आज पुण्यतिथि: अविस्मरणीय रहा है अविभाजित
मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर का योगदान
कनक तिवारी
सेंट्रल प्राविंस और बरार तथा पुनर्गठित मध्यप्रदेश के राजनीतिक और सामाजिक जीवन की भूमध्य रेखा रहे पंडित रविशंकर शुक्ल छत्तीसगढ़ के भीष्म पितामह की तरह इतिहास में दर्ज हैं। उनके समकालीन पंडित सुन्दरलाल शर्मा, माधवराव सप्रे, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, बैरिस्टर छेदीलाल सिंह, वामन बलीराम लाखे, विश्वनाथ यादव तामस्कर, कुंजबिहारी लाल अग्निहोत्री, ई. राघवेन्द्र राव आदि अनेक दुर्घर्ष योद्धा हुए जिनकी छत्तीसगढ़ क्षेत्र की राजनीति और उसके सामाजिक सरोकारों पर गहरी छाप पड़ी है।
रविशंकर शुक्ल ने अनेक अवसरों पर केन्द्रीय भारवाहक के रूप में प्रदेश में बीसवीं सदी का इतिहास ढोना पड़ा। उनकी असाधारण नेतृत्व क्षमता का बीजगणित उनके आत्मविश्वास में था। उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व आत्मा का बाह्य साक्षात्कार रहा है। शुक्ल की प्रतिभा बहुमुखी थी। वे एक साथ शिक्षक, लेखक, अधिवक्ता, विचारक, पत्रकार आदि अपनी प्रतिभा से परिचय कराते हैं।
लोकप्रिय जननेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं रविशंकर शुक्ल जी की पुण्यतिथि पर सादर नमन।
मुख्यमंत्री रहते हुए उनके द्वारा छत्तीसगढ़ अंचल में शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई सहित विभिन्न क्षेत्रों में किए गए कार्यों को हम आज भी याद करते हैं। pic.twitter.com/JVY0kU50iW
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) December 31, 2022
रविशंकर शुक्ल होने का अर्थ तब परवान चढ़ा जब कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें तत्कालीन विवादास्पद और संकुल परिस्थितियों में प्रदेश का शीर्ष नेतृत्व सौंपा। शुक्ल ने असाधारण सूझबूझ, धैर्य, दृढ़ निश्चय और निर्णय क्षमता का इजहार करते हुए अपने समर्थकों और आलोचकों को एक साथ चमत्कृत कर दिया। गांधी सहित कांग्रेस के अनेक राष्ट्रीय नेताओं के सामने कई ऐसे मुद्दे आए जब रविशंकर शुक्ल के निर्णयों से उनकी पूरी सहमति नहीं दिखी लेकिन शुक्ल के विरोधियों को ही आखिर हथियार डालने पड़े।
इतिहास निर्मम हथियार है। उसे किसी से परहेज नहीं होता। शुक्ल के आलोचकों ने उनके व्यक्तित्व को कमतर करने कई कुचक्र रचे। महाकोशल में जन्मे, छत्तीसगढ़ की कर्मभूमि से उठकर रविशंकर शुक्ल बरार के मुख्यालय नागपुर में एक शीर्ष प्रशासनिक पद पर रहकर तत्कालीन मध्यप्रदेश का पर्याय हो गए थे। वे सफल शिक्षाशास्त्री या अधिवक्ता बन सकते थे। लेकिन स्वतंत्रता आन्दोलन का आह्वान उनके जीवन को द्युतिमय बना गया। उनका निवास स्वाधीनता आन्दोलन का धड़कता दिल रहा है जिसकी अनुगूंजें इतिहास की पोथियों में प्रतिध्वनित हैं।
मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पं. रविशंकर शुक्ल जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटिशः नमन।
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाने में आपका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। pic.twitter.com/bx5XODCZf5
— INC Chhattisgarh (@INCChhattisgarh) December 31, 2022
रविशंकर शुक्ल का जीवन घटनाओं, टिप्पणियों और विवादों से परे नहीं रहा। उनके खिलाफ अफवाहें और किस्से भी गढ़े गए। मसलन यह कि भिलाई स्टील प्लांट की स्थापना की जिद की वजह से शुक्ल ने जवाहरलाल नेहरू का क्रोध मोल ले लिया था। उन्हें 1957 के चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने का फैसला कांग्रेस उच्च कमान ने कर लिया था। इसलिए शुक्ल को जानलेवा दिल का दौरा पड़ा था।
यह भी कि गांधीजी उन्हें बहुत पसंद नहीं करते थे। यह भी कि उन्होंने कान्यकुब्जवाद और परिवारवाद को बढ़ावा दिया था। शुक्ल पर सामंतवादियों को भी संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है। तटस्थ और वस्तुपरक मूल्यांकन किया जाए तो बहुत से आरोप खारिज हो जाते हैं। इसमें शक नहीं कि शुक्ल अपने विरोधियों को निपटाना बखूबी जानते थे। ऐसा करने में उन्होने कई राजनीतिक समझौते और हृदय परिवर्तन भी किए।
स्वतंत्रता सेनानी और अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल जी को पुण्यतिथि पर सादर श्रद्धांजलि। देश की स्वतंत्रता के विभिन्न आंदोलनों में उल्लेखनीय सहभागिता के साथ आपने भारत के नवनिर्माण में स्वदेशी, खादी, शिक्षा सहित कई क्षेत्रों में योगदान दिया।@INCIndia pic.twitter.com/ta91GZ7MHH
— Satyanarayan Sharma (@stnrnsharma) December 31, 2022
मंचरशा आवारी, खूबचंद बघेल, द्वारिकाप्रसाद मिश्र, बृजलाल वर्मा, ठाकुर प्यारेलाल सिंह और बृजलाल बियाणी जैसे कई दिग्गज राजनेताओं के साथ शुक्ल के खट्टे मीठे रिश्तों और अनुभवों की ढेरों स्मृतियां इतिहास के जेहन में होंगी।
रविशंकर शुक्ल न होते तो तत्कालीन सी.पी. एंड बरार सहित छत्तीसगढ़ की राजनीति का नजारा कुछ और होता। शुक्ल में जितना असाधारण साहस, सूझबूझ और तत्काल निर्णय लेने की क्षमता का आकलन इतिहास कर रहा है।
किस तरह रायपुर का संस्कृत महाविद्यालय या आयुर्वेदिक महाविद्यालय बने हैं उन किस्सों की सच्चाई की पड़ताल किए बिना यह स्वीकार करना होगा कि छत्तीसगढ़ में शिक्षा के प्रसार का जनक भी शुक्ल को ही करार दिया जाना बेहतर होगा। शुक्ल इस अर्थ में बुनियादी छत्तीसगढ़िया थे जिनकी असाधारण तादात्म्य क्षमता ने उन्हें एक साथ महाकोशल, छत्तीसगढ़ और विदर्भ का जननेता बना दिया था। इसमें शक नहीं है कि शुक्ल की कदकाठी का कोई राजनीतिक उत्तराधिकारी बाद में नहीं आया।
महान स्वतंत्रता सेनानी एवं अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटिशः नमन। pic.twitter.com/AEtdl114Op
— Vijay Baghel (@vijaybaghelcg) December 31, 2022
जो भी हो, शुक्ल की मूर्ति तक लगवाने के लिए जिस तरह उनके अनुयायियों को मशक्कत करनी पड़ी वह राजनीति के बदलते असंवेदनशील मूल्यों का एक फूहड़ उदाहरण है। शुक्ल ऐसे पथप्रदर्शक, विचारक या नेता नहीं थे जिनका यश बौद्धिक फलक पर फुलझड़ियों की तरह छूटता रहे। यह स्टाॅक जुमला उनके लिए जबान पर नहीं चढ़ाया जा सकता कि हमें शुक्ल के बताए रास्ते पर चलना चाहिए या कि उनकी कमी इस तरह खटकती रहेगी कि उसकी भरपाई नहीं हो सकती। कोई जननेता सदैव शाश्वत और प्रासंगिक नहीं होता। छत्तीसगढ़ की महत्वाकांक्षाओं, चुनौतियों और परिवर्तनों के संदर्भ में उनका योगदान सबसे बड़ा ही गिना जाएगा।
रविशंकर शुक्ल वटवृक्ष थे। उनके जाने के बाद वह परम्परा शाखाओं, फलों और पत्तियों में टूट टूट कर बिखर गई। उनके अजातशत्रु व्यक्तित्व में भी कुछ लोगों को एक सात्विक आतंक दिखाई पड़ा था। उनकी स्मृतियों को सुरक्षित रखने के मामले भी कुटिल राजनीतिक विवादों के हवाले किए गए। भिलाई इस्पात कारखाना रविशंकर शुक्ल की ही देन है। शुक्ल नहीं होते तो भिलाई इस्पात संयंत्र के अभाव में छत्तीसगढ़ का चेहरा इतना खुशनुमा और पुष्ट नहीं होता।
महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वरिष्ठ कांगेस नेता एवं अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल जी को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन।
प्रदेश के विकास के लिए आपके द्वारा लिए गए कार्यों और अतुलनीय योगदान को सदैव याद रखा जाएगा। pic.twitter.com/BHay5wLplE
— Tamradhwaj Sahu (@tamradhwajsahu0) December 31, 2022
शायद छत्तीसगढ़ के राज्य बनने की सम्भावनाएं भी अब तक कुलबुलाती रहतीं। पंडित रविशंकर शुक्ल न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे हिन्दुस्तान के अशेष योद्धाओं में रहे हैं। आजादी की लड़ाई के वे केन्द्रीय नेताओं में एक रहे हैं। उनका चुंबकीय व्यक्तित्व, उदार दृष्टिकोण और आलोचकों तक को आत्मसात कर लेने की प्रवृत्ति सामाजिक जीवन में अब दिखाई ही नहीं पड़ते। ऐसा लगता है कि वे किसी ऐसे युग के प्रतिनिधि थे जो युग उनके साथ-साथ अस्त हो गया।
कक्का जी की वैयक्तिक, राजनीतिक और सामाजिक खूबियों के हजारों जीवित गवाह आज भी उनको नम आंखों से याद करते हैं। उनके व्यक्तित्व का आकलन अब भी शोध, जिज्ञासा और प्रशंसा का विषय है। रविशंकर शुक्ल एक दहकता इस्पाती नाम है जिसके कंधों पर मध्यप्रदेश का इतिहास खड़ा है। कक्का जी ने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में हजारों व्यक्तियों को अनुप्राणित किया। जिन मूल्यों की राजनीति उन्होंने की वे मूल्य अब धीरे-धीरे नये सन्दर्भों में अप्रासंगिक होते जा रहे हैं परन्तु अंततः मूल्य कालजयी होते हैं, मूल्यहीनता नहीं। इसलिए अब भी कमजोर राजनेताओं की यह कशिश होती है कि काश वे पंडित रविशंकर शुक्ल के राजनीतिक आदर्शों के रास्ते पर चल सकते।