आज जन्मदिन:-दक्षिण की इस गायिका ने भारत की तमाम
भाषाओं में गीत गाये, दिग्गज संगीतकारों के साथ किया काम
चेन्नई। गायिका वाणी जयराम का गाया ʺबोले रे पपिहराʺ गीत 5 दशक पहले गाया गया लेकिन आज भी संगीत प्रेमियों के कानों में मधुर रस घोल रहा है। फिल्म संगीत में शायद ही ऐसी कोई और गायिका हो जिसने केवल एक गाने के बल पर इतनी शोहरत और सुनने वालों का प्यार पाया।
इस गीत के अलावा इस गायिका ने मीरा भजन को इस तरह से गाया कि वह आधुनिक भारत की मीरा के नाम से ही मशहूर हो गई। इस गायिका की आवाज में ऐसी कसक थी कि उनके गानों को सुनकर एक अलग ही सुखद अनुभूति होती है। एक समय वाणी जयराम के कई गाने रेडियो पर खूब बजते थे। आज भी जब इन गीतों को आप सुनेंगे तो आप आनंदित हो उठेंगे।
इस गायिका ने वैसे तो सभी भाषाओं में गीत गाए लेकिन दुर्भाग्य से जिन्हें हिन्दी फिल्मों में अधिक मौके नहीं मिल पाए जिसके कारण हिन्दी फिल्म संगीत और खास तौर पर हिन्दी फिल्मों में महिला गायिकी में समुचित विविधता से बंचित रही।
तमिलनाडु के वेल्लोर में 30 नवंबर, 1945 को जन्मीं वाणी जयराम ने भारतीय सिनेमा में अपनी आवाज का ऐसा जादू चलाया, जो आज भी सभी के दिलों में गूंज रहा है। सन् 1970 के दशक के गाने आज भी किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं हैं। उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के गीतों को अपनी मधुर आवाज दी है।
साल 1971 में फिल्म ‘गुड्डी’ में जया भादुड़ी पर फिल्माया गया गीत ‘बोले रे पपिहरा’ ने उन्हें रातोंरात शोहरत दिलाई। यह गीत सुनकर कोई भी भ्रम में पड़ सकता है और एक झटके से कह सकता है, ‘यह लता मंगेशकर की आवाज है।’
हिंदी फिल्म में गाने का उनका सपना तब साकार हुआ, जब संगीतकार वसंत देसाई ने उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित फिल्म ‘गुड्डी’ में तीन गानों के लिए बुलाया।
दरअसल, फिल्म की कहानी के हिसाब से एक ऐसी गायिका की जरूरत थी, जिसे लोगों ने पहले किसी फिल्म में न सुना हो, ताकि गुड्डी के किरदार को पूरा-पूरा न्याय मिल सके। यह गीत आज भी सभी के कानों में मधुर रस घोलता है।
वाणी जयराम की मधुर तान ने सभी को अपनी दिलकश आवाज का दीवाना बना दिया। इस सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत के लिए वाणी जयराम को तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इस गीत ने उन्हें और भी कई पुरस्कार दिलाए।
गुड्डी फिल्म में ही उनका एक और गाना था, ‘हमको मन की शक्ति देना’। यह गाना इतना मशहूर हुआ कि इसे स्कूलों में सुबह की प्रेयर के तौर पर भी गाया जाने लगा। वाणी जयराम ने फिल्म ‘गुड्डी’ के बाद 1972 में फिल्म ‘पाकीजा’ के लिए गाया।
हालांकि पाकीजा में गाए उनके गाने को फिल्म में शामिल नहीं किया गया। इसके बावजूद भी यह गीत बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ और आज भी यह लोकप्रिय है। यह गाना था-‘मोरा साजन सौतन घर जाए’।
महान संगीतकार मदन मोहन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार के साथ उनका एक और गीत आज भी संगीतप्रेमी को मदमस्त कर देता है। यह गाना था फिल्म ‘एक मुठ्ठी आसमान’ का। यह गाना है – ‘प्यार कभी कम ना करना सनम।’ जो सत्तर के दशक में खूब लोकप्रिय हुआ।
उन दिनों ओ पी नैयर के संगीत निर्देशन में ‘खून का बदला खून’ फिल्म का गाना ‘जुल्फ लहराई तो’ खूब लोकप्रिय हुआ था। ‘सोलहवां सावन’ फिल्म के गानों से भी उन्होंने खूब लोकप्रियता बटोरी। 1974 में रिलीज फिल्म ‘धुन की लकीर’ का गाना भी खूब सुना गया।
हिन्दी, तमिल, कन्नड़ और अन्य फिल्मों के गानों में अपनी खूबसूरत आवाज में लाखों दिलों की जीतने वाली मशहूर गायिका वाणी जयराम ने चित्रगुप्त, नौशाद‚ आर डी बर्मन‚ कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और जयदेव के लिए गीत गाए हैं।
1979 में गुलजार की फिल्म ‘मीरा’ के गीत ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। उन्होंने प्रख्यात सितार वादक पंडित रवि शंकर के संगीत निर्देशन में इस फिल्म के लिए 12 से अधिक भजन रिकॉर्ड किए जो बेहद लोकप्रिय हुए और वह आधुनिक भारत की मीरा कहलाने लगी।
इस फिल्म के गीतों के लिए उन्हें 1980 में फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्मी गीतों के अलावा वाणी जयराम ने कई निजी अलबमों के लिए गाया है। इसके अलावा उन्होंने देश और विदेशों के कई संगीत समारोहों की शोभा बढ़ाई है।
रेडियो से हुई गाने की शुरुआत
वाणी जयराम के बचपन का नाम कलाईवाणी है। परिवार में शुरुआत से ही संगीत का माहौल था। छह बहनों में वह सबसे छोटी हैं, उनके तीन भाई हैं। उनकी मां पदमावती ने रंगा रमानुज्म आयंगर से संगीत की शिक्षा ली। वाणी बचपन से ही रेडियो सिलोन सुनती थीं और उनको हिन्दी गाने खास तौर पर आकर्षित करते थे।
आठ साल की उम्र में उन्होंने मद्रास के ऑल इंडिया रेडियो में पहला गाना गाया था। उन्होंने कर्नाटक संगीत की भी विधिवत् शिक्षा ली थी। शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उन्होंने उस्ताद अब्दुल रहमान खान से ली थी। उन्होंने स्वर को अनमोल गीतों में ढालने की कला सीखी। वाणी जयराम ने कुड्डालोर श्रीनिवास आयंगर, टी.आर. बालासुब्रमण्यम और आर.एस मणि के अंतर्गत कर्नाटक संगीत का अध्ययन किया।
वाणी जयराम ने रेडियो सिलोन सुनते हुए अपनी मां से कहा था कि एक दिन उसकी आवाज भी रेडियो सिलोन से गूंजेगी। और उनका सपना साकार हुआ। उनका गाया ʺबोले रे पपिहराʺ रेडियो सिलोन से इतनी बार बजा कि यह एक रेकार्ड बन गया। उनकी शादी टीएस जयरमण के साथ हुई और इसके बाद वह मुंबई में बस गईं।
बचपन में पहचान लेती थी शास्त्रीय संगीत के राग
वाणी जयराम का कहना है कि जब वह पांच साल की थीं, तभी से शास्त्रीय रागों को अलग-अलग पहचान लेती थीं। आठ साल की आयु में उन्होंने पहली बार रेडियो पर गीत गाया था। कर्नाटक और हिंदुस्तानी गायन शैली, दोनों को उन्होंने केवल सीखा ही नहीं, बल्कि समान रूप से महारथ भी हासिल की।
प्लेबैक सिंगर वाणी जयराम ने अपने चार दशक के करियर में काफी नाम कमाया। उन्हें तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिले। उन्हें 1975 में गुजरात, 1980 में तमिलनाडु और 1984 में ओडिशा से सर्वश्रेष्ठ महिला प्लेबैक सिंगर के रूप में कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
पी. सुशीला ट्रस्ट ने वाणी जयराम को हैदराबाद में एक भव्य समारोह में एक प्रशस्ति पत्र और एक लाख रुपये से सम्मानित किया था। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ महिला प्लेबैक सिंगर के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्होंने तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी अपने नाम किए। उन्होंने चार बार राज्य पुरस्कारों सहित कई पुरस्कारों पर अपना नाम अंकित किया।
Birthday wishes to VANI JAIRAM who turned 74
Born as Kalaivani in Vellore, Tamil Nadu; the Veteran multi-lingual playback singer has recorded 10k+ songs.
seen here with S Janaki and Amitabh Bachchan pic.twitter.com/e6l2KRaBX1
— Film History Pics (@FilmHistoryPic) November 30, 2019