साहित्य जगत में हर्ष का माहौल, मुख्यमंत्री बघेल ने भी दी शुक्ल को बधाई, समूचे एशिया से शुक्ल पहले व्यक्ति जिन्हें यह अवार्ड मिला
रायपुर। साहित्य के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित ‘2023 पेन अमेरिका व्लादिमीर नाबाकोव अवार्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर’ से छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित कवि विनोद कुमार शुक्ल सम्मानित किए जा रहे हैं। वे पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक हैं जिन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किए जाने का निर्णय लिया गया है।
इस पुरस्कार में विनोद कुमार शुक्ल जी को 50 हजार डॉलर की राशि प्रदान की जाएगी जो भारतीय मुद्रा में 41 लाख रुपए की राशि होगी।
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विनोद कुमार शुक्ल के साथ ही सुप्रसिद्ध नाटककार एरिका डिकर्सन डेस्पेंज़ा को पेन लौरा पेल्स इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर थियेटर पुरस्कार की घोषणा की गई है। एरिका डिकर्सन नाटककार हैं। शिकागो निवासी एरिका डिकर्सन-डेस्पेंज़ा नारीवादी कवि-नाटककार और शिक्षिका हैं।
दुनिया के सर्वोच्च सम्मानों से एक पेन अमेरिका व्लादिमीर नाबाकोव सम्मान पिछले वर्ष सुप्रसिद्ध अफ्रीकी लेखक न्गुगी वा थिओन्गो को प्रदान किया गया था। विदित हो कि न्गुगी वा थिओन्गो का नाम नोबल पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था।
कवि, कहानीकार व उपन्यासकार छत्तीसगढ़ के गौरव श्री विनोद कुमार शुक्ल जी को PEN अमेरिका द्वारा “PEN/नाबोकोव पुरस्कार 2023” से सम्मानित करने की घोषणा न केवल छत्तीसगढ़ के लिए बल्कि देश के लिए गर्व का विषय है।
यह हिन्दी के लिए भी बड़ी उपलब्धि है।
विनोद जी और पूरे छत्तीसगढ़ को बधाई। pic.twitter.com/jEnXXYfTFF
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) February 28, 2023
2023 पेन अमेरिका व्लादिमीर नाबाकोव की तीन सदस्यीय जूरी में अमित चौधरी के साथ रोया हकाकियान और माज़ा मेंगिस्टे शामिल थे।
विनोद कुमार शुक्ल को इस पुरस्कार के लिए नामांकित करते हुए तीनों जूरी के सदस्यों का यह अभिमत था कि:
Amit Chaudhuri, Roya Hakakian, and Maaza Mengiste, the panel of judges who selected Vinod Kumar Shukla for the award, said, “Shukla’s prose and poetry are marked by acute, often defamiliarizing, observation. The voice that emerges is that of a deeply intelligent onlooker; a daydreamer struck occasionally by wonder. Writing for decades without the recognition he deserves, Shukla has created literature that changes how we understand the modern. With this award, the 2023 PEN/Nabokov Award for Achievement in International Literature acknowledges a writer as well as a tradition, or traditions, of anomalousness in literature without which we cannot fully grasp our history or inhabit our present.”
विनोद कुमार शुक्ल की प्रमुख कृतियां –
•नौकर की कमीज •दीवार में एक खिड़की रहती थी •हरे घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ •अतिरिक्त नहीं •वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिन कर विचार की तरह •सब कुछ होना बचा रहेगा •कभी के बाद अभी •लगभग जयहिंद •खिलेगा तो देखेंगे •पेड़ पर कमरा •महाविद्यालय •आकाश धरती को खटखटाता है •एक कहानी •कविता से लंबी कविता.
हिन्दी कथा लेखन की धारा कहीं अवरुद्ध हो गयी, ऐसा
सोचने वाले शुक्ल की कथाधारा का आनंद लें
अशोक आत्रेय
विनोद कुमार शुक्ल को मिले इस अंतरराष्ट्रीय सम्मान से समूचे भारत सहित छत्तीसगढ़ राज्य के साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार, बुद्धिजीवी, संवेदनशील पाठक अभिभूत हैं। कुछ सीमित लोग जो सोचते हैं हिन्दी कथा लेखन की धारा कहीं अवरुद्ध हो गयी है-उन्हे विनोद कुमार शुक्ल की अचरज भरी अद्वितीय ललित कथाधारा का आनंद लेना चाहिए !
जीवन की ऊब व उकताहट एक अजीब तरह की वितृष्णा की पराकाष्ठा ही है लेकिन वही हमें अपने सामान्य अनुभवों को किसी ऐसे ढांचे में भी ढाल सकती है जो हर तरह की स्थिति- परिस्थिति में भी असामान्य मगर रचनात्मक आनंद व ऊर्जा से अनायास ही जुड़ सकती है। जो नवाचार मूर्त में अमूर्त और अमूर्त में मूर्त का सृजन करता है। इसे परंपरागत अर्थ या रूप में अब्सर्ड या अजनबीपन के सीमित दायरे में नहीं रखा जा सकता है। इसके समानांतर ऐसी मानसिकता एक नयी समानांतर दुनिया व समाज की रचना को निर्मित करती है। यह हमारी निर्मम अनुभूतियों की भी एक सकारात्मक
प्रतिक्रिया ही होती है जो व्यक्ति और समाज में नये मूल्यों की चेतना और स्फुरण जगाती है।
हिन्दी लेखक विनोद कुमार शुक्ल को मिलेगा 50 हजार डॉलर (करीब 41 लाख रुपये) का PEN Nabokov पुरस्कार। विनोद जी यह पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय लेखक हैं। pic.twitter.com/73MOR8nraR
— Rangnath Singh (@rangnathsingh_) February 28, 2023
विनोद कुमार शुक्ल का रचना संसार ऐसी ही विशुद्ध भारतीय रचनात्मकता का लगभग अद्वितीय गद्य है जो कवितात्मक आहट और संवेदना के साथ हर नयी पुरानी भावभूमि में जीवन की सूक्ष्मतम अनुभूतियों को व्यापक परिवेश देता हुआ व्यष्टि संदर्भों को समष्टि के समग्र दर्शन में अभिव्यक्त करता है। उनको विश्व के सर्वोच्च पैन अमेरिका इण्टरनेशनल नोबोकोव पुरुष्कार मिलने से भारत और खास करके हिन्दी को गौरव मिला है।
यह आकस्मिक नहीं है कि विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी साहित्य की लगभग उसी आधुनिक लेखन की धारा से जुड़े हुए लेखक है जिसकी शुरूआत कृष्ण बलदेव वैद ने अपनी कहानियों व उपन्यास में साफ साफ करदी थी लेकिन समय रहते उनको साहित्यिक राजनीति के कारण वह स्थान नहीं मिला जिसके वे पहले हकदार थे।उनके साथ ही यह आहट लक्ष्मीकांत वर्मा और रमेश बक्षी व अकिंचित रूप में अशोक आत्रेय में भी सुनी जा सकती है।
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब
असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आएँगे मेरे घर
खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।
–विनोद कुमार शुक्ल pic.twitter.com/YGvHpwq8e3
— Ayush Chaturvedi (@TheAyushVoice) July 27, 2022
अशोक वाजपेयी ने वैद के बारे में लिखा है-‘ मुक्तिबोध की तरह कृष्ण बलदेव वैद एक गोत्रहीन लेखक हैं। उनका हिन्दी साहित्य की परंपरा में कोई पूर्वज समझ में नहीं आता। ‘ इसके साथ यह कहा जाना चाहिए कि हिन्दी की नयी कहानी की धारा में वैद की उपस्थिति विस्फोटक रही जिसे विनोद कुमार शुक्ल ने और अधिक रोचक रोमांचक संवेदनशिल लेकिन ललित बनाया।
• कवि विनोद कुमार शुक्ल को—वर्ष 2023—पेन/नाबाकोव अवार्ड फ़ॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर के लिए बधाई!#विनोद_कुमार_शुक्ल #PENAward pic.twitter.com/0zoWkqU0Uy
— Hindwi (@hindwiOfficial) February 28, 2023
यह नयी चेतना व कथाधारा निश्चित रूप से एडगर एलेन पो फ्रेंज काफ्का नोबोकोव जेम्स जायस बैकिट कामू आदि के जरिये हिन्दी में आई और जिसमें हिन्दी कविता नाटक व आधुनिक चित्रकला व अस्तित्ववादी दर्शन का भी गहरा प्रभाव पडा। विस्मयकारी बात तो यह भी है कि हाल ही में बुकर से नवाजा गया गीताश्री का ‘रेत समाधि’ का अंग्रेजी में अनुदित उपन्यास भी इसी नवाचार की एक अलग तरह की ‘ प्रश्नाकुल- उपलब्धि’ रहा। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि विनोद कुमार शुक्ल के सहज व मर्मस्पर्शी कथा लेखन व उनकी कविता की उपलब्धियों को देखकर ही यह सम्मान उनके सर्वोच्च लेखन को मिला। बधाई।
पढ़े जाने का सुख प्रदान करती कविताओ के कवि विनोद कुमार शुक्ल की रचनाएं
अख्तर अली
जो युवा घटिया साहित्य के स्वाइन फ्लू की चपेट में आ गये है,उन्हें बतौर उपचार विनोद जी की रचनाओ का अध्ययन करना चाहिए उन्हें शीघ्र स्वास्थ लाभ होगा। साहित्य के इस कास्मेटिक युग में विनोद जी का लेखन नई राह दिखाने वाला लेखन है। गुरुवर रवीन्द्र नाथ टैगोर का काव्य लेखन जिस प्रकार लोगो के दिलो दिमाग में नशे की तरह छा गया था, वैसा ही प्रभाव विनोद जी का काव्य लेखन पैदा कर रहा है। लेखन का एक काल वह था–लेखन का एक काल यह है । ऐसे कवियों की सूची बहुत लम्बी है जो हमको प्रभावित करते है लेकिन विनोद जी तो दीवाना बना देते है ,उनका अंदाज़े बयाँ तो देखिये –
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मै नही जानता था
हताशा को जानता था /
इसलिए मै उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढाया
मेरा हाथ पकड़ कर वह खड़ा
हुआ
मुझे वह नही जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था /
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दुसरे को नही जानते
थे
साथ चलने को जानते थे।
जो सबकी घड़ी में बज रहा है
वह सबके हिस्से का समय नहीं है
इस समय
-विनोद कुमार शुक्ल
हिंदी के शीर्ष कवि विनोद कुमार शुक्ल जी को 86वीं जन्मदिन की बहुत बधाई 🌿 pic.twitter.com/gCHcWPrwL6
— Alok Putul (@thealokputul) December 31, 2022
विनोद जी कविताओं में गजब का संसार रचते है। इनके शब्द द्रृश्य,रंग,लय, संगीत से ओत प्रोत होते है। इनके शब्द कविता में नृत्यांगना की तरह थिरकते है,अभिनेता की तरह मटकते है ,बच्चे की तरह मचलते है। विनोद जी के शब्द कभी शिशु की तरह घुटने चलते है तो कभी खिलाडी की तरह उछलते है। कवि कविता में स्वयं से बात करता है ,खुद से सवाल करता है खुद को जवाब देता है लेकिन उसका काव्यात्मक हुनर खुद से पूछने को समाज से पूछना और खुद को जवाब देने को समाज को जवाब देने में की महीन कारीगरी में तब्दील हो जाता है।
कहने सुनने का यह अंदाज़ देखिये –
दूर से अपना घर देखना चाहिए
मजबूरी में न लौट सकने वाली दूरी से अपना घर
कभी लौट सकेगे की पूरी आशा से
सात समंदर पार चले जाना चाहिये
जाते जाते पलट कर देखना चाहिए
दुसरे देश से अपना देश
अन्तरिक्ष से अपनी पृथ्वी
तब घर में बच्चे क्या करते होगे की याद
पृथ्वी में बच्चे क्या करते होगे की होगी
घर में अन्न जल होगा की नहीं की चिंता
पृथ्वी में अन्न जल की चिंता होगी
पृथ्वी में कोई भूखा
घर में भूखा जैसा होंगा
और पृथ्वी की तरफ लौटना
घर की तरफ जैसा।
“स्थानीय हुए बिना सार्वभौमिक नहीं हुआ जा सकता”
PEN/NARBOCOV AWARD FOR ACHIEVMEMENT IN INTERNATIONAL LITERATURE
छत्तीसगढ़ के “विनोद कुमार शुक्ल”
मैं अभिभूत हूँ 😊🙏 pic.twitter.com/JDyRy7svcu
— Tripti Soni (@triptisoni6194) February 28, 2023
विनोद जी कविता में जीवन गढ़ते है।जीवन को जीने का सलीका सिखाने वाली कविताओं के कवि का नाम है विनोद कुमार शुक्ल।आपकी छोटी सी छोटी कविता में भी बहुत बड़ा उपन्यास समाहित है। भाषा को सरल से सरलतम बना देना और अर्थ को गहन से गहनतम कर देना ऐसे रचनाकार है विनोद जी। सौम्य भाषा, सामान्य विषय और कलात्मक शिल्प इन तीन विशेषताओ का यह काव्य शिल्पी कविता में धीरे से कहता है लेकिन उसकी झंकार दूर तक सुनाई देती है। कवि रच कर चुप हो जाता है फिर कई दशको तक उसकी रचना बोलती है ,उनका पाठक बोलता है ,समीक्षक बोलता है ,आलोचक बोलता है।
हिंदी के लिए,हिंदुस्तान के लिए खुशी की बात
"दीवार में एकखिड़की रहती थी"
"नौकर की कमीज" जैसी रचनाओं के माध्यम से हिंदी को समृद्ध करने वाले विनोद कुमार शुक्ल को PEN/Nabokov अवॉर्ड दिया जाएगा. गीतांजलि श्री को कुछ समय पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला था. pic.twitter.com/m4zvlvs7l3
— Vishwa Deepak (@vdiimc) February 28, 2023
कवि चुप हो जाता है कविता बोलती रहती है,बानगी देखिये आप स्वय कह उठेगे वह वह क्या लिखा है–
‘’जो मेरे घर कभी नहीं आएगे
मै उनसे मिलने
उनके पास चला जाउंगा |
एक उफनती नदी कभी नहीं आऐगी मेरे घर
नदी जैसे लोगो से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा
कुछ तैरूँगा और डूब जाउंगा।
पहाड़,टीले ,चट्टानें ,तालाब
असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आयेगे मेरे घर
खेत खलिहानों जैसे लोगो से मिलने
गाँव गाँव ,जंगल – गलियाँ जाउंगा।
जो लगातार काम से लगे है
मै फुरसत से नहीं
उनसे एक जरुरी काम की तरह
मिलता रहूँगा।
इसे मै अकेली आखिरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।’’
हिन्दी साहित्य जगत के सबसे प्रिय लेखकों में से एक, विनोद कुमार शुक्ल को अंतराष्ट्रीय साहित्य में अपने योगदान के लिए 'पेन नबोकोव अवॉर्ड' से नवाज़ा जाएगा।
हमारे प्रिय लेखक को इस सम्मान के लिए बहुत बहुत बधाई 🙏#VinodKumarShukla #Writer #Poet pic.twitter.com/y0zxEigbuf
— द बेटर इंडिया (The Better India – Hindi) (@TbiHindi) February 28, 2023
कविता की सबसे अच्छी बात यह होती है की कविता कभी खराब नहीं होती है ,वह या तो बहुत अच्छी होती है या थोड़ी कम अच्छी होती है , क्योकि कविता में कविता की वजह होती है ,उसकी ज़रूरत होती होती है ,उसके गर्भ में बेहतर जीवन जीने का संदेश होता है,प्रेम की महत्ता होती है ,प्रेम को बचाये रखना का निवेदन होता है ,अनहोनी की चेतावनी होती है , सावधान हो जाने का ऐलान होता है , इंसान की इंसानियत को बचाये रखने का प्रबंध होता है ,ज़ुल्म के खिलाफ निडर खड़े हो जाने का आव्हान होता है ,युद्ध का शंखनाद होता है | कविता निहित विचार के कारण कविता होती है अपने प्रारूप के कारण नहीं।
PEN अमेरिका द्वारा छत्तीसगढ़िया माटी के गौरव, हिंदी भाषा के उत्कृष्ट कवि व उपन्यासकार श्री विनोद कुमार शुक्ल जी को “PEN/नाबोकोव पुरस्कार 2023” की सम्मान प्राप्ति पूरे छ:ग और भारतवर्ष के लिए गौरव का क्षण है।
साहित्य जगत के लिए यह उपलब्धि अर्जित करने पर शुक्ल जी को बहुत शुभकामनाएं। pic.twitter.com/HwhbA43yeI
— Dr Raman Singh (@drramansingh) February 28, 2023
जिसमे एक उम्दा सोच न हो भले वह कविता की शैली में लिखी गई कुछ शब्दों का जमावड़ा हो लेकिन हम उसको कविता नही मानते ,हम तो इसे कविता स्वीकार करते है –
जाते जाते ही मिलेगे लोग उधर के
जाते जाते जा सकेगे उस पार
जाकर ही वहा पहुच जा सकेंगा
जो बहुत दूर संभव है
पहुच कर संभव होगा
जाते जाते छूटता रहेगा पीछे
जाते जाते बचा रहेगा आगे
जाते जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब
तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा
और कुछ भी नहीं में
सब कुछ होना बचा रहेगा।
जंगल से बाहर हुआ आदिवासी अब एक पेड़ के लिए भी आदिवासी नही रहा – विनोद जी
विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिका द्वारा 2023 PEN/नाबोकोव पुरस्कार सम्मानित किया जाएगा l@thealokputul @DS_9826193431@riteshmishraht pic.twitter.com/tQPxVh9TmV
— Sandeep Yadav (@SandeepYadavSKY) February 28, 2023
विनोद जी कविता के माध्यम से पाठक को असहिष्णुता के रेगिस्तान से निकाल कर प्रेम और विश्वास की चांदनी रात में ले आते है। आप समय को भाषा की रात का समय होने नही देते ,इनके लेखन में सदैव भाषा प्रातः काल के समय में होती है। इन्होने कविता के सहारे सोच की स्व्च्छत्ता को खड़ा किया है। विनोद जी के पास कहने का जो लहजा है वह संयमित लहजा है ,नाराजगी में भी भरपूर नरमी समाहित है ,क्रोध और उत्तेजना का इनके लहजे में कोई स्थान नहीं ,बावजूद इसके भूख की चिंता में लिखी गई कविताये शांत स्वरूप की गुस्सैल रचनाये है, कविता में कवितापन को बचाने के लिये कवि ने कविता में चीखा भी बहुत शांति से है, और यह शांतिपूर्ण चीख वहां तक पहुची है जहाँ तक उसे पहुचना था या पहुचाना था,देखिये –
“मै दीवार के ऊपर बैठा
थका हुआ भूखा हूँ
और पास ही एक कौआ है
जिसकी चोच में
रोटी का टुकड़ा
उसका ही हिस्सा
छीना हुआ है
सोचता हूँ की आय
न मै कौआ हूँ
न मेरी चोंच है
आखिर किस नाक नक्शे का आदमी हूँ
जो अपना हिस्सा छीन नहीं पाता।
जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे…
कविता: विनोद कुमार शुक्ल
स्वर: अश्विनी वालिया#ListenWithIrfan pic.twitter.com/kIvRACAPwr
— Irfan (@irfaniyat) February 28, 2023
विनोद कुमार शुक्ल काव्य जगत के महानायक है। इन्होने समूचे काव्य जगत को सम्मानित किया है ,इन्हें पढने के पहले पढने की तैयारी करनी होनी चाहिए ,कवि पाठक की दृष्टि से नहीं लिखेगा लेकिन पाठक को उसे कवि की दृष्टि से पढ़ना आना चाहिए , पाठक को कवि की सोच तक पूरे सौ प्रतिशत पहुचना ही होगा। हमे खुद को कविता पढने वाले पाठक नही कविता समझने वाले पाठक बनाना होगा , कविता में सब कुछ स्पष्ट नही होता ये थोड़ी आधी अधूरी भी होती है ,कवि सिर्फ चिंगारी लगाता है विस्फोट हमे स्वयम होना होता है। विनोद जी की कविताओ का असर यह है कि ये पाठक को कवि कर देते है ,इनकी एक कविता पढो तो दस कविताये लिख सकने लायक बुद्धि चार्ज हो जाती है। विनोद जी की कविताये एक सांस में पढने वाली कविताये नहीं होती है , इन्हें धैर्य के साथ रुक रुक कर , समझ समझ कर पढना होता है ,इसमें निहित बिम्ब का आनंद लेना ही इन्हें पढने का सलीका है, पढ़ते पढ़ते आगे जाने के बाद फिर पीछे आना पड़ेगा तब पढने का सुख मिलेगा ,पहली बार में यह पंक्तिया स्पष्ट नही होने वाली,जैसे-
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे।
– श्री विनोद कुमार शुक्ल
— Anurag Chaturvedi (@AnuragC1106) March 1, 2023
(एक )
आकाश की तरफ
अपनी चाबियों का गुच्छा उछाला
तो देखा
आकाश खुल गया है।
( दो )
यह चेतावनी है
एक छोटा बच्चा है ।
( तीन )
अब पड़ोस के घर जा रहा हूँ
दो कदम ही चला हूँ
घर से दूर ,
मै यात्रा में हूँ
तीर्थयात्रा में |
( चार )
बिहार के बाहर
एक बिहारी मुझे पूरा बिहार लगता है।
( पांच )
हाथी आगे आगे निकलता जाता था और
पीछे हाथी की खाली जगह छूटती जाती थी।
(छै)
मैंने पूर्वजो को कभी नहीं देखा
मै पूर्वजो के चित्रों को याद करता हूँ।
(सात)
पकडे गए जन्म से गूंगे का न बोल पाना
उसका जबान न खोलना बन जाता हो
और भीड़ को तब तक उसे पीटना है
जब तक उसकी बोली का पता न चले
तब बोली भाषा के झगडे में
एक गूंगे का मरना निश्चित है।
(आठ)
पहाड़ को बुलाने
‘आओ पहाड़’ मैंने नहीं कहा
कहा ‘पहाड़’मै आ रहा हूँ।
पहाड़ मुझे देखे
इसलिये उसके सामने खड़ा
उसे देख रहा हूँ \
पहाड़ को घर लाने
पहाड़ पर एक घर बनाउगा।
अख्तर अली
आमानाका ,कुकुर बेडा
रायपुर ( छत्तीसगढ़ )
मो.न. 9826126781
ई मेल – akakhterspritwala@yahoo.co.in