राज और बेनेगल का आज जन्मदिन, दोनों
के उल्लेख के बिना भारतीय सिनेमा अधूरा
14 दिसंबर को दो ऐसी बड़ी हस्तियों का जन्म हुआ जिन्होने भारतीय सिनेमा को फिल्म मेकिंग की दो नई और बिलकुल अलग शैलियां दीं। एक हैं राज कपूर और दूसरे श्याम बेनेगल। दोनों ही कलात्मक मूल्यों के साथ साथ सामाजिक चेतना से भरपूर लेकिन विषय के चुनाव और बात कहने के ढंग में दोनों की स्टाइल बिलकुल जुदा…
एक ने लोक-समाज के मुद्दों को लोगों को उन्ही भाषा में बताने-समझाने के लिए लोकप्रिय कला मूल्यों का ध्यान रखते हुए सिनेमा माध्यम की नई शैली निकाली, तो दूसरे ने सिनेमा माध्यम की क्लासिकल शैली और उच्च कलात्मक मूल्यों का इस्तेमाल करते हुए सामाजिक-राजनीतिक चेतना से युक्त फिल्में बनाने का तरीका अपनाया। Raj Kapoor and Shyam Benegal gave Indian cinema two different styles
राज कपूर जहां लोकप्रिय शैली में भव्यता लाकर बड़ी बात कहने और उसे नई ऊंचाई देने के लिए शोमैन कहलाए तो वहीं श्याम बेनेगल हिंदी सिनेमा में पैरलल या समांतर सिनेमा का एक स्तंभ साबित हुए जिससे नए सिनेमा की उस धारा को और मज़बूती मिली।
जिसकी शुरुआत चंद बरस पहले भुवन शोम, उसकी रोटी और सारा आकाश जैसी फिल्में बनाकर मृणाल सेन, मणि कौल और बासु चटर्जी कर चुके थे और जिन्हे विषय और ट्रीटमेंट के लिहाज़ से बिलकुल नया और यथार्थपरक माना गया था।
राज कपूर और श्याम बेनेगल की कलायात्रा पर कहने-लिखने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन दोनों की बतौर निर्देशक शुरुआती 4 फिल्मों को देखें तो पाएंगे कि लोकप्रिय क्लासिकल सिनेमा में राज कपूर ने जहां 50 के दशक को यादगार बना दिया तो श्याम बेनेगल की फिल्मों ने 70 के दशक को समांतर सिनेमा का सुनहरा दौर बना दिया।
राज कपूर की चार पहली फिल्में हैं- आग(1948), बरसात(1949), आवारा(1951), श्री 420(1955)। जबकि श्याम बेनेगल की फिल्में हैं- अंकुर(1974), निशांत(1975), मंथन(1976), भूमिका(1977) ।
राज कपूर और श्याम बेनेगल के बारे एक कॉमन बात ये है कि दोनों ही फिल्में बनाने के लेकर जुनूनी रहे हैं। राज कपूर जहां अपने अंतिम दिनों में फिल्म ‘हिना’ की शूटिंग को लेकर कागज़ पर पूरी तैयारी कर चुके थे तो वहीं श्याम बेनेगल 88 साल की उम्र में आज भी सक्रिय हैं और फिलहाल बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति मुजीबुर्रहमान पर फिल्म ‘मुजीब दे मेकिंग ऑफ ए नेशन’ बना रहे हैं।