छत्तीसगढ़ में महिलाएं रखती हैं हरितालिका तीज व्रत
आलेख/पीयूष कुमार
तीजा भादो के शुक्ल पक्ष तृतीया को पड़ता है। यह छत्तीसगढ़ में महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार है। इसे उत्तर भारत मे हरितालिका तीज कहा जाता है। पति के सुरक्षित रहने और लम्बी आयु के निमित्त स्त्रियों द्वारा किया जानेवाला यह व्रत बहुत कठिन है।
तीज की पहली रात करेले की सब्जी या उपलब्ध कड़वी भाजी के साथ ‘करू भात’ खाया जाता है। करू भात इसलिए कि कड़वा खाने से प्यास नही लगती, क्योंकि दूसरे दिन निर्जला व्रत किया जाएगा. इसमें सुबह से रात तक न तो कुछ खाया जाएगा और न ही पिया।
इस व्रत में रात में शिव के परिवार का पूजन किया जाता है। इसके लिए बहती नदी की रेत का शिवलिंग बनाया जाता है और एक झूले पर जिसे फुलेरा कहा जाता है, उस पर भगवान शिव के परिवार को तस्वीर आदि के रूप में रखकर झुलाया जाता है। ये पूरी रात जागरण की होती है। पूजन के बाद भोर में विसर्जन, स्नान, श्रृंगार और फिर पूजन के बाद ही कुछ खाया जाता है।
तीजा पर व्यंजनों की महक से रसोई गमकती रहती है। छत्तीसगढ़ में इस अवसर पर ठेठरी, खुरमी, चौसेला, बोबरा, गुझिया, सलोनी, पपची, तिखुर जैसी मिठाइयां बनती हैं। आमतौर पर उपवास खत्म होने के बाद के भोजन में मुख्य सब्जी ‘इडहर’ की होती है। यह कोचई (अरबी) के पत्तों में पिसे हुए उड़द की दाल को लपेटकर भाप में पकाया जाता है, फिर टुकड़ों में काटकर मठे की खटाई में पकाया जाता है, सब्जी की तरह। इडहर को उत्तर भारत मे गिरबछ कहते हैं। यहां कोचई के पत्तों में बेसन लपेटने की परंपरा है, जबकि छत्तीसगढ़ में उड़द की पीसी हुई पीठी का लेप किया जाता है।
हालांकि, तीजा पर यह उचित प्रतीत नहीं होता कि महिलाएं पति की लंबी उम्र के नाम पर इतना कठिन व्रत करें, खासतौर से तब जबकि पतियों के लिए ऐसे किसी व्रत का विधान नहीं है। सामाजिक व्यवहार में तो यह देखने में आता है कि स्त्रियां पति के लिए व्रत करती हैं और बहुत से पति अपने एन्जॉय करने की आजादी के अवसर की तरह इसे देखते हैं।
इस मौके पर कुछ वीडियोज और जोक्स दिख ही जाते हैं, जिसमें पत्नी के तीजा के लिए मायके जाने पर कपड़े, बर्तन, पानी, सफाई के लिए पति को परेशान दिखाया जाता है। जाहिर है, पत्नी का रोल एक कामगार की तरह समझा गया है।
तीजा ही क्यों, कविताओं में भी कवि पत्नी के घर में नहीं रहने पर कपड़े, बर्तन, जाले आदि का जिक्र करते हैं, बजाय उसका प्रेम, सम्बल, ममत्व याद करने के। नारीवादी समानता की दृष्टि से देखें तो तीजा की प्रक्रिया एकांगी और कठोर है, इसमें पर्याप्त सुधार की जरूरत है।
व्रत का यह रूप बदलना चाहिए। मानवीय भाव तो यही कहता है कि स्त्रियां यदि व्रत रखना ही चाहती हैं तो निर्जला न रहें, बल्कि खाए पियें और खुश रहें। पर देखा गया है कि समाज की मेंटल कंडीशनिंग ऐसी है कि यह सोच ही नहीं बन पाई है।
यहां यह भी समझें कि उपवास का अर्थ क्या है? उप मतलब है नजदीक और वास का मतलब है, रहना. इसका अर्थ हुआ करीब रहना. करीब किसके रहना? ईश्वर के करीब, मन, वचन, कर्म की सात्विकता के करीब रहना। यह हर व्यक्ति जो जो धार्मिक परम्पराओं को मानता है, उसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। हम सभी व्रत में कुछ नहीं खाने-पीने को उपवास समझते हैं, जबकि ऐसा जरूरी नहीं है।
छत्तीसगढ़ में तीजा का व्रत पति की लंबी आयु के निमित्त उससे दूर मायके में रहकर किया जाता है। अन्य प्रदेशों में स्त्रियों के मायके जाकर व्रत करने का चलन नहीं है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि कठिन उपवास के कारण काम का मानसिक दबाव ससुराल में सहज होने नहीं देता और मायके में यह स्वतंत्रता है।
छत्तीसगढ़ में तीजा की सबसे खास बात यह है कि माताओं-बहनों को उनके घर से भाई या पिता लेने आते हैं। अगर भाई न आए तो लेवाल (लानेवाला) आता है, जिसके साथ महिलाएं अपने माता-पिता के घर जाती हैं।
यह त्यौहार मायके का है। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि माता-पिता के घर में उनका भाव और अधिकार बनाए रखता है. मायके जाने की खुशी इस त्यौहार में महिलाओं के चेहरे पर दोगुनी होकर चमकती है। आमतौर पर स्त्रियां तीजा से कुछ दिन पहले पोरा (पोला) त्योहार के समय ही मायके पहुंच जाती हैं।
वहां सिंगार की हुई बहन-बेटियां बरसों पुरानी सहेलियों के संग ससुराली गंभीरता से मुक्त खिलखिला रही होती हैं। यह दृश्य भावपूर्ण लगता है। वे पोरा त्योहार भी बच्चों और सखियों संग मनाती हैं। अपने घर परिवेश में यह भादो की बदली की तरह नम खुशी अनोखी है।
छत्तीसगढ़ के लोक में इन दिनों तिजहारिनें बसों में, ट्रेनों में, हर तरह की गाड़ियों में या पैदल ही जाती दिख जाती हैं। लेवाल, बच्चे, छींट की रंग बिरंगी साड़ियां, झोला, बैग के यह दृश्य लोक में सर्वत्र इस वक्त दिख जाते हैं। तीजा पर कवि रजत कृष्ण की एक कविता ‘तिजहारिनें’ प्रस्तुत है, जिसमें इस त्योहार का भावपूर्ण रूप उभर आया है जिसे पढ़कर सहज ही इस त्योहार को महसूस किया जा सकता है-
तीजहारिनें
आज तीजा है
सुकाल हो
चाहे अकाल-दुकाल
हम भाई लोग
दौड़े-दौड़े जाएंगे
और बहनों को लिवा लाएंगे
हमारे संबंधों के मुख पर
यही चिटिक रंग-गुलाल
बाकी कब और क्या?
तीजहारिन बहनें
मांगती हैं लंबी उमर
जन्म जन्मान्तर के लिए
घर उतरते साथ
पहले तो भरती हैं रस
इधर-उधर पसरे बारहमासी सूखे में
बढ़ाती हैं जीवन
रात ले-दे कर
सात-आठ तक खिंचते दीयों का
रहते तक
रोज लौटाती हैं
कभी अंचरा में बांध ले गए
घाट-घरोंदा की खनक
रोज जगाती
पारा, मुहल्ला मंदिर देवाला
जो पाती होंगी
सो पाती होंगी
तीजहारीनें तीजा से
प्रकट में कितना उलटफेर जाती हैं
मां की ममता
बाप का दुलार और भाइयों का प्यार!
(लेखक पीयूष कुमार ‘सर्वनाम’ पत्रिका के सह संपादक हैं। समीक्षा, अनुवाद, कविता, सिनेमा जैसे विषयों पर लेखन के साथ लोक संस्कृति अध्येता के रूप में उनकी पहचान है। वर्तमान में वे छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के शासकीय महाविद्यालय रामचंद्रपुर में सहायक प्राध्यापक के पद पर पदस्थ हैं। उनसे मोबाइल नंबर 8839072306 पर संपर्क किया जा सकता है।)