आज विश्व पर्यावरण दिवस पर सागौन रोपने के जनक मनीराम
गोंड की याद,भावनावश किया पौधरोपण बना बरबादी की वजह
पीयुष कुमार/राजिंदर खनूजा
अंग्रेजी राज में छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी ने भावनावश सागौन रोपने की शुरूआत की थी. भावनावश किया यह पौधरोपण ही उस आदिवासी की मौत की वजह बना। लेकिन स्वतंत्र भारत में इस आदिवासी का योगदान रेखांकित हुआ।
आज समूचे एशिया में सागौन रोपणी की शुरूआत करने का श्रेय इस आदिवासी मनीराम को दिया जाता है। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर अंग्रेजी राज के इस पर्यावरण योद्धा का योगदान उन्हें नमन करते हुए।
बीटगार्ड थे मनीराम, अंग्रेज अफसर ले गए थे इंग्लैंड
किस्सा कुछ यूं है कि लगभग 132 साल पहले छत्तीसगढ़ के रायपुर वनमंडल अंतर्गत एक अंग्रेज वन अधिकारी की पोस्टिंग पिथौरा में हुई। उन्होंने कुम्हारीमुड़ा के मनीराम गोंड को बीटगार्ड की नौकरी पर रख लिया। मनीराम खाना बनाने में कुशल थे सो इनके हाथों बने भोजन का स्वाद साहब की जुबान पर चढ़ गया।
कुछ महीनों बाद यह अंग्रेज अधिकारी इंग्लैंड गए तो मनीराम को भी अपने साथ ले गए। वहां पर मनीराम ने साहब की नर्सरी में पौधों के बीज उगाने और पौधा बनाने की ‘रुट शूट विधि’ सीख ली। जब वे वापस भारत आये तो दो साल बाद उन अंग्रेज वन अधिकारी का तबादला हो गया।
गिधपुरी से की थी शुरूआत, माना जाता
है एशिया का पहला वृहद सागौन प्लांटेशन
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यह 1891 का साल था जब आज के बार नवापारा वन्यजीव अभ्यारण्य से लगे देवपुर फारेस्ट रेंज के अंतर्गत गिधपुरी जंगल का बड़ा हिस्सा कटाई के कारण उजाड़ पड़ा था। मनीराम ने अपनी पत्नी के साथ वहां पौधे लगाने का निश्चय किया।
बताया जाता है कि इस दौरान बर्मा से लौटे एक व्यापारी से उनकी मुलाकात हुई और उसने मनीराम को सागौन के पौधे रोपने का सुझाव दिया और इसके लिए सागौन के बीज उपलब्ध करवाए। यहां पर मनीराम ने इंग्लैंड में सीखी हुई ‘रुट शूट’ पौधारोपण विधि का उपयोग किया और जंगल के 23 एकड़ क्षेत्र में सागौन के पौधे लगा डाले!
इस समय जब पौधारोपण की कोई स्पष्ट नीति नहीं बनी थी, तब मनीराम ने इस उच्च तकनीक ‘रुट शूट प्लांट पद्धति’ से सागौन लगा दिए थे। कहा जाता है कि यह सागौन प्लांटेशन भारत ही नहीं बल्कि एशिया का पहला वृहद सागौन प्लांटेशन था।
अंग्रेजी राज के कानून बने जी का
जंजाल, बिगड़ गया मानसिक संतुलन
लेकिन मनीराम को इस अच्छाई का फल दुःख के रूप में मिलना था। बाद में आये अंग्रेज अफसर ने इस सागौन पौधारोपण को लेकर विभागीय अनुमति के दस्तावेज खोजे तो वह नहीं मिला जबकि मनीराम का पौधारोपण भावनावश था।
विभाग ने इस काम को गैरकानूनी माना और मनीराम को बर्खास्त कर दिया! मनीराम इससे आहत होकर पागलों की तरह भटकने लगे और बाद में उनकी मौत हो गई! स्थानीय दैवीय विश्वासों के अनुसार मरने के बाद उनकी आत्मा जंगल और गांव में भटकती थी इसलिए बैगाओं ने उनकी आत्मा को मनीराम प्लांटेशन के एक पेड़ में पत्थर बनाकर स्थापित कर दिया और विभिन्न त्योहारों में उनकी पूजा की जाने लगी।
स्वतंत्र भारत में मनीराम के नाम हुआ प्लांटेशन
वक्त बीता और स्वतंत्र भारत में वन विभाग द्वारा इस प्लांटेशन का नामकरण मनीराम के नाम पर किया गया। आज 23 एकड़ क्षेत्र में सिर्फ एक एकड़ जगह पर ही मनीराम के लगाए सागौन बहुत कम संख्या में बचे हुए हैं। इन पेड़ों की मोटाई पौने तीन मीटर तक है और ये अपने वजन को और कितने दिन सम्भाल सकेंगे, यह कहा नहीं जा सकता।
इस प्लांटेशन को लेकर लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। बचे हुए पेड़ों को संरक्षित करने के उपायों के साथ इस प्लांटेशन स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना अच्छा कदम होगा। आज मनीराम नहीं हैं पर पूरे देश में उनकी सागौन रोपणी पद्धति का ही अनुसरण किया जाता है। मनीराम जिनकी कद्र तत्कालीन वन विभाग न कर सका, उसे गांववालों ने वनदेवता बना दिया! यह घटना लोक में किंवदंतियों की स्थापना प्रक्रिया पर प्रकाश डालती है।
ऐसे हुई थी मनीराम के नाम पर
राज्यस्तरीय पुरस्कार की स्थापना
छत्तीसगढ़ राज्य में पौधरोपण को बढ़ावा देने के लिए सागौन प्लांटेशन के प्रणेता स्व. मनीराम गोंड़ के नाम से राज्य स्तरीय पुरस्कार स्थापना 22 अगस्त 2018 की गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मनीराम गोंड स्मृति हरियर मितान पुरस्कार की घोषणा की। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने मुख्यमंत्री के इस निर्णय का स्वागत करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया।
गौरीशंकर अग्रवाल ने कसडोल की वसुंधरा समाजिक सेवा संस्थान के निवेदन पर सागौन रोपण पद्घति के प्रणेता स्व. मनीराम गोंड की स्मृति में प्रति वर्ष राज्य स्तरीय पुरस्कार प्रारंभ करने की पहल करते हुए मुख्यमंत्री को अनुशंसा पत्र भेजा था। सामाजिक संस्था द्वारा मनीराम का योगदान विस्तार से लिखित में भेजा गया था। इसके उपरांत राज्य सरकार ने यह पहल की।
वंशजों को 27 साल बाद भी नहीं मिला
जमीन का पट्टा, पौत्र की बेवा भटक रही
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भारत में सागौन प्लांटेशन के जन्मदाता और छत्तीसगढ़ को सागौन का जंगल देने वाले मनीराम गोंड के वंशजों को प्रशासन 27 साल बाद भी जमीन का पट्टा नहीं दे सकी है। मनीराम गोंड ने देवपुर वन परिक्षेत्र के ग्राम गीधपुरी में सरई बाहुल्य वन क्षेत्र में सागौन पौधों का रोपण कर एक अभिनव प्रयोग किया था। उसकी देखरेख में यह सागौन प्लांटेशन प्रदेश ही नहीं पूरे भारत देश का यह पहला सागौन प्लांटेशन था।
मनीराम के वंशज जो आज भी महासमुन्द जिला अंतर्गत पिथौरा ब्लाक के कुम्हारीमुडा ग्राम के निवास कर रहे है। स्व. प्रेमसिंह गोंड उनके पौत्र थे जिन्हें तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 1995-96 में पचास हजार रूपये एवं 10 एकड खेती पं.ह.नं. 24 में खसरा नं. 1312 का तुकडा रकबा 4.00 हे. जमीन दी थी। इसका मालिकाना हक एवं पटटा आज तक उन्हें नही मिल पाया है।
कोई सुध लेने वाला नहीं, राज्यपाल से भी गुहार
शासन से प्राप्त जमीन का पट्टा लेने स्व. प्रेमसिंग की बेवा हीराबाई उम्र लगभग 75 वर्ष शासन प्रशासन से पट्टा की मांग को लेकर चककर लगाते भटक रही है। पर उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है|
ज्ञात हो कि हीराबाई के बूढ़ा ससुर मनीराम गोंड ने सन 1891 देवपुर वन परिक्षेत्र के गीधपुरी गॉव में सर्वोत्तम किस्म का सागौन रोपण कर करोड़ों की सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित किया था। हीराबाई ने बताया कि अब तक किसी भी सरकार ने तत्कालीन सरकारों के वायदे निभाने के प्रयास नही किये।जिससे वे लगातार चक्कर लगाने मजबूर है।
अब प्रदेश में भूपेश सरकार से अपेक्षा है कि उन्हें पट्टा मिल ही जायेगा। दूसरी ओर सर्वआदिवासी समाज के स्थानीय अध्यक्ष मनराखन ठाकुर ने भी राज्यपाल से निवेदन किया है कि इस संबंध में राज्य सरकार को उचित कार्यवाही करने का निर्देश देने की कृपा करें।