सड़क, बिजली, पानी, राजस्व, उद्योग के भी फैसले लेंगी ग्राम
सभाएं,प्रदेश की 32% आबादी में आदिवासियों का दबदबा
रायपुर। छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल एक और बड़े वादे को पूरा कर दिया है। गुुरुवार 7 जुलाई को कैबिनेट ने पेसा कानून पर मुहर लगा दी। इसका प्रदेश में बड़ा राजनीतिक महत्व है।
पेसा यानि अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (पेसा) अधिनियम 1996, Panchayat Extension to Scheduled Areas (PESA) Act 1996 कहलाता है। सरकारी फैसले के बाद इसका असर सरगुजा, रायगढ़, बस्तर और कांकेर लोकसभा क्षेत्र समेत 29 विधानसभा क्षेत्रों पर होगा। वहीं 32 फीसदी आबादी यानी 80 लाख जनसंख्या वाले 85 जनपद पंचायतों में आदिवासियों का दबदबा होगा। पेसा 5वीं अनुसूची में शामिल अनुसूचित क्षेत्रों के लिए है।
छत्तीसगढ़ में साल 1996 से पेसा कानून बनाने की जद्दोजहद चल रही थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव को यह जिम्मेदारी दे रखी थी। सिंहदेव ने प्रदेश का दौरा भी किया। सरगुजा से बस्तर तक सामाजिक संगठनों और जन प्रतिनिधियों से चर्चा कर राय व सुझाव लिए। बताते हैं कि केंद्र सरकार ने 1996 में नार्थ-ईस्ट के सात राज्यों समेत दस आदिवासी बहुल राज्यों को अपने प्रदेश की व्यवस्था के अनुसार पेसा कानून बनाने की इजाजत दी थी।
केंद्र ने पहले ही दिया था मॉडल, पर लागू नहीं किया गया
केंद्र की ओर से इसका मॉडल भी दिया गया था, लेकिन न तो अविभाजित मध्यप्रदेश में और न ही छत्तीसगढ़ में अब तक इस पर अमल किया जा सका था। नए पेसा कानूनों के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों की 85 जनपदों की कमेटियों में 50 प्रतिशत या इससे अधिक आदिवासी होंगे। बाकी गैर अनुसूचित जनपदों में एससी, एससी, ओबीसी सदस्यों की आबादी के अनुपात से नियुक्तियां होंगी। विधानसभा के पावस सत्र में इस कानून को पारित करने के बाद राज्य में लागू कर दिया जाएगा।
नए कानून में ये खास बातें
बताया गया कि नए पेसा कानून में ग्राम सभाओं को आईपीसी के तहत 26 अधिकार दिए गए हैं। इसमें न्याय करना भी शामिल है।
पेसा कानून का ड्राफ्ट 20 पेज का है। न्याय के अधिकार की खास बात यह है कि संतुष्ट न होने पर फरियादी को अपील करने का प्रावधान रखा है।
ग्रामसभा के अध्यक्ष का कार्यकाल एक साल का होगा। इसमें रोटेशन से पुरुष व महिला एक-एक वर्ष के लिए अध्यक्ष बन सकेंगे।
सरपंच व उप सरपंच आदि को ग्रामसभा में पद नहीं मिलेगा। केवल गांव के सामान्यजन ही इसमें शामिल होंगे। पंचायती राज व्यवस्था के पर्यवेक्षण का काम भी ये सभाएं कर सकेंगी।
गांवों में रहने वाले सभी वर्गों, समुदायों के लोगों की संस्कृति, रीति-रिवाजों को पेसा में संरक्षण दिया गया है।
ग्राम सभाएं अपनी जरूरत के अनुसार शांति समिति, वित्त समिति जैसी कमेटियां बना सकेंगी। वे अपने गांवों की आमदनी बढ़ाने के उपाय भी कर सकेंगी।
राहुल-सीएम के भी सुझाव शामिल
पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया कि इसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सुझाव भी शामिल हैं। इसमें मुख्यमंत्री, मंत्रियों ने बड़ी मेहनत कर सरकार के लक्ष्य को पूरा किया है। नए पेसा कानून से ग्राम सभाएं मजबूत होंगी। गांव का अंतिम छोर का इंसान भी शक्तिशाली बनेगा। विशेष बात यह है कि समय परिस्थिति, काल के अनुसार अब इन नियमों को संशोधित भी किया जा सकेगा।
ये सुविधाएं भी मिलेंगी
गौण खनिजों पर अधिकार
प्रमाणपत्र बनाने में आसानी
ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना ग्राम पंचायतों में निर्णय नहीं
सड़क, बिजली, नाली आदि के बुनियादी फैसले भी
राजस्व, उद्योग, वन, खनिज, से संबंधित फैसले ग्रामसभा लेगी
ये हैं विधानसभा सीटें
भरतपुर – सोनहट, प्रतापपुर, रामानुजगंज, सामरी, लुंड्रा, सीतापुर, पत्थलगांव, जशपुर, कुनकुरी, लैलूंगा, धरमजयगढ़, रामपुर, पाली -तानाखार, मारवाही, बिंद्रानवागढ़, सिहावा, डौंडीलोहारा, मोहला -मानपुर, अंतागढ़, केशकाल, भानूप्रतापपुर, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, चित्रकोट, जगदलपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर व कोंटा।
भ्रम दूर होगा – नेताम
सर्व आदिवासी समाज के पूर्व अध्यक्ष बीपीएस नेताम ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्र में पेसा लागू होने में विलंब की वजह गैर आदिवासी इसके पक्ष में नहीं थे। उन्हें भ्रम था कि उन्हें कहीं वहां से बाहर न कर दिया जाए, जबकि ऐसा नहीं होना है। अब आदिवासी इलाकों का तेजी से विकास हेगा।