एक जनवरी को साहित्यकार नारायण लाल परमार, संत कवि पवन दीवान और वरिष्ठ पत्रकार/राजनेता चंदूलाल चंद्राकर की जयंती
(आलेख – स्वराज करुण )
देश और समाज के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर देने वाली, छत्तीसगढ़ की तीन महान विभूतियों की जीवन यात्रा को आज याद करने का दिन है। प्रदेश का नाम रौशन करने वाले हमारे ये तीनों सितारे आज भले ही इस भौतिक संसार मे नहीं हैं ,लेकिन उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की चमक हमारी स्मृतियों के क्षितिज पर अपनी रौशनी बिखेर कर आज भी हमें राह दिखाती रहती हैं।
ये हैं संघर्षों की आग और आंच में तपे साहित्यकार नारायण लाल परमार , सत्तर के दशक में अपनी ओजस्वी कविताओं के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के नायक बनकर उभरे संत कवि पवन दीवान और पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रौशन करने वाले चन्दूलाल चन्द्राकर। शायर को गुनगुनाते हुए हम कह सकते हैं कि तीन सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज के दिन।
नारायण लाल परमार
वरिष्ठ साहित्यकार नारायण लाल परमार का जन्म एक जनवरी 1927 गुजरात के अंजार (कच्छ ) में हुआ था। लेकिन आगे चलकर छत्तीसगढ़ की धरती से उनका नाता कुछ ऐसा जुड़ा कि जीवन पर्यंत उनकी पहचान हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के श्रेष्ठतम कवि और लेखक के रूप में बनी रही।
वह छत्तीसगढ़ के ही होकर रह गए। उन्होंने धमतरी जैसे छोटे कस्बाई शहर में रहकर अपनी सुदीर्घ साहित्य साधना से छत्तीसगढ़ को साहित्य के राष्ट्रीय क्षितिज पर गौरवपूर्ण पहचान दिलाई।
उनका निधन 27 अप्रैल 2003 , गृह नगर धमतरी (छत्तीसगढ़) में हुआ। वह बचपन में परिवार के साथ गुजरात से छत्तीसगढ़ आ गए थे।
प्रारंभिक और मिडिल स्कूल तक शिक्षा -गरियाबंद में हुई। आर्थिक कठिनाइयों के कारण पढ़ाई छूट गयी थी। एक इमारती लकड़ी कम्पनी में आठ रुपए मासिक वेतन पर नौकरी की।
फिर कुछ समय तक टाइम कीपर भी रहे। जबलपुर में एक तेल मिल में मुनीम के रूप में भी नौकरी की। फिर सेंट्रल प्रॉविंस डिफेंस बटालियन में सैनिक के रूप में भर्ती हुए। डेढ़ साल बाद बटालियन भंग होने पर रायपुर वापस आ गए। गरियाबंद के पास ग्राम पांडुका के मिडिल स्कूल में अध्यापक के पद पर नियुक्ति मिली।
फिर बागबाहरा में अध्यापक।हुए। स्वाध्याय से बी.ए . और एम .ए. किया । वर्ष 1966 में धमतरी कॉलेज में हिन्दी प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए। इसी कॉलेज में पदोन्नत होकर हिन्दी विभागाध्यक्ष बने और वहीं सेवा निवृत्त हुए।
परमार जी की साहित्यिक उपलब्धियां बहुत व्यापक हैं। उन्होंने वर्षों तक हिन्दी और छत्तीसगढ़ी ,दोनों ही भाषाओं साहित्य सृजन किया।
कविता ,कहानी ,उपन्यास और नाट्य विधाओं में उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं। आंचलिक और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में बड़ी संख्या में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन हुआ। समय -समय पर आकाशवाणी से भी रचनाओं का प्रसारण होता रहा।
उनकी छोटी -बड़ी लगभग चालीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रमुख प्रकाशित कृतियां-उपन्यास–(1)प्यार की लाज (2) छलना और (3) पूजामयी । कहानी संग्रह -(1) अमर नर्तकी और (2) अटकलों के बीच । काव्य संग्रह -(1) कांवर भर धूप (2) रोशनी का घोषणा पत्र (3) खोखले शब्दों के ख़िलाफ़(4)सब कुछ निस्पंद है (5) कस्तूरी यादें और (6) विस्मय का वृन्दावन।
छत्तीसगढ़ी नाट्य साहित्य – प्रमुख एकांकी -(1)लेड़गा सरपंच (2)अनमोल मोती (3) ठग विद्या (4)घुरवा ला बनाव सोन्ना (5) हिम्मत ला झन हारो (6)छींक परगे (7) मतवार। छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह (1) सुरुज नइ मरय , छत्तीसगढ़ी एकांकी संग्रह-मतवार अउ दूसर एकांकी।
बाल साहित्य के अंतर्गत (1) बच्चों के लिए छत्तीसगढ़ी गीत नाटिका-पानी आगे (2) पन्द्रह अगस्त (एकांकी संग्रह )(3) छत्तीसगढ़ की लोककथाएं (4)चरित्र बोध की कहानियां (5)बचपन की बांसुरी और (6) पंचतन्त्र का अनुवाद -चार मित्र का प्रकाशन हुआ।
उनकी कुछ हिन्दी कविताएँ सहयोगी काव्य संग्रह-नये स्वर (लेखक सहकारी संघ ,रायपुर द्वारा)में अप्रैल 1956 में प्रकाशित की गयी थीं। यह छत्तीसगढ़ के छह युवा कवियों का संयुक्त संकलन था।
इसमें परमार जी सहित हरि ठाकुर ,गुरुदेव चौबे काश्यप, सतीश चन्द्र चौबे ,ललित मोहन श्रीवास्तव और देवीप्रसाद वर्मा ‘बच्चू जांजगीरी’ की रचनाएं शामिल हैं।
हालांकि इसमें परमार जी की जन्म तारीख 31 दिसम्बर 1927 छपी हुई है ,लेकिन उनके अधिकांश प्रकाशनों में उनके जन्म दिन के रूप में एक जनवरी 1927 की तारीख़ अंकित है। बहरहाल ,उन्हें जन्म दिन पर विनम्र नमन।
पवन दीवान
पवन दीवान संत कवि के नाम से लोकप्रिय हुए। उनका जन्म एक जनवरी 1945 को महानदी के किनारे तीर्थ क्षेत्र राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन को उनकी हिन्दी और छत्तीसगढ़ी कविताओं ने नई ऊर्जा दी ।
उनकी हिन्दी कविताओं का संग्रह ‘अम्बर का आशीष ‘ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ,जिसका विमोचन उनके जन्म दिन पर पहली जनवरी 2011 को राजिम स्थित संस्कृत आश्रम में हुआ था विमोचन समारोह में मुझे भी शामिल होने का सौभाग्य मिला था।
लोकप्रिय कवि होने के साथ -साथ वे एक लोकप्रिय भागवत कथावाचक और प्रवचनकर्ता भी थे । राजिम से विधायक निर्वाचित होकर वर्ष 1977-79 तक मध्यप्रदेश सरकार के जेल मंत्री रह चुके थे । महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी निर्वाचित हुए थे।
ब्रेन हेमरेज के कारण 3 मार्च 2016 को गुड़गांव के एक प्राइवेट अस्पताल में संत कवि पवन दीवान का निधन हो गया। परमार जी और दीवान जी दोनों ने अपनी लेखनी से भारतीय साहित्य जगत में छत्तीसगढ़ को नई पहचान और प्रतिष्ठा दिलाई ।
साहित्य आकाश के दोनों सितारों ने कवि सम्मेलनों के मंचों को भी अपनी रचनाओं की चमक से वर्षों तक आलोकित किया । आज दोनों पुण्यात्माओं को उनकी जयंती पर शत -शत नमन।
चन्दूलाल चन्द्राकर
देश के वरिष्ठतम पत्रकार , छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र , पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय चन्दूलाल चन्द्राकर को आज पहली जनवरी को उनकी 100 वीं जयंती पर शत-शत नमन।
उनका जन्म एक जनवरी 1921 को दुर्ग जिले के ग्राम निपानी में हुआ था । उन्होंने स्नातक शिक्षा राबर्टसन कॉलेज जबलपुर से प्राप्त की। वर्ष 1945 में नई दिल्ली में पत्रकारिता से जुड़े।
अपनी प्रतिभा के बल पर राष्ट्रीय दैनिक ‘हिन्दुस्तान ‘ के सम्पादक बने । द्वितीय विश्वयुध्द के दौरान विदेशी युद्ध भूमि से जीवन्त रिपोर्टिंग ने उन्हें और भी ज्यादा ख्याति दिलाई। उन्होंने 9 बार ओलम्पिक खेलों की और 3 बार एशियाई खेलों की भी रिपोर्टिंग की।
वर्ष 1970 में पहली बार छत्तीसगढ़ के दुर्ग क्षेत्र से लोकसभा के सांसद चुने गए । उन्होंने पांच बार सांसद के रूप में लोक सभा में दुर्ग क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1980 से 1982 तक केंद्रीय पर्यटन और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री और वर्ष1985- 86 में केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री रहे।
इसके पहले उन्होंने वर्ष 1964 से 1970 तक भारत सरकार के प्रिटिंग प्रेस कर्मचारी संघ के अध्यक्ष पद का भी दायित्व संभाला । छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए गठित सर्वदलीय मंच के अध्यक्ष के रूप में भी उनका सार्थक योगदान रहा । उनका निधन 2 फरवरी 1995 को हुआ।