आज जन्मदिन:’औरत ने जनम दिया मर्दों को..’ जैसा गीत रचने वाले
दत्ता नाईक ने चुनिंदा फिल्मों में संगीत देकर अपनी पहचान बनाई
यतींद्र मिश्र/कला और संगीत समीक्षक
गंभीर किस्म का संगीत रचने वाले एन. दत्ता साहब जिनका पूरा नाम दत्ता नाईक है, एक महत्वपूर्ण संगीतकार के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। कम फिल्मों के कैटलॉग से सजा हुआ एन. दत्ता का संगीत संसार इतना प्रबुद्ध रहा है कि आप उनकी धुनों को उठाकर सामाजिक राजनीतिक विमर्श के ढेरों सरोकारों को देख सकते हैं। एन. दत्ता, जिनका अर्थ ही है गम्भीर शब्दावली में लिखे गए गीतों की मानवीयता के पक्ष में सुरीली अदायगी।
एन. दत्ता के करीबी लोगों में साहिर लुधियानवी, बी.आर. चोपड़ा और राज खोसला जैसे दिग्गज शामिल थे, जिसके चलते स्तरीय संगीत और शायरी के प्रति उनका रुझान कुछ अतिरिक्त संजीदा ढंग का बन सका।
Mahendra Kapoor, Yash Chopra, Music Composer N. Dutta and Sahir Ludhianvi. These four worked together in films like DHOOL KA PHOOL (1959) and DHARMPUTRA (1961). Before becoming an independent music director, N. Dutta worked as an assistant for SD Burman. pic.twitter.com/wTpwli0YrG
— Filmy Guftgu (@filmyguftgu) March 4, 2022
उनकी धुनों को सुनते हुए यह समझा जा सकता है कि ग़ज़ल नुमा अभिव्यक्ति में शायरी को अत्यंत गंभीर और मार्मिक अर्थों में बदलने की कला में वे माहिर थे। ‘साधना’ का गीत ‘औरत ने जनम दिया मरदों को’ इस बात की नुमाइंदगी के लिए एक आदर्श गीत का मुकाम रखता है।
इस तरह के गीतों को सुनकर आप आसानी से एन. दत्ता की उपस्थिति को रोशन, ख़य्याम, मदन मोहन और रवि के समकक्ष रखकर देख सकते हैं, जिन लोगों ने इतनी ही स्तरीय ग़ज़लें फ़िल्म संगीत को मुहैया कराई हैं।
Death anniversary Music Director N. Dutta 30-12-1987. Kishore Kumar sang for him as music director 2 movies 9 songs. pic.twitter.com/9ip6PVpL33
— Rajesh Kotia (@RajeshKotiaJi) December 30, 2022
‘मरीन ड्राइव’, ‘धूल का फूल’, ‘साधना’, ‘धर्मपुत्र’, ‘नाचघर’, ‘जालसाज़’, ‘मोहिनी’, ‘मिस्टर जॉन’, ‘दीदी’, ‘ग्यारह हज़ार लड़कियां’ और ‘नया रास्ता’ से गुज़रकर बनने वाली राह थोड़ी संश्लिष्ट, थोड़ी गंभीर और थोड़ी सामाजिक चेतना संपन्न रही है।
उसमें इस बात का भी ध्यान दिया गया है कि जीवन और समाज के रिश्तों को आपसी सामंजस्य से हल कर लिया जाए। उस आदर्शवाद या कि मानवीय चेतना का यह रूप, सिर्फ़ एन. दत्ता ही सुन्दर ढंग से दिखा सकते थे।

एन. दत्ता की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि उन्होंने अपनी धुनों में कई मर्तबा कुछ ऐसे पारंपरिक वाद्यों का सुन्दर इस्तेमाल किया, जो गीत के पूरे उठान को एकाएक कई गुना बढ़ा देते हैं। शहनाई, सारंगी, तबला और ढोलक के साथ वॉयलिन उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है।
गीतों को चपल और खूबसूरत बनाने के लिए एकॉर्डियन और मैन्डोलिन के टुकड़ों से सजाने का मामला हो या कि शायराना अल्फ़ाज़ को बहुत हल्के से रागों की अर्थछायाओं से भरने की कोशिश, हर जगह एन. दत्ता की कम्पोज़ीशन गजब ढंग से प्रासंगिक बनकर उभरी है।
एन. दत्ता ने हमेशा ही कुछ सार्थक रचा. परिचित अंदाज से हटकर रचा, लय और बीट को तरजीह देते हुए भी शब्दों की सुंदरता को करीने से बरकरार रखने के जतन में रचा। फिर वह मुजरा गीत था या कि हलके-फुल्के ढंग से सिनेमाई भाषा के साथ न्याय करता हुआ गीत, हर जगह कुछ हृदयग्राही संगीत जैसे दत्ता साहब की पहचान बन गई थी।

एन. दत्ता ने मेलोडी को इतना अधिक साधा कि हर एक फ़िल्म के लिए उनकी धुनों की अभिव्यक्तियां उतनी ही कोमल व सरस बन बैठी। आप उनके करियर से कोई भी फिल्म चुनें, तो आसानी से यह पाएंगे कि हर दूसरा रेकॉर्ड, कम से कम, एक, दो कर्णप्रिय गीतों से सजा हुआ है।
उनके यहां लता मंगेशकर, मुकेश, मो. रफ़ी, तलत महमूद और आशा भोंसले सभी के लिए उनकी विशिष्ट आवाज़ों की विशिष्ट तर्ज़ें मौजूद थीं, जिन्हें नए सन्दर्भों में वे परख रहे थे।
Here is the second song from Chehre Pe Chehra. N Dutta was the music director. Not many know that he was SD Burman’s assistant and has done brilliant movies like B R Chopra’s Dhool Ka Phool and Dhartiputra among others. This was his last movie.. not a popular song. pic.twitter.com/Qg40BxLFwe
— 🇮🇳Surya – Modiji’s family (@i_desi_surya) October 9, 2022
लता मंगेशकर के लिए तो जैसे एन. दत्ता का संगीत कुछ अलग ही स्तर पर पहुँचा हुआ है। गुणवत्ता और सांगीतिक उत्कर्ष में सब बेजोड़ गीत लता जी के लिए खास ढंग से रचे गए।
एन. दत्ता ने उनके लिए मुजरा गीत, क्लब सॉन्ग और प्रेम की स्नेहिल पुकार की आत्मीय अभिव्यक्तियाँ स्पन्दित की हैं। ‘कहो जी तुम क्या-क्या खरीदोगे’ और ‘ऐ दिल ज़ुबां न खोल’ को इसी सन्दर्भ में याद किया जाना चाहिए।
अस्सी के दशक में होने लगे गायब

तर्ज़ों की उदात्ता बड़े संयम से साधने वाले एन. दत्ता बाद में एक भूले-बिसरे संगीतकार के रूप में ही जाने गए, जिनकी अस्सी की दशक की फ़िल्मों ने कोई बहुत उल्लेखनीय मुकाम हासिल नहीं किया।
यह वही एन. दत्ता साहब थे, जिनकी झूमती हुई ऑर्केस्ट्रेशन और हल्के कोरस की पृष्ठभूमि लिए हुए गीतों ने साठ के दशक में एक बिलकुल अलग ही लीक रची थी.
गंभीर किस्म का संगीत रचने वाले एन. दत्ता
Sahir Ludhianvi on point as usual – this is from Didi (1959). Music director N Dutta. The two were responsible for Tu Hindu Banega Na Musalman Benaga and Aurat ne Janam Diya Mardon Ko as well. This one hasn't got its due like the other two. https://t.co/BXoGEEXS4W
— Karan Bali (@karanbali) January 8, 2020
रागों और वाद्यों के मजेदार खेल से एक नई ही बात निकाल लेने वाले एन. दत्ता को इसलिए भी याद किया जाएगा कि उन्होंने आधुनिक ध्वनि संयोजन पर आधारित तर्ज़ें बनाकर एक अभिनव ढंग का संगीत रचा था, जो नये मुहावरे, नये ऑर्केस्ट्रेशन और नयी मेलोडी का सुन्दर उदाहरण बन सका था। ‘तू हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा’ (धूल का फूल) जैसा महान गीत अपनी विचार प्रवणता में दत्ता साहब ही रच सकते थे।
बनने जा रही बायोग्राफी
प्रसिद्ध संगीतकार दत्ता नाइक के जीवन को अब बड़े पर्दे पर दिखाया जाएगा। यूडली फिल्म्स उनके जीवन पर आधारित बायोपिक ‘एन दत्ता: द अनटोल्ड स्टोरी’ बनाने जा रहा है।
नाइक की पुण्यतिथि पर उनके बेटे रूप नाइक ने इसकी घोषणा की, जो सारेगामा इंडिया लिमिटेड के फिल्म प्रभाग, यूडली फिल्म्स के साथ मिलकर इस फिल्म का निर्माण करने जा रहे हैं। रूप नाइक ने कहा कि उनके पिता की कहानी अनसुनी रह गई है और वह नहीं चाहते कि उनकी निजी और संगीत विरासत अनभिज्ञ रहे।