एक फोन कॉल पर प्रदेश के किसी भी हिस्से में पहुंच
कर देते हैं रक्तदान,युवाओं की टीम रखती है रिकॉर्ड
राजनांदगांव। जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर मौजूद खैरागढ़ ब्लॉक का वनांचल ग्राम सांकरा…। इसे अब ब्लड हब के रूप में पहचाना जाने लगा है। गांव में खून की कमी से 7 साल पहले एक 8 साल की बच्ची की मौत हो गई। इस बच्ची की मौत ने गांव के युवाओं को ऐसा झकझोरा कि उन्होंने इस तरह की मौत को रोकने की जिद पकड़ ली।
जिद जुनून में बदला और युवाओं ने अपने गांव से लेकर आसपास के 12 गांव को ब्लड हब के रूप में तब्दील कर दिया। टीम ने अब तक 1100 लोगों की मदद की है। इनमें ज्यादातर प्रसूता और हादसे में घायल जरूरतमंद मरीज शामिल हैं। सांकरा गांव से अब शहर के मरीजों को भी ब्लड के लिए मदद मिल रही है।
2015 में सांकरा में 8 साल की बालिका सरिता वर्मा की मौत ब्लड की कमी से हुई थी। तब ब्लड डोनर ढूंढने परिवार के सदस्यों को जगह-जगह मिन्नतें करनी पड़ी थी। सरिता ने ब्लड की कमी के बीच दम तोड़ दिया। इसके बाद गांव के युवाओं ने बदलाव का बीड़ा उठाया। रक्तदान के लिए समूह बनाकर युवाओं ने काम शुरू किया।
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इन गांवों में 300 से ज्यादा युवा ऐसे हैं, जो एक फोन कॉल पर खुद के खर्चे पर रक्तदान करने पहुंचते हैं। ब्लड हब में सांकरा के अलावा चांदगढ़ी, खम्हारडीह, चिचका, धौराभांठा, बैगाटोला सहित आसपास के गांव शामिल हैं।
सांकरा के युवाओं ने बताया कि रक्तदान को लेकर ग्रामीण इलाकों में काफी भ्रांतियां रहती है। वनांचल में रक्तदान को और भी डर – दहशत के नजरिए से देखा जाता था। शुरुआत में उनकी इस पहल का कुछ लोगों ने विरोध भी किया।
लेकिन दूसरों की जान बचाने के इस अभियान से गांव के बुजुर्ग और महिलाएं भी प्रभावित हो गई। अब तो इन गांवों की युवतियां भी रक्तदान करने सामने आ रही हैं।
युवाओं ने सांकरा में सरिता वर्मा रक्तवीर संगठन बनाया। शुरुआती दौर में इस संगठन में गांव के तीन से चार युवा की जुड़े। लेकिन धीरे-धीरे स्थिति ऐसी बनी की अब हर घर में एक रक्तदाता है। करीब 150 मकानों के इस गांव में ही 100 से अधिक रक्तदाता हैं।
खास बात यह है कि इनमें से कई युवा 25 और कुछ ने 40 से अधिक बार रक्तदान कर दूसरों की जान बचा चुका है। सांकरा की पहल के बाद पूरे वनांचल में रक्तदान अब जुनून बनता जा रहा है।