गीतकार, निर्माता-निर्देशक प्यारेलाल
संतोषी की आज पुण्यतिथि पर विशेष
आलेख/मनोहर महाजन
7 अगस्त 1916 को जबलपुर मध्यप्रदेश में जन्में पी.एल संतोषी का असली नाम ‘प्यारेलाल’ सरनेम ‘श्रीवास्तव’ था.’संतोषी’ उनका ‘क़लम-नाम’ था। यह नाम ‘उपनाम’ या ‘तख़ल्लुस’ इतना प्रसिद्ध हो गया कि उनके बड़े बेटे प्रसिद्ध रिकार्डिस्ट आनन्द (प्यार का नाम:’बाबा’) और छोटे बेटे प्रोड्यूसर डाइरेक्टर राजकुमार संतोषी ने भी अपने नामों के पीछे “संतोषी’ उपनाम लगा कर वो सद्भावना बटोरी जो फ़िल्म उद्योग में असामान्य बात नहीं है।

30 के दशक के शुरुआत में जबलपुर में एक शूटिंग हो रही थी.निर्माताओं को वहां एक स्थानीय संवाद सहायक की आवश्कता थी। संतोषी एक अच्छे लेखक थे। उन्होंने उस फ़िल्म के लिए कुछ संवाद लिखे। उन्हें बहुत सराहना मिली। उससे प्रोत्साहित होकर 30 के दशक के मध्य में वो लेखक और गीतकार बनने के लिए बम्बई आ गए।
संतोषी ने अपने करियर की शुरुआत नरगिस की माँ जद्दन बाई की फ़िल्म “मोती का हार”(1937) में कुछ गाने लिखकर। उन्होंने कुछ समय तक जद्दनबाई के ‘निजी-सचिव’ के रूप में भी काम भी किया। इसके बाद वह ‘रंजीत मूवीटोन’ और बाद में ‘बॉम्बे टॉकीज़ में शामिल हो गए और गीत लिखना जारी रखा। शीध्र ही वो ‘प्रभात फिल्म कंपनी’ से जुड़ गए। 1946 में फ़िल्म ‘हम एक हैं’ के साथ एक निर्देशक के रूप में सन्तोषी ने अपनी शुरुआत की। ये फ़िल्म उन्हें गुरुदत्त की सहायता से मिली थी। ये देवानंद की भी ‘डेब्यू फिल्म’ थी. फ़िल्म बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई।

एक पटकथा/संवाद लेखक के रूप में, संतोषी ने झूला (1941), स्टेशन मास्टर (1942), निराला (1950), पोस्ट बॉक्स 999 (1958),मन की आंखें (1970) और सौदागर (1973) में काम किया। इसके अलावा उन्होंने 10 फ़िल्मों के पटकथा/संवाद के साथ ‘स्टोरी’ भी ।
एक निर्देशक के रूप में संतोषी ने हम एक हैं (1946), शहनाई,(1947) खिड़की (1948) सरगम (1950) अपनी छाया (1950) शिन शिनाकी बूबला बू (1952) छम छमा छम,(1952) हम पंछी एक दाल के (1957) सबसे बड़ा रुपिया (1955), बरसात की रात (1960) दिल ही तो है (1963)…1968 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘रूप रूपैया’ बतौर निर्देशक उनकी आख़री फ़िल्म थी। संतोषी ने कुल 21 फिल्मों का निर्देशन किया।

हिंदी फ़िल्म -संगीत में गीतकार के रूप में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। स्वयम की निर्मित और निर्देशित फिल्मों के अलावा संतोषी ने कई अन्य फिल्मों में गीतकार के रूप में भी काम किया। इनमें कुछ हैं:पागल (1940), अकेला (1941), स्टेशन मास्टर (1942), हम एक हैं (1946), संग्राम (1950), सौदागर (1951), घायल (1951), अनहोनी (1952), चालीस बाबा एक चोर 1954), दुल्हन (1958), और हॉलिडे इन बॉम्बे (1963)।
एक गीतकार के रूप में उन्होंने लगभग 100 फिल्मों में 350 से अधिक गीत लिखे.उनके प्रायः सभी गाने हिट और लोकप्रिय हुए.”जब दिल को सताए ग़म तू छेड़ सखी सरगम”, “आना मेरी जान संडे के संडे” “महफ़िल में जल उठी शमा परवाने के लिए”,”तुम क्या जानो हम तुम्हारी याद में कितना रोये” क्या ये गाने भुलाए जा सकते है?

संतोषी संवेदनशील और भावुक व्यक्ति थे। रचनात्मकता उनके शरीर के कण कण में भरी हुई थी। उनका हाथ बहुत खुला और खर्चीला था-थोड़े दिलफेंक भी थे। ऐसे लोग शायद ही कभी अच्छे व्यवसायी बन सकते हैं। यही उनके साथ भी हुआ। एक बार में लाखों रुपये लुटाने वाले संतोषी ने अपने आखिरी दिन आर्थिक तंगी के बीच बिताए।
‘सरस्वती-पुत्र’, ‘लक्ष्मी-पुत्र’ न बन सका। लेकिन बतौर गीतकार- निर्माता-निर्देशक पी.एल.संतोषी को आज भी फ़िल्म उद्योग से जुड़े लोग ‘गुरुजी’ कहकर सम्मान देते हैं।
पी.एल.संतोषी की 7 सितंबर 1978 को उस विलीन में समा गए। आज अगर वो ज़िंदा होते तो अपनी 106वीं सालगिरह मना रहे होते। उन्हें याद करते हुए हम उनका नमन करते हैं।