पर्यावरण संरक्षण के साथ आदिवासियों के हितों की होगी रक्षा,शहीद
वीर नारायण सिंह की जन्म स्थली में है 2700 किलो सोने का भंडार
रायपुर। छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह की कर्मभूमि सोनाखान और उसके आसपास स्वर्ण भंडार के पूर्वेक्षण पर रोक लगा दी गई है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल-एनजीटी) ने पांच अफसरों की एक समिति को सर्वेक्षण से होने वाले नुकसान पर रिपोर्ट मांगी है। यह समिति खनन के प्रभावों पर तीन माह में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। एनजीटी ने खनिज विभाग और वन विभाग को एक महीने में पांच सदस्यीय कमेटी बनाने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई दो अगस्त को होगी।
2016 में हुई थी यहां की सोना खदान की नीलामी
बलौदाबाजार-भाटपारा जिले में स्थित बारनवापारा वन्य जीव अभयारण्य में बाघमारा (सोनाखान) स्थित है। पहले किए गए सर्वेक्षण के आधार पर यहां 2700 किलोग्राम स्वर्ण भंडार अनुमानित है। केंद्र सरकार ने 2016 में इस खदान की ई-नीलामी कराई थी। इसको वेदांता समूह ने हासिल किया है। अब कंपनी यहां खनन पूर्व सर्वेक्षण करना चाहती है, ताकि स्वर्ण भंडार की ठीक-ठीक स्थिति का पता लगाया जा सके।
इसके लिए उन्होंने राज्य सरकार के खनिज साधन विभाग को आवेदन किया है। योजना है कि प्रस्तावित खनन क्षेत्र में कंपनी 58 बोरवेल बनाकर स्वर्ण भंडार की वास्तविक स्थिति का पता लगाएगी। रायपुर के सामाजिक कार्यकर्ता संजीव अग्रवाल ने इस पर आपत्ति की है। संजीव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका लगाकर कहा कि अगर यहां पूर्वेक्षण होता है तो वन पर्यावरण को नुकसान होगा।
एनजीटी ने बनाई समिति, चार सप्ताह में गठन करने निर्देश
एनजीटी ने पांच विभिन्न विभागों के अफसरों की एक समिति से रिपोर्ट तलब किया है। इसमें केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के एक सदस्य, छत्तीसगढ़ खनिज साधन विभाग के प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक, पर्यावरण संरक्षण मंडल और कलेक्टर बलौदाबाजार को शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल को इसका नोडल विभाग बनाया गया है। इस समिति का गठन चार सप्ताह के भीतर कर लेने को कहा गया है।
जिस क्षेत्र में खदान, वह अभयारण्य के लिए प्रस्तावित
संजीव अग्रवाल ने सूचना का अधिकार कानून के तहत मिले दस्तावेजों से बताया है कि जिस क्षेत्र में स्वर्ण भंडार है वह सघन जंगल है। खुद वन विभाग ने उसे अभयारण्य के विस्तार में शामिल किया हुआ है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने अक्टूबर 2017 में वन विभाग के प्रमुख सचिव को यह प्रस्ताव भेजा था। इसमें देवपुर वन परिक्षेत्र के 22 कक्ष यानी 5 हजार 114 हेक्टेयर जंगल को बार नवापारा में शामिल करने का प्रस्ताव था। इसमें 144 हेक्टेयर का कक्ष संख्या 254 भी एक था, जहां सर्वेक्षण की अनुमति मांगी गई है।
2020 में वन विभाग ने मना किया था सर्वेक्षण के लिए
संजीव अग्रवाल की ओर से एनजीटी में पेश एक और दस्तावेज में बताया गया है कि 2 जून 2020 को वन अफसरों की एक कमेटी ने वहां किसी तरह का खनिज सर्वेक्षण नहीं कराने की सिफारिश की थी। अफसरों का कहना था, अगर इस क्षेत्र में खनिज पूर्वेक्षण की अनुमति दी जाती है तो बिना जंगल को नष्ट किए अथवा उसमें छेड़छाड़ किए ऐसा करना संभव नहीं होगा। ऐसे में पूर्वेक्षण की अनुमति दिया जाना उचित नहीं होगा।
90 के दशक में हुई थी खदान की खोज
छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार-भाटापारा जिले के पूर्वी क्षेत्र के लगभग 608 हेक्टेयर में फैली बाघमारा गोल्ड माइन रायपुर से लगभग 130 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसकी खोज वर्ष 1981 एवं 1990 के बीच मध्य प्रदेश के भौमिकी तथा खनिकर्म संचालनालय की देखरेख में हुआ था। अब तक किए गए एक्सप्लोरेशन कार्य एवं उपलब्ध रिपोर्ट के मुताबिक क्षेत्र में 2700 किलो स्वर्ण भंडार संभावित है। यहां पहले भी सोना निकाला जाता रहा है। इसके अवशेष यहां उपलब्ध हैं।
शहीद वीरनारायण सिंह की जन्मभूमि
सोनाखान 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के शहीद वीर नारायण सिंह की जन्मस्थली भी है। इसकी वजह से इसका सांस्कृति-ऐतिहासिक महत्व भी है। वहां खनन गतिविधियों को लेकर स्थानीय ग्रामीण विरोध पर भी अमादा हैं। बारनवापारा अभ्यारण्य है, जिसमें जंगली जानवर बहुतायत में पाए जाते हैं।
बाघमार गोल्ड ब्लाक 144 हैक्टेयर में फैला हुआ है। जिस क्षेत्र में सोने का सर्वेक्षण किया जा रहा है, उसमें घने जंगल हैं, बांस और अन्य औषधि पेड़ हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में भालू और अन्य जंगली जानवर भी विचरण करते हैं।
मिली थी पूर्वेक्षण की अनुमति
याचिकाकर्ता संजीव अग्रवाल ने बताया कि बलौदाबाजार वन मंडल में 607.944 हैक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र में बाघमार गोल्ड ब्लाक में 58 बोर होल के माध्यम से पूर्वेक्षण की अनुमति दी गई है। यही नहीं, बारनवापारा अभ्यारण्य के विस्तार के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) ने प्रमुख सचिव वन को प्रस्ताव भेजा है।
वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम ने स्वीकार किया है कि घने जंगलों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए सर्वेक्षण नहीं हो सकता है। यह रिपोर्ट समिति ने दो जून 2020 को सौंपी है, इसके बावजूद सर्वेक्षण की अनुमति दे दी गई।