आज विश्व सिकलसेल दिवस पर विशेष
डॉ.अब्दुल रज्जाक दल्ला
सिकल सेल विकृति एक अनुवांशिक (जेनेटिक) रोग है। विश्व के पांच प्रतिशत लोग इससे प्रभावित हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले इस रोग में गोलाकर लाल रक्त कण (हिमोग्लोबीन) हंसिए के रूप में परिवर्तित होकर नुकीले और कड़े हो जाते है।
यह रक्त कण शरीर की छोटी रक्तवाहिनियों (शिराओं) में फंसकर लिवर, तिल्ली, किडनी, मस्तिष्क आदि अंगो के रक्त प्रवाह को बाधित कर देते हैं। लाल रक्त कणों के जल्दी-जल्दी टूटने से रोगी को सदैव रक्त की कमी (एनीमिया) रहती है, इसलिए इस रोग को सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anemia)भी कहा जाता है।
सिकलसेल से ग्रस्त 5 हजार बच्चे जन्म लेते हैं रोजाना
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार विश्व में प्रतिदिन पांच हजार सिकल ग्रस्त बच्चे पैदा होते हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत बच्चे 1 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते और बचे हुए 20 वर्ष की आयु के पहले काल-कवलित हो जाते हैं। यह बीमारी अफ्रीका, सउदी अरब एशिया और भारत में ज्यादा पाई जाती है।
इन क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस रोग का संज्ञान लेते हुए प्रतिवर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस मनाने की घोषणा की है। संयुक्त राष्ट्र संघ में इस घातक अनुवांशिक रोग चिंहित करते हुए कहा है कि इस विकृति के प्रबंधन एवं जनजागरण के चलते मलेरिया, कुपोषण एवं एनीमिया से होने वाली बीमारी से शिशु मत्यु दर से कमी लाई जा सकेगी।
इस बीमारी पर 1952 तक भारत में नहीं थी ज्यादा जानकारी
यह विंडबना ही है कि वर्ष 1952 तक भारत में इस बीमारी के विषय में विशेष जानकारी नहीं थी। समय के साथ मालूम हुआ कि मध्य भारत के आदिवासी पिछड़े और वंचित लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग इस बीमारी से ग्रस्त है। दक्षिण गुजरात के भील, गगीत, नायक और पटेहा जैसी जातियों के 12 से 27 प्रतिशत व विदर्भ के गढ़चिरौली, चंद्रपुर, नंदुरवार व अन्य जिलों में 20 से 25 प्रतिशत लोग सिकल सेल विकृति से प्रभावित हैं।
उड़ीसा के कुछ क्षेत्रों में हर पांचवा व्यक्ति (40 प्रतिशत) इस रोग का वाहक हैं आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, झारखंड के आदिवासी इलाकों में भी इस रोग की पहचान की गई है। मध्यप्रदेश के कई जिलों में 10 से 30 प्रतिशत लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं।
छत्तीसगढ़ में विभिन्न समुदायों में 10 से 40 फीसदी तक प्रसार
छत्तीसगढ़ में किए गए सर्वे के अनुसार यहां पिछड़े, वंचित और आदिवासी लोगों में यह बीमारी 10 से 40 प्रतिशत तक व्याप्त है। एक सर्वे के अनुसार छत्तीसगढ़ में तीस लाख लोग सिकल के वाहक एवं 2.5 लाख सिकल सेल के रोगी है।
भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए यह अनुमानित है कि विश्व के आधे सिकल रोगी भारत में रहते हैं। एक लंबे समय तक इस विभीषिका को पहचाना नहीं जा सका।
अनुसंधान के अभाव में चिकित्सक अनभिज्ञ प्रशासक संवेदनाशून्य और मीडिया मौन रहा। अब भारत में सिकल सेल रोग पर जागृति बढ़ी है।
सिकल सेल इंस्टीट्यूट छत्तीसगढ़ में, देश का आंकड़ा उपलब्ध नहीं
छत्तीसगढ़ में सिकल सेल इंस्टीट्यूट Sickle Cell Institute chhattisgarh Raipur की स्थापना हुई है, किन्तु आज भी भारत में सिकल रोगियों की वास्तविक संख्या का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस मनाया जाता है इस दिन आम जनता को इस रोग को समझाने के अतिरिक्त यह बतलाना आवश्यक है कि यदि सही उपाय किए जाए तो इस रोग का प्रसार रोका जा सकता है।
विवाह पूर्व परामर्श इसके प्रबंधन का मुख्य आधार है। सिकल सेल व्यक्ति दो तरह के होते है। (1) एक वाहक (एएस) एवं (2) दूसरा सिकल सेल रोग पीड़ित (एसएस)। जब माता या पिता से एक-एक जीन संतान को मिलता है तो इसे सिकल का वाहक कहा जाता है।
सिकल वाहक को कोई तकलीफ नहीं होती है। उन्हें खुद नहीं मालूम होता है कि वे सिकल के वाहक है। उन्हें किसी इलाज की भी जरूरत नहीं होती। जब वे आपस में विवाह करते हैं तो इस रोग के प्रसार की संभावना बढ़ जाती है। उन्हें विवाह पूर्व सिकल कुंडली मिलाने की समझाइश दी जाती है।
यदि दो वाहक आपस में विवाह कर भी लेते हैं तो उन्हें गर्भधारण के शुरूआती महीनों में गर्भजल परीक्षण जांच कराकर गर्भस्थ सिकल रोगी बच्चे का गर्भपात करा लेना वैधानिक है। नवजात शिशुओं का जन्म के समय से ही रक्त परीक्षण कर सिकल रोगी बच्चे को चिन्हित किया जा सकता है।
रोगग्रस्त जन्मे बच्चों को 2 माह की आयु से पेनीसिलीन की गोली और निमोकोकस वैक्सीन (टीका) देकर इन बच्चों में संक्रमण से होने वाली बीमारी रोग से होने वाले दुष्प्रभाव को रोककर ऐसे बच्चो को लंबा जीवनकाल दिया जा सकता है।
गर्भजल परीक्षण का बजट उपलब्ध लेकिन जांच शुरू नहीं
छत्तीसगढ़ शासन ने गर्भजल परीक्षण के लिए बजट उपलब्ध करा दिया है। छत्तीसगढ़ के सिकल सेल संस्थान रायपुर में इस जांच के लिए उपकरण भी उपलब्ध करा दिए गए। प्रशासानिक और वैधानिक कारणों से अभी तक गर्भजल परीक्षण (एमीनोसेन्टेसिस) और कोरियानिक विल्लस सेंपलीग नामक जांच प्रारंभ नहीं की जा सकी है।
छत्तीसगढ़ शासन की सभी नवजात शिशुओं के सिकल जांच कराने का कार्यक्रम भी पिछले पांच वर्षो से लंबित है। इन सुविधाओं को त्वरित रूप से प्रारंभ करना उचित होगा।
अब सिकल सेल रोग पर विश्व के कई देशों अनुसांधन का कार्य भी चल रहा है। हाइड्रोक्सीयूरिया जैसी दवाओं ने सिकल रोगियों (एसएस) का प्रबंधन आसान कर दिया है। अब विश्व में जेनेटिक इंजीनियरिंग, जीन थैरेपी एवं मालेकुलर जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुसंधान का कार्य प्रगति पर है।
भूपेश के प्रस्ताव से सिकल सेल के कार्यों में प्रगति
वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 14 वर्ष पूर्व उपनेता प्रतिपक्ष की हैसियत से 27 मई 2004 को छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक संकल्प प्रस्ताव रखा था,जो सर्वसम्मित से पारित हो चुका है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में सिकल रोग कार्यों में प्रगति आई है।
भारत शासन ने भी अब इसका संज्ञान लिया है। अब सिकल ग्रस्त रोगियों को दिव्यांग (विकलांग) व्यक्तियों को दी जाने वाली सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही है। सिकल सेल रोगियों को इलाज के लिए आने-जाने के लिए रेल यात्रा में कन्सेशन दिए जाने का प्रावधान भी है। सिकल ग्रस्त प्रदेशों के सुदूर इलाकों में मोटर, बस की जाने वाली यात्रा में भी ऐसी छूट दिलाना उचित होगा।
छत्तीसगढ़ में सिकल सेल संस्थान की स्थापना भी हुई है। इसी संस्था के अंतर्गत विगत 15 वर्षो से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने की योजना लंबित है। 15 वर्ष पहले से ही सिर्फ कागजों पर भवन के नक्शे बना दिए गए है। शासन की प्रतिबद्धता के बावजूद दुर्भाग्यवश सभी योजनाएं फाइलों की उलझन में उलझी हुई है।
सिकल सेल संस्थान रायपुर की सेवाएं अभी तक सर्वेक्षण एवं रायपुर के वाह्य रोगी विभाग तक सीमित है। सिकल सेल नियंत्रण का कार्य जिला अस्पताल एवं गांव-गांव के प्रथामिक केन्द्रों तक नहीं पहुंच पाया है।
नई दवाओं के इस्तेमाल की अनुमति मिली
वर्ष 2019 में “क्रायजानलीजूम्ब” जैसी दवा के साथ-साथ तीन अन्य नई दवाओं के उपयोग की भी अनुमति मिली है। नए अनुसांधन के अनुसार अब गर्भस्थ फीटल हिमोग्लोबीन को एडल्ट हिमोग्लोबीन में परिवर्तित एवं पुनःपरिवर्तित कर सिकल सेल रोगी को दिए जाने की सफलता के बाद, अब सिकल सेल रोग के उपचार में आमूल-चूल परिवर्तन हुए है।
जीन थैरेपी में नए अनुसंधान हो रहे हैं। भविष्य में विकृत जीन को हटाकर स्टेम सेल के माध्यम से स्वस्थ जीन का नवनिर्माण हो सकेगा। यह भी संभव है कि भविष्य में हिमोग्लोबीन के स्वस्थ लाल रक्त कण प्रयोगशला में ही बनाकर, जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से सिकल ग्रस्त रोगियों की अस्थि मज्जा में विस्थापित (रिपेलेसमेंट) कर दिया जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिवर्ष 19 जून को विश्व सिकल दिवस के अवसर पर जनजागरण के माध्यम से सिकल पीड़ित समाज में भय और भ्रांतियों को दूर करते हुए आत्मनिर्भर की अलख जगाई जाती है। आने वाला समय सिकल सेल रोगियों के लिए नई आशा का संचार लेकर आएगा।
लेखक ख्यातनाम सर्जन और प्रोजेक्ट सिकल छत्तीसगढ़ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं।