बच्चे गाएंगे अरपा पैरी के धार, स्कूल शिक्षा विभाग के निर्देश जारी
रायपुर। छत्तीसगढ़ के स्कूलों में अब प्रार्थना सभा की शुरुआत राज्य गीत ‘अरपा पैरी के धार’ से होगी। प्रार्थना सभा की अगुवाई मासिक आकलन में सर्वाधिक अंक पाने वाले पांच विद्यार्थी करेंगे। इसी आधार पर प्रत्येक माह बच्चों का चयन किया जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग ने स्कूलों में शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए प्रार्थना सभा के संबंध में निर्देश जारी किए गए हैं।
नए निर्देशों के मुताबिक प्रार्थना सभा में शाला नायक, विद्यार्थियों को देश और प्रदेश की एकता, समृद्धि के लिए शपथ दिलाएगा। इस दौरान ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ जैसा एक प्रेरणा गीत गाया जाएगा। समाचार पत्र से सामान्य ज्ञान और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुख्य समाचारों की हेडलाइन का वाचन किया जाएगा। इस दौरान विद्यार्थी ही कोई नैतिक या प्रेरक कहानी सुनाएंगे। विद्यार्थियों द्वारा राष्ट्रगान के साथ प्रार्थना सभा का समापन किया जाएगा।
करीब 20 मिनट की प्रार्थना सभा
स्कूल शिक्षा विभाग ने प्रार्थना सभा में प्रत्येक हिस्से के लिए समय भी निर्धारित कर दिया है। राज्यगीत के लिए एक मिनट 15 सेकेंड, शपथ के लिए एक मिनट, प्रेरणा गीत के लिए 2 मिनट, समाचार पत्र वाचन के लिए 5 मिनट, नैतिक व प्रेरक कहानी के लिए 5 मिनट और राष्ट्रगान के लिए 52 सेकेंड का समय तय हुआ है। यानी प्रार्थना सभा के आयोजन से विसर्जन तक करीब 20 मिनट का वक्त लगेगा।
2019 में मिला था राज्य गीत का दर्जा
नरेंद्र वर्मा के लोकप्रिय गीत अरपा पैरी के धार… को 2019 में पहली बार राज्य गीत का दर्जा दिया गया था। उसके बाद से ही यह सभी सरकारी आयोजनों में अनिवार्य रूप से गाया जाता है। स्कूल शिक्षा विभाग ने इसको दैनिक प्रार्थना सभा में भी शामिल कर लिया है।
प्रौढ़ शिक्षा मातृभाषा में, नरवा, गरवा, घुरवा
बाड़ी को भी शामिल करने का दिया सुझाव
प्रदेश सरकार की फ्लैगशिप योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी अब प्रौढ़ शिक्षा के कोर्स में शामिल की जाएगी। राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद में राज्य संचालन समिति की बैठक में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं शिक्षाविद् डॉ. सुशील त्रिवेदी ने सुझाव दिया कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। शिक्षा में त्रिभाषा फार्मूला लागू हो।
भाषा सिखाने के साथ-साथ संप्रेषण कौशल पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा के संदर्भ में कहा कि प्रौढ़ शिक्षा में नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी को शामिल करें। वनांचल के लिए वनोपज केंद्रों में इस कार्यक्रम को जोड़ा जाना चाहिए। डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि आंकलन पद्धति में बदलाव की जरूरत है।
राज्य की विविधता को देखते हुए आंकलन योजना तैयार करनी चाहिए। प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित सभी विभागों को एकजुट होकर काम करना चाहिए। नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार चार पाठ्यचर्याएं स्कूल शिक्षा, ईसीसीई, शिक्षक-शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा का विकास किया जाना है।
एनसीईआरटी के अपर संचालक डॉ. योगेश शिवहरे ने विश्वास जताया कि राज्य की आवश्यकता और संस्कृति के अनुकूल ही राज्य की पाठ्यचर्या तैयार की जाएगी। पाठ्यचर्या इस तरह तैयार करें कि प्रत्येक बच्चे को विकास के समुचित अवसर प्राप्त हो सकें।