आज पुण्यतिथि: आजादी के दौर में राजकुमारी
के पार्श्वगायन से गूंज रही थी देश की फिजां
मुंबई। आज की पीढ़ी भले ही अपने दौर की सर्वाधिक लोकप्रिय गायिका राजकुमारी को भूल चुका है लेकिन उनका भी एक दौर था। अपने दौर में राजकुमार ने एक से बढ़ कर एक सुपरहिट गीत दिए।
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फिल्मों में उनकी मांग लगातार बनीं हुई थी। फिर ऐसा वक्त आया जब उनके सितारें गर्दिश में जाने लगे। कभी हर फिल्म में सोलो और डुएट में उनकी मांग हुआ करती थी लेकिन बाद के दौर में उन्हें काम मिलना तो दूर, लोग उन्हें पहचानते तक नहीं थे।
ऐसे दौर में कभी संगीतकार नौशाद ने उन्हें देखा कि अपने दौर की चोटी की गायिका कोरस में गाने खड़ी है तो उन्हें बुरा लगा। इसके बाद संगीतकार नौशाद ने उन्हें एक गीत में बाकायदा कुछ पंक्तियां अलग से गाने के लिए रोका। वह गीत था ‘संघर्ष’ फिल्म का ‘मेरे पैरों में घुंघुरू बंधा दे तो फिर मेरी चाल देख ले’।
इस गीत में मोहम्मद रफी के मुख्य स्वर के अलावा एक और स्वर ‘क्या चाल है तोरी’ कहते हुए। यह स्वर राजकुमारी का था। बाद में संगीतकार गुलाम मोहम्मद के निधन के बाद फिल्म ‘पाकीजा’ का शेष काम नौशाद के जिम्मे आया तो उन्होंने गायिका राजकुमारी को बुलवाया और उनसे कुछ यादगार बंदिशे गवाई।
राजकुमारी का जन्म 1924 में बनारस में हुआ था। उनकी आवाज़ में एक अनोखी मिठास थी, जो भुलाए नहीं भूलती। वे अपने ज़माने की अग्रणी और बेहद प्रतिभाशाली गायिका रहीं। उनके गाए गानों ने बीस से भी अधिक वर्षों तक श्रोताओं का दिल लुभाया। गायिका राजकुमारी ने बेशुमार अभिनेत्रियों को आवाज़ प्रदान की।
उन्होंने अनगिनत संगीतकारों, गीतकारों एवं रंगमंच के कलाकारों को सफलताएँ देने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने महज 14 वर्ष की उम्र में ही अपना पहला गाना एचएमवी में रिकॉर्ड कराया था। गाने के बोल थे- “सुन बैरी बलमा कछू सच बोल न।’
यह अलग बात थी कि राजकुमारी ने किसी संस्था से संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन ईश्वर ने जो उन्हें कंठ बख्शा था, वह कम नहीं था। इसके बाद तो उन्होंने विभिन्न मंचों पर अपनी गायिकी का सफर जारी रखा। तीस के दशक में मूलत: अभिनेत्रियाँ अपने गीत खुद गाती थीं।
इस सूरत को बदलने में राजकुमारी दुबे का नि:सन्देह बड़ा हाथ रहा। उनके गीतों की माँग के चलते कई संगीतकारों ने उनकी आवाज़ का इस्तेमाल किया और आने वाले समय में वे पार्श्वगायन का एक चमकता हुआ सितारा बन गईं। उन्होंने सभी तरह के गीत गाए।
कहते हैं कि एक बार राजकुमारी सार्वजनिक मंच पर गाना गा रही थीं। वहीं उनकी मुलाकात फ़िल्म निर्माता प्रकाश भट्ट से हो गई। उन्होंने राजकुमारी को ‘प्रकाश पिक्चर’ से जुड़ने का न्यौता दे दिया।
इस बैनर के तहत बनने वाली गुजराती फ़िल्म ‘संसार लीला’ में कई गाने पेश किए। इस फ़िल्म को हिन्दी में भी ‘संसार’ नाम से फ़िल्माया गया। इसमें राजकुमारी जी ने गीत पेश किया ‘आंख गुलाबी जैसे मद की प्यालियां, जागी हुई आंखों में है शरम की लालियां।’ इसके बाद तो उनकी प्रतिभा बॉलीवुड में सिर चढ़कर बोलने लगी।
वर्ष 1933 में फ़िल्म ‘आंख का तारा’, ‘भक्त और भगवान’, 1934 में ‘लाल चिट्ठी’, ‘मुंबई की रानी’ और ‘शमशेर अलम’ में गीत पेश कर राजकुमारी दुबे ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। इस दौरान उनके कई कालजयी गीतों ने लोगों को गुनगुनाने के लिए बाध्य कर दिया। अधिकतर सुनने वालों को याद नहीं होगा कि पार्श्वगायन से पहले राजकुमारी अभिनय से भी जुड़ी हुईं थीं।
Popular playback singer of the 30s and 40s, who sang for approximately 100 films, Rajkumari Dubey was born this day in 1919/ 1924. Remembered for her numbers such as Sun bairi baalam sach bol re from Bawre Nain (1950), Ghabaraa ke jo hum sar ko takraayan from Mahal (1949). pic.twitter.com/vXPX9mMki6
— Cinemaazi (@cinemaazi) December 4, 2020
‘बम्बई की सेठानी’ में अभिनय के साथ ही राजकुमारी ने “हमसे क्यों रूठ गये बंसी बजाने वाले” गीत भी गाया था। फिल्म ‘बाम्बे मेल’ के गीत उस ज़माने में बेहद मुकम्मल साबित हुए। गीत “किसकी आमद का यूँ इन्तज़ार है” राजकुमारी ने स्वयं लल्लूभाई एवं इस्माइल के साथ बहुर खूबसूरती के साथ गाया। इस गीत में आरकेस्ट्रा न के बराबर है, पर उनकी आवाज़ की मिठास सुनने वाले का ध्यान खींचती है। इसी फिल्म में धीमी गति की एक गज़ल “बातों बातों में दिल-ए-बेज़ार” उन्होंने अपनी मीठी तानों संग गाया था।
फिल्म का “कागा रे जइयो पिया की गलियन” तो बहुत ही लोकप्रिय हुआ था। 1936 उनके लिए बहुत सफल साबित रहा। कुछ लोग गलत समझते हैं कि इस साल की लोकप्रिय फिल्म ‘देवदास’ में भी अभिनेत्री थीं, पर चन्द्रमुखी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री भिन्न हैं।
1952 में राजकुमारी ने ओ. पी. नैयर के साथ भी कई गीत गाए। यह अलग बात है कि उनका नाम भले ही राजकुमारी था, लेकिन उनका अंत मुफलिसी में हुआ। इस दौरान उन्होंने गायिका और अभिनेत्री के रूप में जो काम बॉलीवुड में किया, वह शायद ही कभी भुला लोग पाएँ।
1955 में गुमनामी की ओर बढ़ती सरस्वती देवी को एक ही गीत ‘इनाम’ फिल्म में मिला। ये भक्ति गीत “तू ही मारे, तू ही तारे, तू ही बिगड़ी बार संवारे” राजकुमारी ने मोहनतारा के साथ गाया था। गीत तो अच्छा है पर दोनों गायिकाओं और संगीतकारा की बिगड़ी संवार नहीं पाया।
1956 में चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी की बाल फिल्म ‘जलदीप’ किदार शर्मा ने निर्देशित की थी। ये फिल्म 1957 में वेनिस में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वोत्तम बाल फिल्म का पुरस्कार लाई थी। राजकुमारी का इसमें कम से कम एक गीत “देखो देखो पंछी देखी ये फुलवारी कैसी” गाया था। ये गीत वक्त के साथ खो गए।
धीरे-धीरे नए ज़माने ने राजकुमारी से मुख मोड़ लिया था और राजकुमारी उसके बाद वर्षों तक गुमनामी की ज़िन्दगी में चली गईं। नब्बे के दशक के अन्त में सारेगामा पर राजकुमारी दुबे को काफ़ी सराहा गया था। उनका एक साक्षात्कार कमर जलालाबादी की सुपुत्री स्वर जलालाबादी ने लिया था।
Birth anniversary Playback Singer Rajkumari 4-12-1924. Kishore Kumar sang with her 1 movie 1 song. Movie :- Saloni. Song :- Ek dil ghabrata hai, Ek dil sharmata hai. Chori chori milne mein, Bada mazaa aata hai. pic.twitter.com/cvqmeZEfvJ
— Rajesh Kotia (@RajeshKotiaJi) December 4, 2022
राजकुमारी गुमनामी में जी तो रही थीं, पर कार्यक्रमों में उनके गायन ने नई पीढ़ी के कई लोगों को उनके बारे में अवगत करा दिया था। वक्त ने उनसे उनकी रोज़ी तो छीन ली थी, पर उनकी आवाज़ की मिठास नहीं छीन सका था। 18 मार्च, 2000 को इस महान् गायिका ने हमेशा के लिए आँखें मूँद लीं। उनके जनाज़े में फिल्म इन्डस्ट्री से गायक सोनू निगम मौजूद थे, जिन्होंने सारेगामा कार्यक्रम संचालित किया था।