अंबिकापुर में नसबंदी कराने के बाद विवाहिता के गर्भवती होने और बेटी को जन्म देने के मामले में स्थायी लोक अदालत (जनोपयोगी सेवाएं) ने परिवार को 23 लाख रुपए देने का आदेश स्वास्थ्य विभाग को दिया है। क्षतिपूर्ति की राशि के भुगतान का आदेश BMO वाड्रफनगर और CMHO अंबिकापुर को दिया गया है।
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बच्चे के पालन-पोषण के लिए 3 लाख रुपए तत्काल और बाकी के 20 लाख रुपए अगले 15 सालों के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा करने का आदेश भी कोर्ट ने जारी किया है। स्थायी लोक अदालत (जनोपयोगी सेवाएं) अंबिकापुर के न्यायालय में महिला शांति रवि ने परिवाद दायर किया था। अधिवक्ता सुशील शुक्ला के माध्यम से परिवाद पेश किया गया था.
परिवाद में नसबंदी के बाद विवाहिता के गर्भवती होने और बेटी के जन्म को स्वास्थ्य सेवा में कमी मानते हुए महिला को शारीरिक, मानसिक और बच्ची के लालन-पालन में हो रही आर्थिक क्षति को आधार बनाकर 50 लाख क्षतिपूर्ति की मांग की गई थी। मामले की सुनवाई करते हुए अंबिकापुर की स्थायी लोक अदालत की अध्यक्ष उर्मिला गुप्ता ने इसे स्वास्थ्य सेवाओं में कमी माना। अदालत ने अपने फैसले में क्षतिपूर्ति की राशि में आवेदन की तारीख 29 नवंबर 2021 से अदायगी तारीख तक 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से साधारण ब्याज जोड़कर देने का आदेश जारी किया है।
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न्यायाधीश ने आवेदक महिला को 3 लाख नगद या उनके खाते में जमा करने और शेष 20 लाख की राशि 1 नवंबर 2038 तक के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक के सावधि खाते में जमा करने के आदेश दिए हैं। आपात स्थिति में न्यायालय की अनुमति से भी राशि आहरित करने की सुविधा न्यायालय ने दी है।
यह था पूरा मामला
बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर ब्लॉक अंतर्गत शारदापुर की रहने वाली शांति रवि ने एक बेटे और 2 बेटियों के जन्म के बाद नसबंदी के लिए बीएमओ वाड्रफनगर के ऑफिस में रजिस्ट्रेशन कराया था। पंजीयन के बाद वो जिला अस्पताल अंबिकापुर पहुंची। यहां 24 दिसंबर 2019 को उसकी नसबंदी की गई और उसे इसका प्रमाण पत्र भी दिया गया। नसबंदी के कुछ माह बाद उसे पता चला कि वह गर्भवती है। जब वह परामर्श के लिए वाड्रफनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर के पास गई, तो यहां अबॉर्शन में प्रसूता को जान का खतरा बताया गया। महिला ने 12 अक्टूबर 2020 को बेटी को जन्म दिया। नसबंदी असफल होने पर उसे हर तीन महीने में गर्भ निरोधक टीका लगवाने की सलाह दे दी गई।
स्वास्थ्य विभाग का तर्क कोर्ट ने किया खारिज
स्वास्थ्य विभाग ने अपना पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि नसबंदी सहमति पत्र में साफ लिखा है कि नसबंदी के 2 सप्ताह तक गर्भ निरोधक साधनों का उपयोग करना होता है। महिला को गर्भ निरोधक साधन उपलब्ध कराए गए थे, लेकिन उसने इस्तेमाल नहीं किया। नसबंदी असफल होने का भी जिक्र सहमति पत्र में रहता है, जिसमें किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
नसबंदी के बाद भी गर्भ ठहरने की स्थिति में 2 सप्ताह के भीतर जिम्मेदार शासकीय चिकित्सक को सूचना देना है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया, इसलिए महिला क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त करने का अधिकार नहीं रखती है। न्यायालय ने कहा कि गर्भ ठहरने के बाद ही महिला ने चिकित्सक से संपर्क किया था, लेकिन अबॉर्शन में प्रसूता की जान को खतरा बताया गया था। स्वास्थ्य विभाग की दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने इसे स्वास्थ्य सेवा में कमी का मामला मानते हुए फैसला सुनाया है।