आज पुण्य तिथि पर चेंदरू
द टाईगर बाय का स्मरण
जगदलपुर। शकुंतला दुष्यंत के पुत्र भरत बाल्यकाल में शेरों के साथ खेला करते थे वैसे ही बस्तर का यह लड़का शेरों के साथ खेलता था। इस लड़के का नाम था चेंदरू।
चेंदरू द टायगर बाय के नाम से मशहूर चेंदरू पुरी दुनिया के लिये किसी अजूबे से कम नही था। बस्तर मोगली नाम से चर्चित चेंदरू पुरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहूर था।
चेंदरू मंडावी नारायणपुर के गढ़ बेंगाल का रहने वाला था। मुरिया जनजाति का यह लड़का बड़ा ही बहादुर था। बचपन में इसके दादा ने जंगल से शेर के शावक को लाकर इसे दे दिया था। चेंदरू ने उसका नाम टेंबू रखा था। इन दोनो की पक्की दोस्ती थी।
दोनो साथ मे ही खाते,घुमते और खेलते थे। इन दोनो की दोस्ती की जानकारी धीरे धीरे पुरी दुनिया में फैल गयी। स्वीडन के ऑस्कर विनर फिल्म डायरेक्टर आर्ने सक्सडॉर्फ चेंदरू पर फिल्म बनाने की सोची और पूरी तैयारी के साथ बस्तर पहुंच गए।
उन्होंने चेंदरू को ही फिल्म के हीरो का रोल दिया और यहां रहकर दो साल में शूटिंग पूरी की। 1957 में फिल्म रिलीज हुई. एन द जंगल सागा जिसे इंग्लिश में दि फ्लूट एंड दि एरो के नाम से जारी किया गया।
फिल्म के रिलीज होने के बाद चेंदरू को भी स्वीडन और बाकी देशों में ले जाया गया। उस दौरान वह महीनों विदेश में रहा। चेंदरू को आर्ने सक्सडॉर्फ गोद लेना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी एस्ट्रीड से उनका तलाक हो जाने के कारण ऐसा हो नहीं पाया। एस्ट्रीड एक सफल फोटोग्राफर थी फ़िल्म शूटिंग के समय उन्होंने चेंदरू की कई तस्वीरें खीची और एक किताब भी प्रकाशित की चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर।
उसकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से हुई उन्होंने चेंदरू को पढ़ने के लिये कहा पर चेंदरू के पिता ने उसे वापस बुला लिया। वहां से वापस लौटकर वह फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में लौट गया, चकाचौंध ग्लैमर में जीने का आदी हो चुका चेंदरू गांव में गुमसुम सा रहता था।
एक समय ऐसा आया कि गुमनामी के दुनिया में पुरी तरह से खो गया था जिसे कुछ पत्रकारों ने पुन: 90 के दशक में खोज निकाला।
फिल्म में काम करने के बदले उसे दो रूपये की रोजी ही मिलती थी। 18 सितम्बर 2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए इस गुमनाम हीरो की मौत हो गयी। आज चेंदरू द टाईगर बाय… को उसकी पुण्यतिथि पर सादर नमन…