मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारने और फसल
उत्पादन बढ़ाने में उपयोगी है जिप्सम
जिप्सम के उपयोग से तिलहनी, दलहनी व अनाज वाली फसलों के उत्पादन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के साथ-साथ भूमि का स्वास्थ्य भी बना रहता है। जिप्सम पोषक तत्व गंधक का सर्वोत्तम व सस्ता स्त्रोत है एवं बाजार में आसानी से उपलब्ध है।
खेतों के लिए उपयोगी है जिप्सम
पौधों के लिए नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के बाद गंधक चौथा प्रमुख पोषक तत्व है। एक अनुमान के अनुसार तिलहनी फसलों के पौधों को फॉस्फोरस के बराबर मात्रा में गंधक की आवश्यकता होती है। कृषकों द्वारा प्राय: गंधक रहित उर्वरक जैसे डीएपी एवं यूरिया का अधिक उपयोग किया जा रहा है और गंधक युक्त सिंगल सुपर फॉस्फोरस का उपयोग कम हो रहा है। साथ ही अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों द्वारा जमीन से गंधक का अधिक उपयोग किया जा रहा है। एक ही खेत में हर वर्ष तिलहनों एवं दलहनी फसलों की खेती करने से खेतों में गंधक की कमी हो जाती है।
जिप्सम की मात्रा का ध्यान रखें किसान
गंधक की इस कमी को दूर करने एवं अच्छी गुणवत्ता का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने बुआई से पहले 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से खेत में मिलाने की सिफारिश की है। जिप्सम में 13.5 प्रतिशत गंधक तथा 19 प्रतिशत केल्शियम तत्व पाये जाते है। क्षारीय भूमि सुधार हेतु मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर जिप्सम का उपयोग कर मिट्टी की दशा सुधारी जा सकती है।
तिलहनी फसलों में जिप्सम का इस्तेमाल
राज्य में बोयी जाने वाली रबी की सरसों, तारामीरा अलसी, कुसुम आदि तथा की फसल मूंगफली, तिल, सोयाबीन एवं तिलहनी फसलों में गंधक के उपयोग से दानों में तेल की मात्रा में बढ़ोतरी होती है साथ ही दाने सुडौल एवं चमकीले बनते हैं। जिसके कारण तिलहनी फसलों की पैदावार में 10 से 15 प्रतिशत बढ़ोतरी हो सकती है।
दलहनी फसलों में जिप्सम है उपयोगी
दलहनी फसलों में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। प्रोटीन के निर्माण के लिए गंधक अति आवश्यक पोषक तत्व है। इससे दलहनी फसलों में भी दाने सुडौल बनते हैं व पैदावार बढ़ती है। यह पौधों की जड़ों में स्थित राइजोबियम जीवाणु की क्रियाशीलता को बढ़ाती है जिससे पौधे वातावारण में उपस्थित नत्रजन का अधिक से अधिक उपयोग कर सकें।