आज जयंती पर विशेष
विशेष आलेख/दिलीप कुमार पाठक
हिन्दी सिनेमा में अभिनेता महमूद Actor Mehmood साहब की सिनेमाई यात्रा को याद न किया जाए तो एक प्रमुख चैप्टर से लोग महरूम रह जाएंगे। महमूद साहब ने केंद्र में रहते हुए एक लंबे समय तक दर्शकों का ध्यान खींचा है। उनका कॉमिक, भावनात्मक अभिनय काबिल ए तारीफ बेमिसाल रहा है।
जिक्र ऐसे चलते-फिरते अभिनय इंस्टीट्यूशन का एक ऐसे एक्टर का जिसने अपने शुरुआती दिन मुफ़लिसी और तंगहाली में तो गुजारे, लेकिन जब उन्हें प्रतिभा बिखरने का मौका मिलातो बेशुमार ख्याति हासिल हुई । इसके बाद महमूद साहब ने पीछे पलट के नहीं देखा।
उस एक्टर की एक्टिंग आज भी तमाम एक्टिंग स्कूल्स में सिलेब्स का हिस्सा है,कहने को तो महमूद एक कॉमेडियन थे, मगर किसी स्क्रिप्ट राइटर की स्क्रिप्ट के लिए महमूद कितने ज़रूरी थे, इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि जब बात पेमेंट की आती थी, तो उस आमुक फि़ल्म में काम करने वाले एक्टर के मुकाबले महमूद को कहीं ज्यादा पैसे मिलते थे। साथ ही फिल्म के पोस्टर में हीरो के साथ उनकी तस्वीर लगाई जाती थी, किसी भी कॉमेडियन के लिए यह शिखर था।
29 सिंतबर सन 1932 बंबई में जन्मे महमूद अली पर्दे पर लोगों को हंसाते या फिर रुलाते हुए महमूद के लिए ये कहना शायद अतिशयोक्ति नहीं है कि महमूद जैसा कोई हुआ है और न ही कभी होगा। महमूद के बारे में मशहूर है कि उनका अंदाज ऐसा था कि उन्हें पर्दे पर देखने मात्र से ही दर्शक चहक उठते थे।
अपनी सिनेमाई यात्रा में लगभग 300 फिल्मों में अपनी एक्टिंग का जलवा दिखाते हुए अभिनय का एक मानक स्थापित करते हुए महमूद आज भी सिनेमा के विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए किसी इंस्टिट्यूट से कम नहीं हैं। यह उनका अपना कद है, कमाया तो उन्होंने अपनी मेहनत से लेकिन उनकी सिनेमाई यात्रा अब हम सभी सिने प्रेमियों के लिए साझी विरासत है। हम कितना सहेज पाए हैं, यह एक विमर्श का विषय है।
दर्शकों की तालियां किसी भी कलाकार के लिए ऊर्जा सरीखी होती हैं, ऐसे में जब हम इस सन्दर्भ में महमूद को देखते हैं,तो इस मामले के मद्देनजर महमूद वाक़ई बेमिसाल थे। महमूद के दौर की फिल्मों को देखें तो मिलता है कि फि़ल्म के मेन लीड की अपेक्षा ज्यादा तालियां, प्रशंसा महमूद की झोली में आईं। उस दौर में भी कॉमेडियन के लिए ज्यादा कोई स्पेस नहीं था, लेकिन आप अपनी प्रतिभा के साथ केंद्र में रहते हुए ख्याति तो पाते ही हैं, अपितु एक ट्रेंड मार्क सेट करते हैं। यही शख्सियत महमूद साहब की है।
महमूद के बारे में एक दिलचस्प बात काफ़ी प्रचलित थी, खूब लिखी जाती थी,वो ये थी कि, फि़ल्म में अभिनेता और अभिनेत्री कोई भी हो भले ही कितनी भी बड़ी बजट फिल्म हो चाहे बेशुमार पैसा क्यों न लगा हो, फि़ल्म तब तक हिट नहीं हो सकती, जब तक उसमें महमूद न हों। यह उनकी अपनी निजी कमाई है।
बात अगर महमूद की शख्सियत और अभिनय कौशल की हो तो उस दौर में चाहे दिलीप कुमार, देवानंद, राज कपूर, अशोक कुमार आदि ध्रुव तारे रहे हों, या फिर किशोर कुमार हर कोई महमूद की अभिनय कौशल का दीवाना था। वहीँ महमूद साहब देव साहब, दिलीप साहब, राज कपूर, अशोक कुमार, आदि से थोड़ा दूरी बनाकर रखते थे। उनका कहना था कि मैं इनके बीच अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर सकता।
मुझे अपने लिए एक मुकाम इन दिग्गजों से हटकर बनाना पड़ेगा। बाद में महमूद साहब की नए अभिनेताओं में विनोद खन्ना, अमिताभ बच्चन , विनोद मेहरा, आदि के साथ ट्यूनिंग ज़मी, और क्या खूब ज़मी। इन सभी के लिए उस दौर में महमूद साहब एक अध्यापक की तरह थे। हमेशा अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, विनोद मेहरा आदि को अपने सेट पर बिना रीटेक बिना रिहर्सल अभिनय की सीख देते थे। यह विधा हर कलाकार को मिलती नहीं है। यह एक प्राकृतिक प्रतिभा है। एकाद महमूद जैसे अपनी तपस्या से उसको सिद्ध कर कर लेते हैं।
कहते हैं कि मेहमूद जो भी बोलते थे वो निर्देशकों के लिए परफेक्ट होता था। महमूद बिना रिहर्सल के बिना रीटेक के शॉट देते थे। यह उनकी अदायगी अद्वितीय है। महमूद कहते थे कि मैं हिन्दी सिनेमा के सारे उस्तादों को जानता हूँ कौन कितने पानी में है, दूसरे शब्दों में कहें तो वो सभी कलाकारों के अभिनय कौशल की सीमा जानते थे। कहते थे, किशोर कुमार को समझना बड़ा मुश्किल है। वो कब क्या बोल जाएं और अभिनय की कौन सी लकीर स्थापित कर दें कहना – समझना बहुत मुश्किल है।
वहीँ महमूद किशोर कुमार के जानी दोस्त थे, धर्मेंद्र एवं हरफऩमौला संजीव कुमार के साथ दोस्ती के किस्से आम हैं। उस दौर में महमूद साहब अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, विनोद मेहरा, आदि के प्रशिक्षक के तौर पर थे, जो इन सभी को प्रशिक्षित करते हुए, अत्यंत स्नेह भी देते थे।
आज के दौर में फेयरनेस क्रीम के विज्ञापनों को देखते हुए महमूद याद आते हैं। जिन्होंने सांवले लोगों के लिए एक कालजयी प्रेरणा-गान दिया। महमूद ने जो भी किरदार निभाया। अपनी खास भाव भंगिमाओं के लिए मशहूर महमूद आज भी अपनी लकीरों को क्रॉस करते हुए बहुत दूर खड़े दिखाई देते हैं। आप सिर्फ उनसे सीख सकते हैं, जितना सीखना चाहो।
महमूद साहब केवल अभिनय के लिए ही नहीं जीवन संघर्ष के दिनों में भी लोगों के लिए प्रेरणा हो सकते हैं। कौन सोच सकता है, कि अंडे बेचने वाला से ऑटो चालक से डायरेक्टर पीएल संतोषी के ड्राईवर उसके बाद अपनी प्रतिभा प्रदर्शन से महमूद साहब बन जाएगा।
महमूद को महान एक्ट्रेस मीना कुमारी को टेबल टेनिस सिखाने की नौकरी मिली थी। यह कितना ही उम्दा पक्ष है, प्रशिक्षक का गुण तो उनके अंदर बखूबी था। बाद में महमूद ने मीना की बहन मधु से 4 सितंबर 1953 में शादी की। एक बच्चे का पिता बनने के बाद महमूद ने एक्टिंग की तरफ गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया। देव साहब की सस्पेंस थ्रिलर फिल्म ‘सीआईडी’ 1956 में किलर का एक छोटा सा रोल मिला।
‘सीआईडी’ फिल्म जबरदस्त हिट हुई, लेकिन महमूद के लिए कुछ ख़ास नहीं बदला। कालजयी फिल्मों ‘दो बीघा जमीन’ और ‘प्यासा’ में भी महमूद के रोल थे। किसी ने कोई भाव नहीं दिया। बतौर अभिनेता महमूद की किस्मत का सितारा फिल्म ‘भूत बंगला’ सन 1965 से बुलन्द हुआ। ‘भूत बंगला’ उनके अपने ही डायरेक्शन में बनी।
इस फिल्म में तनुजा उनके अपोजिट थीं। फिल्म की कामयाबी के बाद महमूद को जॉनी वॉकर के बाद कॉमेडी का वारिस कहा जाने लगा।इसके बाद आई ‘पड़ोसन’,सन 1968 ‘लव इन टोक्यो’, ‘आंखें’ और ‘बॉम्बे टु गोवा’ जैसी फिल्मों में महमूद एक स्तंभ बन चुके थे।
पूरी दुनिया को हंसाने वाले मेहमूद की जिंदगी में एक वाक्या हुआ जो उनको झकझोर गया, वो समझ नहीं पा रहे थे, कि बच्चों को किस बात की सज़ा मिलती है। उनके एक बेटे को पोलियो नामक बीमारी थी, वो बहुत दुखी थे। उन्होंने अपनी निजी जिंदगी में एक फिल्म बनाने की सोची फिल्म ‘कुंवारा बाप’।
महमूद ने लगभग तीन सौ से अधिक फि़ल्मों में काम किया। फिर भी अगर हम उनकी फिल्म ‘कुंवारा बाप’ सन 1974 फिल्म की चर्चा न करें तो उनकी सिनेमाई यात्रा अधूरी है। ‘कुवांरा बाप’ फिल्म में महमूद अपनी मध्यमवर्गीय शैली रिक्शे चालक की भूमिका में होते हैं, जो पूर्णता परिपक्व तो नहीं होता, लेकिन उसको फिल्म में एक महीने का अनाथ बच्चा मिल जाता है, जिसको समाज़ के कुछ ठेकेदार उनके गले में डाल देते हैं।
चूंकि वह बच्चा पोलियो नामक बीमारी से पीडि़त होता है। कहानी में वह बच्चा महमूद की जान बन जाता है। जो व्यक्ति पूर्णता परिपक्व नहीं है, वह बच्चे के लालन-पालन में अपनी समर्पित प्रेमिका को भूल जाता है, कि वो उस बच्चे के इर्द-गिर्द अपनी दुनिया बसाएगा।
पूरी फिल्म में आपको शायद ही कहीं रोना न आए, फिल्म के शुरुआती दौर में लगता है, कि यह फिल्म महमूद साहब की शैली के मुताबिक हास्य पर आधारित होगी, लेकिन यह फिल्म भावनात्मक शैली के लिए प्रसिद्ध है। इस फिल्म को अगर सर्वकालिक महान फि़ल्मों में शुमार किया जाए, तो शायद कम ही होगा।
उस समय जब हमारे आस-पास लोग पोलियो जानते भी नहीं रहे होंगे। वहीँ उस दौर में जागरुकता के हिसाब से यह एक सामजिक संदेश देती है। आप सभी महमूद साहब को ‘पड़ोसन’, ‘भूत बंगला’, ‘आँखे’, ‘लव इन टोक्यो’, के लिए जानते होंगे, लेकिन वो ‘कुंवारा बाप’ फिल्म में बेमिसाल अभिनय के कारण मेरे जेहन में अंकित हैं।
सामाजिक सरोकार सद्भाव, सहयोग की भावना अगर नहीं है तो आप कितनी भी अकूत सम्पति कमा लें, लोग आपको क्यों याद करेंगे? वो आपकी सहयोग भावना को याद करते हुए आपको याद करेंगे। दोनों परस्पर बहुत बड़े मित्र थे, मशहूर अभिनेता प्लेबैक सिंगर किशोर दा एवं महमूद साहब की शख्सियत में एक अन्तर गज़़ब की सीख देते हुए अंतर्विरोध को समझाता है। चूंकि दोनों जानी दोस्त थे।
किशोर दा कभी भी पैसे बिना कुछ करते नहीं थे, वहीँ बहुत मूडी किस्म के इंसान थे। या ये कह सकते हैं, कि अत्यंत प्रतिभाशाली आदमी कम समझ आता है, हो सकता है, यही बात किशोर दा में रही हो क्योंकि दुनिया उनको मूडी पागल इंसान कहती थी। वहीँ किशोर दा इस बात पर खूब मज़ा लेते थे, और कहते थे कि यह दुनिया पागल है। मैं इस बात की परवाह कम करता हूँ।
वहीँ महमूद साहब बहुत जिद्दी आदमी कहे जाते थे। उन्हें अपने दौर के बहुत से बड़े – बड़े ऐक्टर डरते थे, या सम्मान करते थे, यह अलग बात है। किशोर दा-मेहमूद साहब में पैसे को लेकर एक अंतर्विरोध है। मैंने एक पुस्तक में पढ़ा महमूद साहब पूछते हैं, कि यार किशोर आप इतने पैसे का क्या करोगे कभी तो पैसे से हटकर सोचिए तो किशोर दा हंसते हुए कहते हैं, कि यार एक बात सुनो मैं अपनी पूरी सम्पति अपने छाती में बांधकर मरूंगा, मैं अपनी मेहनत क्यों छोड़ दूँ। वहीँ महमूद साहब कहते हैं कि यार समाज़ के लिए कुछ तो करना ही चाहिए। हमेशा पैसे के लिए नहीं भागना चाहिए। यह अन्तरविरोध किशोर दा एवं महमूद में था। किशोर दा अपनी बेजोड़ गायन प्रतिभा एवं कालजयी अभिनय के लिए जाने जाते हैं। वही एक कलाकार समाज के लिए सब कुछ तज देता है। तब मुकाम मिलता है। किशोर दा की सिनेमाई यात्रा भी एक पूरा पाठ्यक्रम है। इसलिए भी याद किए जाते हैं,लेकिन महमूद के तर्क का ज़वाब उनके पास नहीं है।
महमूद साहब सच कहते हैं, दूसरे शब्दों में की इस दुनिया में बड़े से बड़े सिकंदर आए और गए, लोग आपको याद तब करते हैं, जब आप समाज़ के लिए कुछ करें। महमूद साहब बहुत ही दरियादिल इंसान थे। अमिताभ बच्चन, के गॉड फ़ादर कहे जाते हैं। वहीँ अपने देहांत से कुछ दिनों पहले महमूद साहब ने एक वीडियो जारी करते हुए अमिताभ बच्चन को अपने बेटे जैसा बताया था।
अमिताभ बच्चन एवं उनका संबंध अपना निजी है। समाज़ में अगर सहयोग की भावना खत्म हो जाए, अगर महमूद साहब जैसे प्रभाव शाली लोग खुद में ही मुब्तिला हो जाएं, तो समाज़ को शायद ही! अमिताभ बच्चन मिलें शायद ही आर डी बर्मन (पंचम दा) मिलें। शायद ही! महान अदाकार मुमताज मिलें। व्यक्ति को अपनी प्रतिभा से हटकर सहयोग, प्रेम की भावना से ही वो मुकाम हासिल हो सकता है, जो महमूद साहब का मुकाम है।
महमूद को आप पढ़ते हुए जितना आप हसेंगे । उससे कहीं अधिक भावुक होंगे, उससे कहीं अधिक सीखेंगे। आप उनकी शख्सियत से सीख सकते हैं। जितना सीखना चाहें। इसीलिए कहा जाता है, कि महमूद साहब अभिनय के चलते-फिरते इंस्टीट्यूशन हैं। वहीँ उनकी सिनेमाई यात्रा आज भी पढ़ाई जाती है। जि़न्दगी के विद्यालय में भी उनकी शख्सियत पढ़ाई जा सकती है। महमूद साहब के लिए आप जितना लिख सकें कम ही है।
सिनेमा एवं जि़न्दगी में रंगमंचन करते हुए अपने जीवन के आखिरी दिनों में महमूद का स्वास्थ्य खराब हो गया। वह इलाज के लिए अमेरिका पेनसिल्वेनिया गए। जहां 23 जुलाई सन 2004 को नींद में ही उनका निधन हो गया। उनकी ख्वाहिश के मुताबिक उनका शरीर मुंबई लाया गया।
जहां फिल्मी दुनिया के लोगों ने अंतिम दर्शन किए और इसके बाद बेंगलुरू में उन्हें उनके पिता और मशहूर अभिनेता व नृत्य कलाकार मुमताज अली की कब्र के बाजू में दफ्न किया गया।