मदर्स डे पर दो फिल्मों और एक किताब की चर्चा
आज मदर्स डे है और इस खास मौके पर हम अपने पाठकों के लिए लाएं हैं मां पर केंद्रित दो फिल्मों और एक बहुचर्चित किताब पर कुछ खास सामग्री।समाज में मां को देखने के नजरिए को इनसे समझा जा सकता है। मदर्स डे पर आज सबसे पहले दो फिल्मों का ध्यान आ रहा है इन्हे देखा जाना चाहिए… देखा हो तो भी, नहीं देखा हो तब तो ज़रुर।
पहली है महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ (1957) और दूसरी डेनि विलनोव की ‘ऑन्सेंडीज़’ (2010)। एक में राधा की कहानी है, दूसरी में नवल की। वहीं यहां जिस किताब का जिक्र है, वह है कैथरीन मेयो की बहुचर्चित किताब ‘मदर इंडिया’। कैथरीन ने अपने नजरिए से भारत को देखा और यह किताब लिखी। पिछली सदी में लिखी गई इस किताब पर आज भी अक्सर बहस होती है।
यहां प्रदर्शित फोटो मुम्बई के एक इलाके की पेंटिंग है। जो स्त्री को आधुनिक और आज़ाद स्वरूप में दिखाती है। सामने से एक महिला काम पर जा रही है। आज मदर्स डे पर यह फोटो मां को समर्पित है।
भारतीय मां और उसके संघर्षों की महागाथा ‘मदर इंडिया’
‘मदर इंडिया’ सही अर्थों में एक भारतीय मां और उसके संघर्षों की महागाथा है, जो सिनेमा के मानकों के लिहाज़ से भारत की सबसे बेहतरीन फिल्मों में गिनी जाती है। ये फिल्म अपनी कहानी, स्क्रीनप्ले के साथ साथ नरगिस और बाकी कलाकारों की एक्टिंग और बेहतरीन निर्देशन के लिए तो जानी ही जाती है, लेकिन इन सबको एक नई ऊंचाई दे दी नौशाद के कालजयी संगीत ने, जो फिल्म संगीत के तौर पर भारतीय लोक संगीत का अनुपम विस्तार है।
इस फिल्म को निर्देशक महबूब खान ने दूसरी बार बनाया था। पहले वह अपनी पत्नी सरदार अख्तर को केंद्रीय भूमिका में रख इसे औरत नाम से 1940 में भी बना चुके थे। लेकिन तब वह फिल्म दर्शकों का ध्यान बहुत ज्यादा नहीं खींच पाई थी।
फिर, 1957 में जब इसका रिमेक ‘मदर इंडिया’ नाम से रंगीन अवतार में नरगिस की शानदार अदाकारी के साथ सामने आया तो पूरे देश में इसकी धूम मच गई। बाद के दौर में हिंदी फिल्मों में कई निर्देशकों ने मां की सशक्त भूमिका के लिए राधा (नरगिस) के किरदार को दोहराया।
यह फ़िल्म अबतक बनी सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट भारतीय फ़िल्मों में गिनी जाती है और अब तक की भारत की सबसे बढ़िया फ़िल्म गिनी जाती है। इसे 1958 में तीसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था। यह फ़िल्म भारत की ओर से पहली बार अकादमी पुरस्कारों के लिए भेजी गई फ़िल्म थी।
एक मां की संघर्ष भरी कहानी ‘ऑन्सेंडीज़’
फ्रैंच में बनीं फिल्म ‘ऑन्सेंडीज़’में कनाडा में रहने वाली एक मां नवल की कहानी है। जो उसके दो युवा बच्चों को कई घटनाओं की श्रृंखला के ज़रिए तब पता लगती है, जब उसकी मौत के बाद उसके दोनों जुड़वां बच्चों को वसीयत के तौर पर दो चिट्ठी मिलती है, जो उन्हे सही व्यक्तियों तक पहुंचानी है.. और वो इसके लिए निकलते हैं।
फिल्म फ्रेंच में है अमेजॉन पर उपलब्ध है इंग्लिश सबटाइटल्स के साथ। हिला देने वाली ये फिल्म एक बार आप देखना शुरु करते हैं, तो कब खत्म हो जाती है पता नहीं लगता। कैनेडियन-फ्रेंच निर्देशक डेनि विलनोव की गिनती आज हॉलीवुड के बेहद प्रतिभाशाली निर्देशकों में होती हैं। उनकी हालिया फिल्म ‘ड्यून’ हाल में पूरी दुनिया में बेहद चर्चित रही है। ‘ऑन्सेंडीज़’ उनकी शुरुआती फिल्मों में से है।
‘मदर इंडिया’ नाम की एक किताब जिसने
1920 में हिला दिया था भारतीय समाज को
बीसवीं सदी के दूसरे दशक की भारतीय सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक गतिविधियों के बीच मिस मेयो कैथरीन की किताब ‘मदर इंडिया’ (मई, 1927) प्रकाशित हुई। यह किताब प्रकाशित होते ही कथित धर्म सुधारकों और लेखकों के बीच भयंकर कोलाहल मच गया था। धर्म सुधारक और स्थापित लेखक जिन बातों पर पर्दा डालते आ रहे थे और अपनी धर्म संस्कृति का पवित्र हिस्सा मानते थे मेयो कैथरीन ने उस पवित्रता को उघाड़ कर रख दिया।
मेयो कैथरीन ने ‘मदर इंडिया’ में स्त्रियों और अछूतों की दयनीय अवस्था की जो तसवीर पेश की थी, उससे हिन्दी के लेखक और संपादक बेहद खफ़ा दिखे।हिन्दी लेखकों को कहना था कि मिस मेयो ने भारत की स्त्रियों और अछूतों की जो दयनीय तसवीर ‘मदर इंडिया’ में प्रस्तुत की है, उससे भारत की छवि को बड़ा धक्का पहुंचा है।
बड़ी दिलचस्प बात यह है कि जो हिन्दू सुधारक और लेखक स्त्री समर्थक होने का दावा करते थे, वही मिस मेयो की ‘मदर इंडिया’ के ख़िलाफ़ अपनी पत्र-पत्रिकाओं में मोर्चा खोलते नज़र आये।
साल 1928 में इस किताब का पहला हिन्दी अनुवाद ‘मदर इंडिया’ शीर्षक से इलाहाबाद, हिंदुस्तानी प्रेस, प्रयाग से प्रकाशित हुआ था।
इस अनुदूत किताब की एक लंबी भूमिका नवजागरणकाल की जानी मानी लेखिका श्रीमती उमा नेहरू ने लिखी थी। करीब सौ साल बाद ‘मदर इंडिया’ (2018) का दलित चिंतक कंवल भारती द्वारा अनुदित दूसरा हिन्दी अनुवाद ‘फॉरवर्ड प्रेस’ ने प्रकाशित किया है।