गांधीजी का ऐतिहासिक हरिजन दौरा
कनक तिवारी
1933 में हरिजन दौरा करने निकले गांधी सेवाग्राम से चलकर सबसे पहले 22 नवंबर को दुर्ग आए। उनके इस दौरे का इंतजाम पं. रविशंकर शुक्ल के हाथ में था। स्थानीय नेताओं तथा जनता ने भी उनसे सहकार किया। अपने इस दौरे में गांधीजी सर्वप्रथम दुर्ग में आये। दुर्ग में गांधीजी घनश्यामसिंह गुप्त के अतिथि थे।
आते ही गांधीजी ने पूछा दुर्ग में देखने लायक क्या है? घनश्यामसिंह गुप्त ने उनसे एक स्कूल का जिक्र किया। वहां वर्ष 1926 से सवर्ण तथा (हरिजन) अनुसूचित जाति के बालक एक ही टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ रहे हैं। इस शाला की स्थापना वर्ष 1925 में हुई थी।
उस वक्त घनयश्यामसिंह गुप्त ही दुर्ग नगरपालिका समिति के अध्यक्ष थे। हरिजनों की हालत सुधारने के लिए दुर्ग में और भी कई महत्वपूर्ण काम हुए थे। मसलन हरिजनों को कुएं पर पानी भरने तथा मन्दिर-प्रवेश आदि की स्थिति रही है। इसीलिए गांधीजी इस स्कूल को खुश होकर देखने गये।
रास्ते में हरिजन काॅलोनी में भी उनका स्वागत हुआ। पाठशाला पहुंचकर उन्होंने सभी हरिजन बालकों को हार पहनाये और शिक्षकों से अनुरोध किया कि वे छुआछूत की इस कलंक भावना को सवर्ण हिन्दुओं के बच्चों के मन से निकालने की पूरी पूरी कोशिश करें।
उसी दिन शाम को मोतीतालाब के मैदान में एक विशाल जनसभा हुई। अंदाज है गांधीजी की उस सभा में करीब पचास हजार व्यक्तियों की भीड़ इकट्ठा हुई थी। उन दिनों लाउड स्पीकर का इतना प्रचार नहीं हुआ था। इसलिए सब सभा स्थलों पर गांधीजी के लिए लाउड स्पीकर की व्यवस्था नहीं हो सकती थी।
इस समस्या को हल करने के लिए अन्य स्थानों तथा दुर्ग में एक नायाब तरीका ईजाद किया गया। वक्ता अपनी स्वाभाविक आवाज में एक वाक्य बोलता था और बुलन्द आवाज वाला दूसरा व्यक्ति उसी वाक्य को दुहराता चलता था।
दुर्ग की विशाल जनसभा में गांधीजी के भाषण को दुहराने की व्यवस्था करना संभव नहीं हो पा रहा था। उनके दर्शन भी लोग कर सकें। इसके लिए एक अभिनव तरीका काम में लाया गया।
मंच पर गांधीजी के लिए जो कुर्सी रखी गई थी वह कुछ इस तरह की थी कि चक्की की तरह उसे चारों ओर घुमाया जा सके।
उन दिनों ‘रिवाॅल्विंग चेयर‘ भी नहीं बनी थी। गांधीजी को इस कुर्सी पर बिठाकर चारों ओर घुमाया गया। उन्होंने पूर्ण कौतुक से आयोजकों की इस सूझबूझ का आनन्द लिया। उपस्थित विशाल जन-समूह को उन्हें सुनने का नहीं तो देखने का संतोष अवश्य प्राप्त हुआ।
जनसभा में पहले शिशुपाल सिंह यादव तथा उदय प्रसाद जी बोड़ेगांव का कविता पाठ हुआ। बाद में घनश्यामसिंह गुप्त का भाषण हुआ।
उन्होंने गांधीजी को हरिजन-कल्याण हेतु चंदा तथा थैली भेंट की। फिर गांधीजी बोले। गांधी ने अपने भाषण में कहा अभी तक हमने हरिजनों के साथ बहुत अन्याय किया है।
अब उन्हें सवर्णों के समान ही अधिकार और सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए। हमारा सबसे प्रमुख कर्तव्य यही है कि छुआछूत के इस कलंक को अपने माथे से मिटा दें।
हरिजनों के कुओं से पानी लेने और मन्दिर प्रवेश पर कोई निषेध नहीं होना चाहिए। दुर्ग में गांधीजी के स्वागत में रत्नाकर झा, मोहनलाल बाकलीवाल आदि अनेक कार्यकर्ताओं ने सहयोग दिया।
उसी दिन संध्या को सार्वजनिक सभा निबटाकर गांधीजी रात्रि में रायपुर पहुंचे। रास्ते में कुम्हारी से ही भीड़ और स्वागत भेंट आदि आरंभ हो गई थी। आमापारा में मिशनरी की ओर से स्वागत हुआ।
आमापारा स्कूल में ही नगर की ओर से अपार हर्ष के साथ रायपुर की जनता ने युगपुरुष का स्वागत किया। रायपुर में गांधीजी की आवास-व्यवस्था पंडित रविशंकर शुक्ल के बूढ़ापारा स्थित मकान की पहली मंजिल के बड़े कमरे में की गयी थी।