसाते नज़र आते रहे हैं। असरानी को मिले अवाॅर्ड्स की बात की जाये तो ढेरों अवाॅर्ड्स के अलावा उन्हें फ़िल्म फेयर की ओर से बेस्ट कॉमेडियन के लिये वर्ष 1973 में आयी फिल्म “आज की ताजा खबर’ और वर्ष 1976 में रिलीज़ हुई फिल्म “बालिका वधू’ के लिये अवाॅर्ड दिये गये।
दोस्तों असरानी एक अभिनेता होने के अलावा एक निर्माता, निर्देशक, गायक, और लेखक भी हैं। उन्होंने कुल 6 फिल्मों का निर्देशन किया है जिनके नाम हैं चला मुरारी हीरो बनने, हम नहीं सुधरेंगे, सलाम मेमसाब और ‘दिल ही तो है’। इसके अलावा उन्होंने एक गुजराती फिल्म ‘अहमदाबाद नो रिक्शोवालो’ का भी निर्देशन किया है। उनकी आखिरी निर्देशित फिल्म 90 के दशक में आई ‘उड़ान’ थी।
गायकी की बात करें तो असरानी ने वर्ष 1977 में आयी फ़िल्म आलाप में दो गाने गाए थे जो उन्ही पर फ़िल्माए गए थे। इसी के अगले साल उन्होंने फ़िल्म फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में मशहूर सदाबहार पार्श्वगायक किशोर कुमार के साथ एक गाना गाया जिसके बोल थे ‘मन्नूभाई मोटर चली पमपमपम’। दोस्तों असरानी कुछ वर्षों तक राजनीति से भी जुड़े रहे थे। उन्होंने वर्ष 2004 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी और लोकसभा चुनावों के दौरान बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया था।
‘अंग्रेजों के जमाने के जेलर’ ने दिलाई ख्याति
जब भी असरानी का नाम लिया जाएगा तब फ़िल्म शोले में उनके निभाये जेलर के किरदार की चर्चा ज़रूर होगी या ये कहें कि जब भी कभी शोले फ़िल्म का ज़िक्र होगा तो जेलर यानि असरानी जी की चर्चा ज़रूर होगी। इस किरदार में जान डालने के लिये असरानी ने जमकर तैयारी की थी।
उन्हें लेखक सलीम-जावेद ने एक पुस्तक लाकर दी-“वर्ल्ड वॉर सेकेंड’ जिसमें अडोल्फ हिटलर की तस्वीरें भी थीं। उन्हें वैसा ही लुक बनाने के लिए कहा गया। असरानी बताते हैं कि पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में हिटलर की रिकॉर्डेड आवाज़ भी थी, जो स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग देने के काम आती थी।
असरानी को इससे काफी मदद मिली उन्होंने हिटलर के बोलने के उसी अंदाज़ को कॉपी कर लिया और अपने संवादों -“हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं” और “हाहा’ में डाल दिया। असरानी द्वारा निभाया यह किरदार और उनके संवाद आज तक उतने ही मशहूर हैं और उनकी पहचान बने हुए हैं।
पत्नी के साथ भी कई फिल्में, बेटे डॉक्टर
असरानी की शादी अभिनेत्री मंजू बंसल से हुई। शादी से पहले असरानी और मंजू ने एक साथ कई फिल्मों में भूमिकाएं अदा की हैं जिनमें आज की ताज़ा खबर’ और “नमक हराम’ जैसी फ़िल्में प्रमुख हैं।
बाद में भी वे एक साथ कई फ़िल्मों में नज़र आये। फिल्मों में साथ काम करने के दौरान दोनों की दोस्ती हो गयी, फिर उन्होंने एक साथ जीने का फ़ैसला कर लिया और वर्ष 1973 में शादी कर ली।
असरानी के बेटे दाँतों के डॉक्टर हैं जो अहमदाबाद में रहते हैं और उनका नाम है डॉक्टर नवीन असरानी। असरानी के भाई नंद कुमार असरानी जी की जयपुर की न्यू कॉलोनी में “लक्ष्मी साड़ी स्टोर्स’ के नाम से कपड़ों की एक मशहूर दुकान है जो लगभग पचास साल से भी ज़्यादा पुरानी है।