हैदराबाद। तेलंगाना (telangana) के सूर्यापेट जिले का एक गांव राघवपुरा में 70 एकड़ का जंगल है, जिसमें 13 तालाब और फलों से लदे हुए लाखों पेड़ हैं। इस ज़मीन के एकमात्र संरक्षक हैं दुशरला सत्यनारायण, जो दशकों से अपनी पुश्तैनी जमीन की देखरेख कर इकोसिस्टम बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।
यहां फलों से लदे हुए लाखों पेड़ हर किसी का ध्यान खींच लेते हैं। इनमें से कुछ पेड़ 50 साल से भी ज्यादा पुराने हैं और कुछ पिछले तीन दशकों में बढ़े हैं। यह जंगल सैकड़ों पक्षियों और कई वन्यजीव प्रजातियों का घर भी है।
बाहर से देखने पर यह दक्षिण भारत के किसी भी अन्य जंगल जैसा दिखता है। लेकिन करीब से देखें, तो यहां आपको कई अनोखे पहलू मिलेंगे। इस जंगल में सुरक्षा के लिए कोई बाड़, द्वार या सुरक्षा गार्ड नहीं हैं। यह सरकार या वन विभाग से भी संबंधित नहीं है। इस पूरे क्षेत्र के एक ही संरक्षक और अभिभावक हैं, वह है दुशरला सत्यनारायण।
68 साल के सत्यनारायण (dusharla satyanarayana) ने न तो यह जमीन खरीदी है और न ही लीज़ पर ली है। उन्होंने एक बेहतरीन इकोसिस्टम बनाने के लिए अपनी पुश्तैनी ज़मीन का इस्तेमाल किया है, जहां उन्होंने अपना पूरा बचपन गुजारा।
4 साल की उम्र से लगा रहे पेड़
प्रकृति के प्रति अपने जुनून के बारे में सत्यनारायण ने बताया कि वह यह जंगल तब से बना रहे हैं जब उनकी उम्र चार साल की थी। वह कहते हैं कि बहुत पहले यह इलाका चरागाह हुआ करता था, जहां मवेशी खाने की तलाश में आते थे। तब सत्यनारायण, इमली और अन्य पौधों के बीज फैला देते थे। वह कहते हैं, “बचपन से ही मुझे प्रकृति से बेहद प्यार था, इतना कि मैं अपने चारों ओर पेड़ लगाना चाहता था।”
सत्यनारायण बताते हैं कि उन्होंने अपना बचपन कई पक्षियों और जानवरों के बीच बिताया और उन्हें अपने आसपास की बायो-डायवर्सिटी के साथ काफी गहरा लगाव भी था। वह एक पटवारी परिवार से हैं, जो अक्सर गांव के ज़मींदार या ज़मीन अकाउंटेंट होते हैं। सत्यनारायण बताते हैं कि उनके परिवार के पास 300 एकड़ ज़मीन थी।
अपने परिवार के बारे में विस्तार से बात करते हुए उन्होंने बताया, “1940 के दशक के अंत तक इस क्षेत्र पर निजामों का शासन था। मेरे पूर्वज उनके अधीन काम करते थे और ज़मीन के इस बड़े हिस्से पर उनका नियंत्रण था। इस ज़मीन का इस्तेमाल मुख्य रूप से सिंचाई और खेती के लिए किया जाता था।”
रिश्तेदारों ने हड़प ली ज़मीन
निज़ाम-नियंत्रित क्षेत्र के विलय होने और भारत का अभिन्न अंग बन जाने के बाद, 1948 में यह ज़मीन सत्यनारायण के परिवार की हो गई। बचपन से ही उन्होंने यहां काफी समय बिताया। जैसे-जैसे सत्यनारायण बड़े होते गए, प्रकृति के प्रति उनका प्रेम और बढ़ता गया।
सत्यनारायण ने बताया, “समय के साथ, इस ज़मीन पर परिवार का स्वामित्व घटकर 70 एकड़ हो गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मेरे परदादा और दादा ने अधिकांश संपत्ति खो दी थी। रिश्तेदारों और दोस्तों ने दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की और ज़मीन को जब्त कर लिया। ज़मीन का यह हिस्सा आखिरी हिस्सा है, जो मेरे कब्जे में रहा और अब भी इस पर खतरा मंडरा ही रहा है।”
उन्होंने आगे बताया कि उनके पिता के पास अभी भी 70 एकड़ ज़मीन है। उसी जमीन पर उन्होंने जंगल बनाने के लिए बीज फैलाना शुरू कर दिया। माता-पिता ने भी सत्यनारायण के प्रक्रृति के प्रति प्रेम और पर्यावरण में उनके योगदान को समझा और किसी तरह का विरोध नहीं किया। वह बताते हैं, “अक्सर, मेरे सहपाठी या गांव वाले बागानों में प्रवेश कर जाते थे या वहां पेड़ आदि की कटाई करने की कोशिश करते थे। लेकिन मैं हमेशा उन्हें ऐसा करने से रोकता था।”
आज सत्यनारायण की 50 साल की मेहनत, जंगल में फल-फूल रहे ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के रूप में दिखाई देती है।
इस जंगल में हैं करोड़ों पेड़-पौधे
अपने युवा दिनों में, सत्यनारायण ने कई तरह के बीज और पौधे इकट्ठा करने के लिए पूरे भारत में दूर-दूर तक यात्रा की। उन्होंने रेन-हार्वेस्टिंग के लिए एक नहर खोदी और पौधों को सींचने के लिए इसे चैनलाइज़ किया। उन्होंने कई तालाब भी बनाए, जहां काफी मात्रा में कमल, मछली, मेंढक और कछुए रहते हैं।
1980 में, वह कृषि विज्ञान से ग्रेजुएट हुए। इसके बाद उन्होंने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के लिए एक फील्ड ऑफिसर के रूप में काम करना शुरू किया। उन्होंने अपनी सारी बचत जंगल बनाने और इसके रख-रखाव में खर्च कर दी। आज, इस ज़मीन पर ढेरों फल देने वाले कई तरह के पेड़ हैं, जैसे- अमरूद, भारतीय बेर, क्लस्टर अंजीर, जामुन, अमरूद, कैरंडस बेर, आम, बांस आदि।
सत्यनारायण बताते हैं कि यहां उगने वाला एक भी फल या वन संसाधन व्यावसायिक उद्देश्यों या मानव उपभोग के लिए नहीं जाता है। वह कहते हैं, “यहां जो कुछ भी उगता है वह हजारों पक्षियों, सांपों की विभिन्न प्रजातियों, खरगोशों, जंगली सूअरों, लोमड़ियों, गिलहरियों, बंदरों, मोर, हिरणों और अन्य वन्यजीवों द्वारा खाया जाता है। जो बचा रहता है वह सड़ जाता है और जंगल को फिर से जीवंत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक अनुमान के मुताबिक जंगल में लगभग 5 करोड़ पेड़-पौधे हैं, जिनमें से कई वन इकोसिस्टम के माध्यम से ही पुनर्जीवित हुए हैं।”
सत्यारायण के जीवन पर बनी डॉक्युमेंट्री
सत्यनारायण ने जंगल की पहचान करने को लेकर बात करते हुए बताया, “एक घने पेड़ वाले इलाके को जंगल तब कहा जाता है, अगर किसी जगह बायो-डायवर्सिटी को बनाए रखने के लिए औषधिय गुणों वाले पेड़, कृषि और बागवानी किस्मों के पौधे और महत्वपूर्ण वनस्पतियों की पर्याप्त प्रजातियां हों। इसके अलावा, जंगल की पहचान बड़े तने वाले पेड़, फल देने वाले पौधों और उनके वितरण और रिजनरेशन के आधार पर भी की जाती है।”
उनका कहना है कि जंगल में औसतन प्रति एकड़ करीब 10 लाख पेड़ हैं। वह कहते हैं, “मेरा जंगल 70 एकड़ ज़मीन पर फैला हुआ है और कुछ खाली जगहों को छोड़कर, यहां लगभग पांच करोड़ पेड़ हैं।” वह आगे कहते हैं, “पक्षी पॉलिनेट (परागण) करते हैं और बीज फैलाते हैं, पौधे पेड़ों में विकसित होते हैं, वन्यजीव अपना योगदान देते हैं, और जंगल भी भूजल स्तर को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी रघुवीर ने बताया कि सत्यनारायण के प्रयासों पर एक डॉक्युमेंट्री बनाई गई है। वह कहते हैं, “सत्यनारायण एक भावुक प्रकृति प्रेमी हैं और उन्होंने अपना जीवन जंगल बनाने के लिए समर्पित किया। यह देखना काफी प्रभावशाली है खासकर तब जब यह काम सरकार या निजी व्यक्तियों के किसी भी समर्थन के बिना किया गया हो। ऐसे प्रयासों को दोहराने और बनाए रखने की ज़रूरत है। उनका काम युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है।”
इस जंगल पर है कइयों की नज़र
सत्यनारायण कहते हैं कि पड़ोसी ज़मींदार और रियल एस्टेट डेवलपर्स की नज़र उनके जमीन पर बनी हुई है। अक्सर वे उन्हें ज़मीन देने के लिए मनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह हर कीमत पर इसकी रक्षा करने के लिए अडिग हैं।
वह कहते हैं कि पिछली तीन पीढ़ियों से वह इस ज़मीन की रक्षा करते आ रहे हैं। कभी-कभी परिवार के कई सदस्य इस ज़मीन को कमर्शिअल करने की सलाह देते हैं। कुछ ने तो 100 करोड़ रुपये की पेशकश भी की है। लेकिन सत्यनारायण के प्रेम और मकसद को कोई हिला नहीं पाया है। वह कहते हैं, “मैं इसे गैर-पर्यावरणीय कारणों से नहीं जाने दूंगा। यहां तक कि मेरे बच्चे भी ज़मीन के वारिस नहीं हैं।’
अंत में वह कहते हैं कि यही समय है जब कि मनुष्य को पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझना चाहिए। वह कहते हैं, “मनुष्य जंगलों और वहां रहनेवाले दूसरे जीवों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करते हैं। जंगल रहेंगे तभी वन में रहनेवाले दूसरे जीव रहेंगे। अगर उनके लिए कोई घर नहीं होगा, तो वे मानव बस्तियों में दखल करेंगे। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के अलावा जंगल, इंसानों और जानवरों के बीच होने वाले संघर्ष को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसलिए जंगलों का होना बेहद ज़रूरी है।”