दुर्ग में ‘क्रिएटिंग होप थ्रू एक्शन’ थीम पर 10 सितम्बर
को मनाया जाएगा विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस
दुर्ग। “जिंदगी को जी कर देखिए, यह बहुत खूबसूरत है।“ ऐसे ही संदेश के साथ जिंदगी के प्रति उत्साह जगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। अस्पताल, पुलिस थाना और स्कूल-कॉलेज जैसी जगहों पर लोगों को समझाया जा रहा है कि तनाव को भूल जाइए और फिर देखिए, जिंदगी कितनी खूबसूरत है।
आत्महत्या की दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से हर वर्ष 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस मौके पर तनाव प्रबंधन, आत्महत्या की घटना के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारणों तथा इससे बचाव के प्रभावशाली उपायों पर चर्चा कर जागरूकता का प्रयास किया जाता है ताकि आत्महत्या की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सके तथा अवसाद से पीड़ित को सकारात्मक वातावरण देकर असमय मौत का रास्ता अपनाने से रोका जा सके।
यह दिवस इस वर्ष ‘क्रिएटिंग होप थ्रू एक्शन’ यानी ‘गतिविधि के माध्यम से आशा का संचार करना’ थीम पर मनाया जाएगा।
इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जेपी मेश्राम ने बतायाः अवसाद, आत्महत्या का मुख्य कारण होता है। इस पर नियंत्रण के लिए मानसिक स्वास्थ्य की सेवाएं हर जिला अस्पताल के स्पर्श क्लिनिक में निशुल्क उपलब्ध हैं।
वहीं प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर तैनात चिकित्सकों को मानसिक रोगियों की पहचान एवं उपचार के लिए निमहांस बेंगलुरु (National Institute of Mental Health and Neurosciences) द्वारा प्रशिक्षित किया गया है।
इसके अतिरिक्त मितानिन को भी मानसिक रोगियों की पहचान करने का प्रशिक्षण दिया गया है। सबसे अच्छी बात यह है कि मानसिक रोगियों की पहचान गुप्त रखी जाती है क्योंकि इस रोग से बहुत-सी नकारात्मक भ्रांतियां भी जुड़ी हुई हैं।
मानसिक अवसाद या मानसिक तनाव का पूर्ण रूप से उपचार किया जा सकता है। इसके लिए अपने परिवार, मित्र एवं मनोरोग विशेषज्ञ की मदद लेकर तथा उनके द्वारा बताए गए उपायों को अपनाकर मानसिक तनाव से बचा जा सकता है।
तनाव प्रबंधन से रोकी जा सकती
है आत्महत्या:डॉ आकांक्षा
इस बारे में जिला अस्पताल की मनोरोग चिकित्सा विभाग प्रमुख डॉ.आकांक्षा गुप्ता दानी ने बताया “आत्महत्या से जुड़ी घटनाओं के अध्ययन में अधिकांशतः यह पाया गया है कि मादक पदार्थों का सेवन, जुए की लत, गरीबी, बेरोजगारी, पारिवारिक समस्या, मानसिक विकार, कार्यक्षेत्र में असफलता, प्रेम प्रसंग में असफलता, अवसाद, अपने प्रियजनों की आकस्मिक मृत्यु या उनसे दूरी, सामाजिक निरादर एवं उपेक्षा तथा घातक रोग एवं यौन शोषण जैसे विषय ही आत्महत्या का कदम उठाने के प्रमुख कारण हैं।
जबकि तनाव प्रबंधन के माध्यम से आत्महत्या की घटनाओं को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।”
आगे उन्होंने बतायाः “आत्महत्या रोकथाम के लिए सबसे पहले पीड़ित के लक्षणों को पहचानना जरूरी है। किसी के मन-मस्तिष्क में यदि नकारात्मक विचार पनप रहे हों तो इसके लक्षण किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाते हैं।
इसके अलावा अकेलापन महसूस करना, अकेले में समय बिताना, दिनचर्या एवं खान-पान में परिवर्तन, सही गलत की पहचान न होना, अत्यधिक मदिरा सेवन एवं अपने आप को निम्न कोटि का समझने वाले लोगों में भी आत्महत्या के विचार आ सकते हैं इसलिए ऐसे व्यक्तियों के लक्षणों को पहचान कर विशेषज्ञों से परामर्श लेने पर आत्महत्या की घटना को रोका जा सकता है।”
यह हैं एन.सी.आर.बी. के आंकड़े
एन.सी.आर.बी. (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) 2021 के आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में 1 लाख लोगों में 26.4 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि पूरे भारत में 1 लाख की आबादी पर यह औसत 12 है।
छत्तीसगढ़ की यह संख्या राष्ट्रीय औसत के दोगुने से भी ज्यादा है। इसको कम करने के लिए ही आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है और इस दिवस पर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जाता है।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा भी आत्महत्या रोकथाम हेतु विशेष प्रयास किये जा रहे हैं जिसके क्रम में सरकार द्वारा स्पर्श क्लिनिक की स्थापना की गयी है।
इन क्लीनिकों के माध्यम से आत्महत्या का प्रयास करने वाले एवं अन्य मानसिक समस्याओं से जूझ रहे व्यक्तियों का उपचार किया जा रहा है और उनको एक बेहतर जीवन देने का प्रयास किया जा रहा है।
परेशानी छिपाकर न रखें
अपनी किसी भी परेशानी को दबाकर या छिपाकर न रखें बल्कि इसे अपने परिवार या दोस्तों के साथ साझा करें।
वहीं परेशानी समझने के बाद परिवारवालों एवं दोस्तों का यह कर्त्तव्य है कि उस परेशानी का निराकरण करने का प्रयास करें। अगर व्यक्ति के अंदर आत्महत्या के विचार आ रहें हैं तो उसको ऐसे विचार त्यागने को कहें ऐसे व्यक्ति के साथ रहें और उसके साथ समय बिताएं।
ऐसे व्यक्ति को समझाएं कि आप हमेशा उसके साथ हैं और ऐसे विचार अपने मन में न लाएं।
साथ ही ऐसे व्यक्ति का हमेशा ध्यान रखें वह क्या करता है, कहां जाता है, किससे बात करता है, क्या बात करता है उसकी बातों को सुनें एवं उसके लिए जो भी आवश्यक हो वह करें।
मानसिक एवं अन्य परेशानियों के लक्षण पाए जाने पर तुरंत पर मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
सांसों की गति से मिलता है संकेत
तनावपूर्ण दशा में पीड़ित काफी तेजी से या काफी छोटी सांसें लेता है, लेकिन तनावमुक्त रहने पर वह आराम से धीरे-धीरे सांस लेता है। यानी तनाव की स्थिति में पीड़ित को धीरे-धीरे और लंबी सांस लेने पर जोर देना चाहिए।