मधुर धुनों की यात्रा
26 जनवरी को सिक्किम के महाराजा का ताज चुराने का प्लान बनाया हैं ‘ज्वेल थीफ’ ने, उसके साथी चेहरे पर मुखौटे लगाकर शालिनी (वैजयंतीमाला) और विनय/प्रिंस अमर (देव आनंद) के साथ महाराजा के दरबार में आयें हैं…
उनका महाराजा, और उनके शाही मेहमानों के सामने नृत्य और गाने का कार्यक्रम हो रहा हैं, बंबई के पुलिस आयुक्त (नज़ीर हुसैन) भी ज्वेल थीफ को पकडने के हेतु वहां मौजूद हैं …क्या होगा आगे ? रहस्य कायम रखा हैं निर्देशक ‘गोल्डी’ यानि विजय आनंद ने ..
फ़िल्म – ‘ज्वेल थीफ’ (1967) का यह गीत क्लाईमेक्स के पहले आता हैं … नृत्यांगना ‘वैजयंतीमाला’ का अतिसुंदर पदन्यास, उन्हें देव साहब का हाथों में एक ‘अनोखा’ ढोलक लेकर साथ … सहनर्तक, सहनर्तिका का सहभाग बहुत रोचक बनाता हैं गीत को …
सुंदर फिल्मांकन और सबसे अहम बात दादा बर्मन का वाद्यों का संयोजन, चयन बहुत गज़ब का हैं और परंपरा से हटके उन्होंने ज्यादा वाद्यों का उपयोग किया हैं, धुन लोकगीत पर आधारित हैं, आर.डी. बर्मन इस फ़िल्म में दादा बर्मन के असिस्टेंट थे
2 मि. 3 सेकंद के प्रील्युड में तुतारी वादन आकर्षित करता हैं, और ढोल की ताल पर चेहरे पे मुखौटा लगाकर, गले में अलग प्रकार का ढोलक लटका के देव साहब की रुबाबदार एंट्री, वें एक हट के अलग भेस में लेकिन बहुत हैंडसम लग रहे हैं …भूपेंद्र की आवाज़ उनके लिए,’नाचो रे’ हे हे हे, नाचो रे’ साथ कोरस …
अब सहनर्तिकाओं के साथ वैजयंतीमाला नाचती हुई प्रवेश करती हैं दरबार में, उसे मजबूरन नाचना और गाना हैं … लता की आवाज़ में मुखडा दो बार गाकर गीत का आरंभ करती हैं, गीत के द्वारा देव को संदेश देती हुई …
होठों में ऐसी बात मैं दबा के चली आई
खुल जाए वोही बात तो दुहाई है दुहाई
हाँ रे हाँ, बात जिसमें, प्यार तो है, ज़हर भी है, हाए … ‘हाँ रे हाँ’, और ‘हाए’ बहुत गजब का गाया हैं लता ने
होंठों में ऐसी बात…
इंटरल्यूड में डफ लय और ताल में झक्कास बज रहा हैं … गीत की मधुरता बढ़ा रहा है बाद में ग्रुप व्हायलिन्स, बाँसुरी, ‘ओबेओ’ यह शहनाई जैसा वाद्य हैं,
हो sss शालू… लता की गज़ब तान, वैजयंतीमाला द्वारा देव को याद दिलाने की कोशिश, अब पहला अंतरा
रात काली नागन सी हुई है जवां … ग्रुप व्हायलिन्स, बाँसुरी …’दादा बर्मन’ अपनी शैली में लौटते हैं
हाए दय्या किसको ड़सेगा ये समा … ‘हाये दय्या’ समां बनाती लता … पर्देपर ‘वैजू’
जो देखूँ पीछे मुड़ के … कोरस के साथ, देव का भी बढ़िया अभिनय और ‘हाये’ तो पग में पायल तड़पे
आगे चलूँ तो धड़कती है सारी अंगनाई … लता अंतरा पूरा करके मुखडे पर आती हैं
होठों में ऐसी बात …गिटार पीस, साथ में डफ, ढोलक का वादन अप्रतिम
इंटरल्यूड में ‘गाँग’ यह एक तरह की थाली होती हैं जिसे हथोड़े से बजाते हैं ..ओबेओ, बाँसुरी, मृदंग,
हो ssss शालू … भूपेंद्र की आवाज़, देव के लिए, अब देव सतर्क करते हैं, वैजू को, उनके दिल की बात समझाते हुए …दूसरा अंतरा अब लता गाती हैं … पर्दे पर वैजू का विलोभनीय नृत्य जारी हैं …
ऐसे मेरा ज्वाला सा तन लहराए … ग्रुप व्हायलिन्स, बाँसुरी, फ़िर ‘अरे हां हां हां आ आ’ लता रंगत बढ़ाती हैं
लट कहीं जाए, घूँघट कहीं जाए …
अरे अब झुमका टूटे … कोरस का हाये, देव भी बढ़िया साथ देते
के मेरी बिंदिया छूटे …
अब तो बनके कयामत लेती हूँ अंगड़ाई
लता मुखडा दोहराती हैं
होठों में ऐसी बात … हां
गीत समाप्त, अब ‘दादा बर्मन’ का कम्माल 6 .०० मि. से, 8 मि. 20 सेकंड तक …पूरा 2 मि. 20 सेकंड का पोस्टल्यूड…सभी वाद्य अब बजते हैं…Melody शुरू होती हैं, लय और ताल में, Gong, ढोलक, फ़िर OBEO, ग्रुप व्हायलिन्स, बाँसुरी, तबला, Tambourine, मृदंग, ढोलक, अब सब मेहमान और महाराजा गीत संगीत में खोये हैं, सहनर्तिका, नर्तक के साथ वैजू का पदन्यास और देव ढोलक बजाते सबकी नजरें बचाते, ऊपर महाराजा की ओर बढ़ रहे हैं…
तीव्र गति से बजते ग्रुप व्हायलिन्स की मस्त झंकार, साथ ढोलक और अचानक सब रुकता हैं … 8 मिनट 20 सेकंड तक का संगीतमय समां टूट जाता हैं …दादा बर्मन की इस संगीत की जादूगरी से बाहर आने में बहुत देsssर लगती हैं … मजरूह साहब के इस नायाब गीत को उतनी ही दर्जेदार धुन बनाई थी दादा ने …
‘विजय आनंद’ द्वारा क्लाइमैक्स के पहले गीत रखने के, इस ट्रेंड को बाद में सभी निर्देशकों ने अपना लिया था … वैजयंतीमाला का उत्कृष्ट नृत्याविष्कार, देव साहब का उन्हे बढ़िया साथ … मजरूह साहब के बोल, दादा बर्मन की हटके ज्यादा साजों द्वारा बनाई धुन और व्ही. रात्रा के गोलाकार घूमते कैमरे द्वारा इस गीत का सुंदर फिल्मांकन, देव, वैजयंतीमाला के क्लोज अप्स, कोरस गायकों का उत्तम गायन, लता – भूपेंद्र की मधुर आवाज़ इन सारी बातों से यह गीत आज भी जवां हैं, और रहेगा !!!