दलहनी फसलों के अनुसंधान एवं विकास पर आयोजित
राष्ट्रीय कार्यशाला में कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने दी जानकारी
रायपुर। प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे Agriculture Minister Ravindra Choubey ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में दलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दलहन उगाने वाले किसानों को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिसके तहत धान की जगह दलहन उत्पादन करने वाले किसानों को प्रति एकड़ नौ हजार रूपये का अनुदान दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा किसानों से अरहर एवं उड़द की खरीदी समर्थन मूल्य 6600 रूपये की जगह 8000 रूपये प्रति क्विंटल की दर पर की जा रही है।
राज्य सरकार के प्रयासों से पिछले वर्षों में राज्य में दलहन के रकबे एवं उत्पादन बढ़ोतरी हुई है और आज 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहन फसलों की खेती की जा रही है जिसके आगामी दो वर्षों में बढ़कर 15 लाख हेक्टेयर होने की उम्मीद है।
उन्होंने छत्तीसगढ़ के किसानों से ज्यादा से ज्यादा रकबे में दलहनी फसलें उगाने का आव्हान किया। चौबे आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर Indira Gandhi Agricultural University Raipur द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली Indian Council of Agricultural Research New Delhi के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक Two Day Rabi Pulses Workshop and Annual Group Meeting का शुभारंभ कर रहे थे। चौबे ने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के कृषि विकास में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के योगदान की विशेष रूप से सराहना की।
शुभारंभ समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष सुरेन्द्र शर्मा, शाकम्भरी बोर्ड के अध्यक्ष रामकुमार पटेल, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा, सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव शर्मा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर Indian Pulses Research Institute Kanpur के निदेशक डॉ. बंसा सिंह, भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद Indian Paddy Research Institute Hyderabad के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम तथा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय प्रबंध मण्डल के सदस्य आनंद मिश्रा भी उपस्थित थे।
समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल Vice Chancellor Dr. Girish Chandel ने की। इस दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला में चना, मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा एवं मटर का उत्पादन बढ़ाने हेतु नवीन उन्नत किस्मों के विकास, अनुसंधान एवं उत्पादन तकनीकी पर विचार-मंथन किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि देश में दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास हेतु कार्य योजना एवं रणनीति तैयार करने के लिए आयोजित इस दो दिवसीय कार्यशाला एंव वार्षिक समूह बैठक में देश के विभिन्न राज्यों के 100 से अधिक दलहन वैज्ञानिक शामिल हुए हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा भारत को दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने एवं इसका आयात कम करने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप देश में इस वर्ष 2 करोड़ 80 लाख मीट्रिक टन दलहन उत्पादन होने की संभावना है।
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में देश में 1 करोड़ 60 लाख मीट्रिक टन दलहन का उत्पादन होता था। उनहोंने दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसकी रोगरोधी एवं उन्नतशील किस्में उगाने तथा यंत्रीकरण के उपयोग में वृद्धि करने पर जोर दिया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा कि धान के कटोरे के रूप में प्रख्यात छत्तीसगढ़ आज दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है।
उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दलहनी फसलों की नवीन उन्नतशील किस्में विकसित किये जाने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में उगाई जाने वाली तिवड़ा की फसल खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में दलहनी फसलों पर अनुसंधान एवं प्रसार कार्य हेतु तीन अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं – मुलार्प फसलें (मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा, मटर), चना एवं अरहर संचालित की जा रहीं है जिसके तहत नवीन उन्नत किस्मों के विकास, उत्पादन तकनीक एवं कृषकों के खेतों पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का कार्य किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय द्वारा अबतक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोगरोधी कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है जिनमें मूंग की 2, उड़द की 1, अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा छत्तीसगढ़ की प्रमुख दलहन फसल तिवड़ा की दो उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जो मानव उपयोग हेतु पूर्णतः सुरक्षित है। डॉ. चंदेल ने कहा कि दलहनी फसलों में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने हेतु विश्वविद्यालय द्वारा नए कृषि यंत्र विकसित किए जा रहे हैं।
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना चना के परियोजना समन्वयक डॉ. जी.पी. दीक्षित Project Coordinator of All India Coordinated Research Project Chana Dr. GP Dixit तथा अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना मुलार्प के परियोजना समन्वयक डॉ. आई.पी. सिंह All India Coordinated Research Project MULARPP Project Coordinator Dr. IP Singh ने इन परियोजनाओं के अंतर्गत देश भर में किये जा रहे कार्याें एवं उपलब्धियों की जानकारी दी।
कार्यशाला के दौरान विभिन्न तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जा रहा है, जिनमें दलहनी फसलों की नवीन उन्नतशील किस्मों का विकास, फसल उत्पादन, फसल सुरक्षा, बीज उत्पादन तथा अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन आदि प्रमुख हैं। शुभारंभ सत्र के दौरान इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया।
इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान डॉ. विवेक त्रिपाठी, निदेशक प्रक्षेत्र एवं बीज डॉ. पी.के. चन्द्राकर, निदेशक शिक्षण डॉ. एस.एस. सेंगर, अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. जी.के. श्रीवास्तव, कृषि महाविद्यालय रायपुर के अधिष्ठाता डॉ. के.एन. नंदेहा, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, वैज्ञानिक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।