आज पुण्यतिथि-इस संगीतकार जोड़ी के हुस्नलाल ने आज के ही
दिन दुनिया को कहा था अलविदा, नायाब धुनें दी इस जोड़ी ने
मुंबई। हुस्नलाल-भगतराम बॉलीवुड की सबसे पहली संगीतकार जोड़ी मानी जाती है। दरअसल पंजाब के जालंधर में जन्मे भगतराम रिश्ते में हुस्नलाल के बड़े भाई लगते थे।
भगतराम का जन्म 1914 में हुआ था और हुस्नलाल का 1920 मेे। दोनों ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पंडित दिलीप चंद्र वेदी से ली। इसके अलावा उन्होने अपने बड़े भाई पंडित अमरनाथ जो कि अपने वक्त के बहुत बड़े संगीतकार थे, उनसे भी संगीत की कुछ बारीकियां सीखी।
हुस्नलाल वायलिन और भगतराम हारमोनियम बजाने में रूचि रखते थे। और उनकी इस पसंद की झलक उनके संगीत में भी नजर आती थी। उनके धुनों में पंजाबी लोक संगीत का असर साफ नजर आता था।
तबले और ढोलक की ताल पर सजी धुन, गीत को एक अलग ही रंग देती थी। वहीं वायलिन के मुरीद हुस्नलाल कई धुनों के बीच में वायलिन के छोटे-बड़े टुकड़े बेहद सुंदर तरीके से पिरो दिया करते थे।
इस संगीतकार जोड़ी को अपना पहला ब्रेक साल 1944 में आई फिल्म ‘चांद’ से मिला। इस फिल्म का गीत ‘दो दिलों की ये दुनिया’ लोगों के बीच काफी मशहूर हुआ।
Today's Song | "Chale Jaana Nahin Nain Milake" | 'Badi Behen' | #LataMangeshkar | Husnlal Bhagatram | Rajendra Krishnahttps://t.co/vP8ZH5EoeA
— Bhoolebisarenagme (@BhoolebisareGit) March 13, 2022
लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गई। ऐसे में हिट गाने के बावजूद हुस्नलाल और भगतराम को अभी भी काम मिलने में दिक्कत हो रही थी। फिर साल 1948 में आई फिल्म ‘प्यार की जीत’। इसमें उनकी बनाई धुन पर लिखा गया गाना ‘एक दिल के टुकड़े हजार हुए’ ने लोगों के दिलों में खास जगह बनाई और इसी फिल्म के बदौलत हुस्नलाल-भगतराम ने इंडस्ट्री में अपनी जगह बना ली।
Suraiya portrays renowned poetess Aalam Mehrbano & Shammi Kapoor is poet Gul Mirza.
The film has 12 songs by composer duo Husnlal-Bhagatram.
(1954) Shama Parwana pic.twitter.com/noM3leJJ1r
— Film History Pics (@FilmHistoryPic) June 4, 2022
1930-40 के उस दौर में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में राग-रागिनी पर आधारित संगीत का वर्चस्व था। लेकिन हुस्नलाल-भगतराम ने अपनी संगीत में राग-रागिनी के बजाए लोक गीतों की धुनों को तवज्जो दी। इतना ही नहीं, हिंदी सिनेमा के महान गायकों में से एक मोहम्मद रफी को भी उनका पहला गाना हुस्नलाल-भगतराम ने ही दिया।
चालीस के दशक के आखिरी सालों में जब मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर प्लेबैक सिंगर अपनी पहचान बनाने में जुटे थे, तो उन्हें कहीं काम ही नहीं मिल रहा था। ऐसे में हुस्नलाल-भगतराम की जोड़ी ने उन्हें एक गैर फिल्मी गीत गाने का मौका दिया।
Mohd. Rafi With Husnlal-Bhagatram
ईक दिल के टुकड़े हज़ार हुए
कोई यहाँ गिरा कोई वहां गिरा …. https://t.co/4ktUlO5MHB pic.twitter.com/mgOGlEYojD
— Anand Berry (@AnandBerry777) June 24, 2017
साल 1948 में राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या के बाद मोहम्मद रफी ने जो राजेंद्र कृष्ण का गीत ‘सुनो सुनो ए दुनिया वालो बापू की अमर कहानी’ गाया था उसे भी इस जोड़ी ने ही रचा था।
अब बात 1949 की, उस साल एक फिल्म आई थी ‘बड़ी बहन’ जिसका संगीत हुस्नलाल और भगतराम ने दिया था। इस फिल्म में एक गाना था ‘चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है।’ जो अपने वक्त का ब्लॉकबस्टर सॉन्ग साबित हुआ और इतना ही नहीं इस गाने ने लता मंगेशकर को अलग पहचान दी।
Bari Bahen/ Pyar Ki Jeet .. with music by Husnlal Bhagatram.. had some all time greats of Suraiya… Lata’s ‘Chale Jana Nahin..’ and Rafi’s … ‘Ik Dilke Tukde Hazar Hue…’the LP released on EMI, Pakistan..@FilmHistoryPic @pic_bollywood @BhoolebisareGit pic.twitter.com/CjigJFq1en
— onlyanalog (@gaanepurane) January 1, 2021
और सिर्फ लता मंगेशकर ही नहीं, इस जोड़ी ने सुरैया, मुकेश, तलत महमूद और मो.रफी जैसे गायकों के लिए भी शानदार धुनें बनाई और बेहतरीन संगीत की विरासत छोड़ी। जैसे मुकेश का गीत ‘क़िस्मत बिगड़ी दुनिया बदली’, तलत महमूद का ‘मोहब्बत की हम चोट खाये हुए हैं’, रफी साहब का ‘अपना ही घर लुटाने दीवाना जा रहा है।’
मुख्यधारा से दूर होती गई सदाबहार जोड़ी
Remembering #Gandhi Ji on his 74th death anniversary.
After the assassination of #MahatmaGandhi, #HusnlalBhagatRam composed a private number "Suno suno ae duniya walo bapu ki ye amar kahani" in Rafi's voice which became the national song overnight. pic.twitter.com/Jq3TkIJtmL
— Bollywoodirect (@Bollywoodirect) January 30, 2022
60 का दशक आते-आते फिल्मों में संगीत का रंग-रूप बदलने लगा। राग और लोक गीतों पर आधारित भारतीय सिनेमा का संगीत अब चमक-धमक की ओर मुड़ने लगा। नए संगीतकार अपनी धुनों में नए-नए प्रयोग करने लगे।
और ये सदाबहार जोड़ी धीरे-धीरे मेनस्ट्रीम सिनेमा से दूर होती चली गई। भारतीस सिनेमा के संगीत की ये बदलती तस्वीर हुस्नलाल को ज्यादा रास नहीं आई और इसीलिए वो दिल्ली चले गए और वहां आकाशवाणी में काम करने लगे।
“Suraiya croons, Nigar swoons, in this camp drama with memorable music by Husnlal-Bhagatram”
(1949) ‘Balam’ – Nigar Sultana and Suraiya pic.twitter.com/t5zeHUSg0s
— Film History Pics (@FilmHistoryPic) June 29, 2022
हालांति भगतराम मुंबई में ही रहकर छोटे-मोटे स्टेज कार्यक्रम हिस्सा में लेने लगे। फिर एक साल 1968 में 28 दिसंबर को हुस्नलाल ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
और उनके जाने के बाद साल 1973 को 26 नवंबर को भगतराम भी गुमनामी में इस दुनिया से रूखसत हो गए। मुख्य धारा के सिनेमा से दूर हो जाने के बाद एक वक्त आया था जब इस बेमिसाल जोड़ी के पास कोई काम ही नहीं रहा।