अत्याधिक रसायनों के इस्तेमाल का दूषित प्रभाव
रोकने में मददगार हो रहा फसल विविधीकरण
भारतीय कृषि में हरित क्रांति (Green revolution) के बाद से किसानों का एकमात्र ध्यान खाद्य फसलों के उत्पादन बढ़ाने की तरफ है। इसके लिए किसान अत्यधिक मात्रा में कृषि रसायन जैसे उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक व फफूंदनाशी का प्रयोग करने लगे हैं।
किन्तु अत्यधिक कृषि रसायनों के प्रयोग से व निरंतर एक ही रसायन से कीट अथवा खरपतवार में धीरे- धीरे उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है। गेहूं में पाए जाने वाले गुली डंडा नामक खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए कई सालों तक किसानों ने आइसोप्रोट्यूरॉन का प्रयोग किया, जिस कारण से उसमे प्रतिरोधकता आ गयी।
फिर बढ़ जाते हैं रसायनों के इस्तेमाल से खत्म होने वाली कीट
कई बार तो कोई खरपतवार या कीट की संख्या कृषि रसायनों के प्रयोग से एक दफा के लिए नुकसान पहुंचने वाली आबादी से कम हो जाती है और कुछ समय बाद ही उनका पुनरुत्थान हो जाता है। इसके पश्चात उनकी आबादी को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल हो जाता है व फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हंै।
गेहूं में पाए जाने वाले गुली डंडा नामक खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए कई सालों तक किसानों ने आइसोप्रोट्यूरॉन का प्रयोग किया, जिस कारण से उसमे प्रतिरोधकता आ गयी। कई बार तो कोई खरपतवार या कीट की संख्या कृषि रसायनों के प्रयोग से एक दफा के लिए नुकसान पहुंचने वाली आबादी से कम हो जाती है और कुछ समय बाद ही उनका पुनरुत्थान हो जाता है। इसके पश्चात उनकी आबादी को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल हो जाता है व फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
सफेद मक्खी के दोबारा हमले की दुर्दशा
देख चुके हैं उत्तर भारत के किसान
हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में कपास उगाने वाले किसानों को सफेद मक्खी के पुनरुत्थान से उनकी फसलों की दुर्दशा देखनी पड़ी थी। इनके अलावा कृषि रसायन मृदा, जल, जीव स्वास्थ्य एवं वातावरण को दूषित करते है। इस अवस्था का एक कारण किसानों द्वारा उनके खेतों में लगातार केवल एक ही फसल चक्रण या बार बार एक ही फसल का उत्पादन करना है।
जैसे बार बार खेत में केवल एक ही फसल लगाई जाये, तो उसके लिए खेत को तैयार करते समय मृदा की एक निश्चित गहराई तक जुताई की जाती है, जिस कारण से उसके नीचे मिट्टी में एक सख्त परत का निर्माण हो जाता है।
यह मृदा की पानी सोखने की क्षमता को कम कर देती है। साल दर साल अगर एक ही फसल चक्रण या एक ही फसल का अनुसरण करने से मृदा से कुछ पोषक तत्वों का अधिक खनन होता है और कुछ पोषक तत्वों की विषाक्तता हो जाती है। फसल विविधता के जरिये काफी हद तक इन सारी समस्याओं से निजात पाया जाता है और साथ में किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
जानिये फसल विविधता की पद्धति
फसल विविधता एक खेत में एक साथ या एक फसल चक्रण में विभिन्न प्रकार की फसल अथवा एक ही फसल की अनेक किस्में लगाकर खेती करने की एक पद्धति है, जिसमें हर थोड़े अंतराल के पश्चात एक फसल को किसी अन्य फसल से प्रतिस्थापित करना फसल विविधता के आयाम को बनाये रखने के लिए आवश्यक है। किसान निम्न अवधारणाओं का अनुसरण करके अपने खेत में फसल विविधता कर सकता है।
एकल फसल की अपेक्षा अंतर
जब दो या दो से अधिक फसल एक ही खेत में एक समय पर एक साथ उगाई जाये, तब उसे अंतर – फसल लगाना कहते है। इसमें एक फसल मुख्य फसल होती है व दूसरी फसल जो कुछ हिस्सों में मुख्य फसल के स्थान पर लगाई जाती है, उसको अंतर्फसल कहते है।
यदि मुख्य फसल और अंतर-फसल निश्चित पंक्तियों में लगाई जाये, तब वह पंक्ति अंतर-फसल करना होता है। पांच गेहूं की पंक्तियों के बाद एक सरसों की पंक्ति लगाना पंक्ति अंतर-फसल का उदहारण है। किसान अगर मक्का की पंक्तियों के साथ फलियां लगाए, तब फलियां पत्ता हॉपर एवं डंठल छेदक के लिए जाल फसल का कार्य करती है। और अगर किसान गेहूं व चने को बिना किसी पंक्ति क्रम के उगाता है, तब वह मिश्रित अंतर-फसल लगा रहा है।
मिश्रित अंतर फसल में पौधों के बीच स्थानिक निकटता होने के कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है, जो पंक्ति अंतर फसल में नहीं होती। कुछ अंतर फसल आकर्षण- प्रतिकर्षण (पुश-पुल) तकनीक का प्रयोग करके कीड़ों को नियंत्रित करती है, जैसे मक्का के साथ पंक्ति अंतरफसल में डेस्मोडियम लगाने से डेस्मोडियम तना छेदक के व्यस्क कीट को विकर्षित करते है जिससे वो मक्का के पत्तों पर अंडे नहीं दे पाते और साथ में स्ट्रिगा नामक खरपतवार जो जड़ परजीवी है, उसको मक्का की जड़ो के साथ संलग्न होने से रोकती है।
भिन्न-भिन्न फसल लगाकर किया जाता है फसल चक्रण
किसी खेत में भिन्न-भिन्न प्रकार की फसल लगाकर फसल चक्रण किया जाता है। किसान अपने पास उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से फसल चक्रण एक साल, दो साल अथवा तीन साल का भी कर सकते है। फसल चक्रण से पैदावार के साथ साथ मृदा की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। फसल चक्रण में हरी खाद वाली फसल जैसे ढेंचा या सनई और दलहनी फसल जैसे मूंग, लोबिया इत्यादि को सम्मिलित करने से कम उर्वरक की आवश्यकता होती है व मृदा में जैव पदार्थ की मात्रा अधिक और उसकी संरचना अच्छी बनी रहती है।
कृषि वानिकी के बेहतर प्रयोग से सुधर सकती है किसानों की दशा
फसलों और पशुओं के साथ पेड़ों की खेती करना कृषि वानिकी है और कृषि वानिकी के बेहतर प्रयोग से बेहतर पोषण, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, पारिस्थितिक तंत्र एवं आजीविका सुधारने में किसानो को मदद मिलती है।
कृषि वानिकी प्रणालियों से मृदा संवर्धन, जैव विविधता संरक्षण, कार्बन पृथक्करण एवं वायु और जल गुणवत्ता में सुधार करता है। झूम खेती, टोंग्या खेती, खेत की मेड़ों पर बहुउद्देशीय पेड़, रोपण फसलों के साथ खाद्य फसल, विंडब्रेक और शेल्टर बेल्ट कृषि वानिकी के कुछ आयाम है।
कृषि-बागवानी फायदेमंद है किसानों के लिए
बागवानी फसलों के बीच में दलहनी, दाने वाली फसल, तिलहन या सब्जियां लगाने से किसानों को अतिरिक्त आय, खेत में कम खरपतवार व मृदा अपरदन से संरक्षण मिलता है। जैसे किसान किन्नू के बाग में खरीफ में मक्का, ज्वार, कपास, मूंग अथवा लोबिया लगाए और रबी में गेहूं, चना व लोबिया लगाए। और जब किन्नू के पेड़ों का तीन से चार साल बाद अच्छा विकास हो जाये, तब किसान को केवल चारे के लिए फसल जैसे लोबिया, ज्वार लगायें।
किन्नू के पेड़ों के चार साल के होने के बाद भी अगर कपास लगायी जाये, तब वह किन्नू की शाखाओं में फुटाव को रोक देती है और अगर गेहूं लगाया जाये, तब उसे उचित सूर्य प्रकाश न मिलने से उसका अच्छा विकास नहीं हो पता। किसानों को इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए फसल का विविधीकरण करते रहें।
फसल विविधीकरण के फायदे
फसल विविधीकरण करने से खेत में खरपतवार व कीट का प्रकोप कम हो जाता है और किसान को खरपतवारनाशी व कीटनाशी की आवश्यकता कम होती है।
फलियां नाइट्रोजन का नियतन करती है व मृदा में पोषक तत्वों के अलभ्य रूप को फसलों द्वारा आसानी से लिए जाने वाले रूप में परिवर्तित करके उनकी उपलब्धता बढ़ता है।
हरी खाद वाली फसलें एवं दलहनी फसलें मृदा में जैव पदार्थ को बढ़ाती है, जिससे मृदा की पानी सोखने की क्षमता और उसकी संरचना अच्छी होती है।
कृषि रसायनों पर व्यय कम होने से और जहां किसान केवल एकल फसल लेता है वहां फसल विविधीकरण से किसान को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
फसल विविधीकरण से खेत में विविधता बढ़ जाती है, जो किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतर स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
फसल विविधीकरण जलवायु परिवर्तन व मौसम सम्बंधी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करने में मदद करता है और किसान को नुकसान से बचाता है।
कविता,श्वेता
सस्य विज्ञान विभाग
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विवि, हिसार