आज जन्मदिन पर विशेष-पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म से
60 वर्षों तक की अभिनय यात्रा की है शिवकुमार दीपक ने
आलेख-अरुण कुमार निगम
वारे मोर पंडकी मैना, तोर कजरेरी नैना,मिरगिन कस रेंगना तोर नैना,मारे वो चोखी बान, हाय रे तोर नैना…दाऊ रामचंद्र देशमुख कृत चंदैनी गोंदा के एक दृश्य में छत्तीसगढ़ का एक नव-विवाहित युवा सैनिक “शिव”, देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर तैनात है।
वहाँ उसे जीवन संगिनी का पत्र मिलता है जिसके शब्द-शब्द में उसकी सूरत दिखाई दे रही है और वह कुछ पल के लिए उसी की यादों में खो गया है। पार्श्व में लक्ष्मण मस्तुरिया की भावपूर्ण आवाज में उन्हीं का लिखा एक गीत बज रहा है – वा रे मोर पंडकी मैना…..विरह घुले इस श्रृंगार गीत में जनमानस संवेदित हो उठा है।
चंदैनी गोंदा का दूसरा दृश्य-खलिहान में आई फसल को महाजन बोरियों में भर कर ले जा रहा है। युवा “शिव” ने आक्रोशित होकर महाजन के गले में “कलारी” को फँसा दिया है। दुखित उसे ऐसा करने से रोकता है। बड़ी मुश्किल से “शिव” अपने आक्रोश पर काबू पाता है।
फिर पार्श्व से लक्ष्मण मस्तुरिया के स्वरों में आक्रोश, गीत बन कर प्रस्फुटित हो गया है – जुच्छा गरजै म बने नहीं, अब गरज के बरसे बर परही। चमचम चमकै मा बने नहीं, बन गाज गिरे बर अब परही। जनमानस के मन में भी शोषक के प्रति आक्रोश आंदोलित हो रहा है।
चंदैनी गोंदा का तीसरा दृश्य-हरितक्रान्ति बाई मंच पर एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत है। हास्य के साथ ही व्यंग्य के तीर भी चल रहे हैं। जनमानस हँसते हुए लोटपोट हुआ जा रहा है। यह हरितक्रान्ति बाई और कोई नहीं वही युवक “शिव” है जो महिला-पात्र की भूमिका बखूबी निभा रहा है।
शौर्य, श्रृंगार, आक्रोश और हास्य के विविध भावों के साथ सम्पूर्ण न्याय करता युवक “शिव” कोई और नहीं बल्कि आज से 89 वर्ष पूर्व दुर्ग जिले के छोटे से ग्राम पोटिया कला में जन्मा बालक “शिवकुमार साव” है। शिवकुमार साव कहने से अनजाना सा नाम लग रहा होगा आपको। शिव कुमार “दीपक” कहूंगा तो फौरन पहचान जाएंगे। दरअसल “शिवकुमार साव” और शिव कुमार “दीपक” एक ही व्यक्ति के नाम हैं।
बचपन में भाग-भाग कर, छुप-छुप कर नाचा और लीलाएँ देखने का शौक बालक शिवकुमार की नैसर्गिक प्रतिभा के लिए उर्वरक का काम करता रहा और मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे नागपुर में आयोजित “अखिल भारतीय युवक महोत्सव” में जीवन-पुष्प (मोनो प्ले) में श्रेष्ठ अभिनय के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जी करकमलों से सम्मानित हुए। इसी समय पं. जवाहरलाल नेहरू जी ने उन्हें दिया “दीपक” उपनाम और इस प्रकार वे शिवकुमार साव से शिवकुमार “दीपक” बन गये।
शिवकुमार “दीपक” द्वारा रचित तथा अभिनीत मोनो प्ले-जीवन-पुष्प, हरितक्रान्ति, सौत झगरा, छत्तीसगढ़ महतारी, छत्तीसगढ़ रेजीमेंट, बीस सूत्री, लमसेना, चक्कर भिलाई का दर्शकों के सिर चढ़ कर बोलने लगे। उनकी लोकप्रियता और अभिनय क्षमता के कारण 1965 में उन्हें प्रथम छत्तीसगढ़ी फ़िल्म “कहि देबे संदेश” में महत्वपूर्ण भूमिका मिली। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ी फ़िल्म “घर-द्वार” में अभिनय किया। इन दोनों फिल्मों के बाद छत्तीसगढ़ी फिल्मी जगत में लगभग 30 वर्षों का लंबा सन्नाटा रहा।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माण में भी गति आई और दीपक जी ने मोर छैंया भुइयाँ, मया देदे-मया लेले, परदेसी के मया, तोर मया के मारे, कारी, टूरी नंबर 1, लेड़गा नंबर 1, दो लफाड़ू, टेटकुराम, मयारू भौजी, तीजा के लुगरा, ये है राम कहानी, तहूँ दीवाना, धरती मइया, मितान 420, धुरंधर, सोन चिरइया, बाँटा, सलाम छत्तीसगढ़, भोला छत्तीसगढ़िया आदि लगभग 50 छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अभिनय किया।
छत्तीसगढ़ी के अलावा उन्होंने मालवी भाषा की फ़िल्म मादवा माता, भोजपुरी फ़िल्म सीता तथा गाँव आजा परदेसी, हिन्दी फीचर फिल्म हल और बंदूक तथा सौभाग्यवती में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि शिवकुमार दीपक जी ने अफगानी फ़िल्म में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। लगभग 50 फीचर फिल्मों के अलावा उन्होंने लगभग 25 वीडियो फिल्मों में भी सशक्त अभिनय अभिनय किया है।
इतनी अधिक फिल्मों में अभिनय करने के बावजूद शिव कुमार “दीपक” जी मूलतः लोक कलाकार हैं। उन्होंने 1971 से लगातार एक दशक तक लोक कला मंच चंदैनी गोंदा में पात्र शिव की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। चंदैनी गोंदा में ही उन्होंने हरितक्रान्ति बाई के रूप में नारी पत्र की भूमिका की। इन्हीं दशकों में दीपक जी ने अन्य महत्वपूर्ण लोककला मंच सोनहा बिहान, लोरिक चन्दा और हरेली आदि में भी अपने अभिनय से जनमानस का प्रेम अर्जित किया।
उन्हें बेहतरीन अभिनय के लिए अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया है। विशेष उल्लेखनीय सम्मानों में वे 5 बार “लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड” से सम्मानित हुए हैं,। विगत वर्ष छत्तीसगढ़ शासन ने छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण – 2020 के अंतर्गत शिव कुमार दीपक जी को 87 वर्ष की आयु में दाऊ मंदराजी राजकीय सम्मान से सम्मानित किया।
मुझे आश्चर्य होता है निरन्तर सात दशकों से अभिनय की मैराथन दौड़ में सक्रिय रहने वाले इस महान अभिनेता को “पद्म-पुरस्कार” से सम्मानित करने के बारे में किसी का ध्यान क्यों नहीं गया है ? क्या स्वाभिमानी होना, पद्म-पुरस्कारों के लिए किसी तरह की अयोग्यता के अंतर्गत आता है? ऐसे प्रश्नों का उठना स्वाभाविक ही है।
आज शिवकुमार दीपक जी का 89 वाँ जन्म-दिन है। समस्त छत्तीसगढ़वासियों की ओर से मैं उन्हें हृदय से शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुए उनके स्वस्थ दीर्घायु जीवन की मंगल कामना करता हूँ।