राज्योत्सव में बस्तरिया भात स्टॉल आकर्षण का केंद्र,हल्बा कचोरा
ग्राम की महिला समूह ने तीन दिन में कमा लिए 32 हजार रूपए
रायपुर। राज्योत्सव में लगा ‘बस्तरिया भात’ स्टॉल लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। आदिवासी संस्कृति से जुड़े व्यंजन की मांग लगातार बढ़ती जा रही।
बस्तर के ग्राम हल्बा कचोरा से आयी जय बजरंग महिला स्वसहायता समूह की मंगली बघेल, माधुरी देवांगन और चंदा देवांगन ने बताया कि राज्योत्सव में तीन दिनों में ही उन्होंने अपने स्टॉल बस्तरिया भात से 32 हजार से अधिक की कमाई कर ली है। उनके द्वारा परोसे जा रहे बस्तरिया खाने को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं।
महुआ लड्डू की डिमांड इतनी ज्यादा है कि हमारा स्टॉक ही खत्म हो गया। हमने बस्तरिया थाली में भात, चीला, आमट, बास्ता सब्जी, माड़िया पेज, बोबो, चाउर भाजा, चपोड़ा चटनी तिखूर बर्फी जैसे व्यंजनों के साथ में महुआ की चाय भी है।
उन्होंने बताया कि चापड़ा यानि लाल चींटी की चटनी की मांग छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में काफी है। Crowds gathered to taste Chapda Chutney, Aamut, Madiya Page, Mahua Ladoo and Basta Sabzi
आदिवासियों का मानना है कि लाल चींटी की चटनी खाने से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में लाल चींटी के औषधीय गुण के कारण इसकी बहुत मांग हैं।
चापड़ा उन्हीं चींटियों से बनाया जाता है जो मीठे फलों के पेड़ जैसे आम पर अपना आशियाना बनाती हैं। आदिवासियों का कहना है कि चापड़ा को खाने की सीख उन्हें अपनी विरासत से मिली है। बस्तर में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में चापड़ा के शौकीन इसे खूब खरीदते हैं।
आमट-आमट बस्तर में बनने वाला पारंपरिक सब्जी हैं। जिसका स्वाद लाजवाब होता हैं। इसे सब्जी में सब्जियों का मिश्रण होता हैं। आमट बिना तेल का बनाया जाता है। बास्ता को लोग औषधीय सब्जी के रूप में पसंद करते हैं इसलिए मांग अधिक है।
गुर बोबो-गुर बोबो बस्तर में अत्यधिक प्रचलित है। गुर बोबो का अर्थ होता है गुर यानी गुड़ और बोबो यानी भजिया। यह बोबो आटे और गुड़ से बनाया जाता है। बोबो सामाजिक कार्यक्रम जैसे जन्म संस्कार, विवाह, मृत्यु संस्कार एवं पारम्परिक तीज त्योहार में उपयोग करते है किया जाता है।