Chandrayaan 3 Facts भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की निगाहें आज इतिहास रचने पर टिकी हुई है. चंद्रयान-3 की आज चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी. पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हुई है. शाम 6:04 बजे चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करेगा. फिर रैंप खुलेगा और प्रज्ञान रोवर इससे चांद की सतह पर आएगा. विक्रम लैंडर प्रज्ञान की फोटो खींचेगा और प्रज्ञान विक्रम की. इन फोटोज को पृथ्वी पर सेंड किया जाएगा. अगर भारत अपने इस मिशन में सफल रहा तो वो ऐसा करने वाला पहला देश होगा. चंद्रयान-3 की लैंडिंग को इसरो की वेबसाइट या यूट्यूब चैनल के साथ डीडी नेशनल पर भी लाइव देखा जा सकता है. आइए जानते हैं चंद्रयान-3 से जुड़े सभी अहम सवालों के जवाब…
सवाल 1- कितने बजे लैंड करेगा चंद्रयान-3?
भारत का तीसरा मून मिशन ‘चंद्रयान-3’ 14 जुलाई को लॉन्च हुआ था. इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से छोड़ा गया था. अब 40 दिन बाद लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) आज शाम 6:04 बजे चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग करेंगे. ‘चंद्रयान-3’ को भेजने के लिए LVM-3 लॉन्चर का इस्तेमाल किया गया.
सवाल 2- 23 अगस्त को ही क्यों हो रही लैंडिंग?
Chandrayaan 3 Facts चांद पर 14 दिन तक दिन और अगले 14 दिन तक रात रहती है. अभी वहां रात है. इसरो सभी चीजों की गणना करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है कि 23 अगस्त से चांद पर दिन होगा. यानी वहां सूरज निकलेगा. ऐसे में जब चंद्रयान की लैंडिंग होगी, तब दक्षिणी ध्रुव पर सूरज की रोशनी उपलब्ध रहेगी. चंद्रयान-3 का लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरने के बाद अपने मिशन का अंजाम देने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा. 23 अगस्त से 5 सितंबर के बीच दक्षिणी ध्रुव पर धूप निकलेगी, जिसकी मदद से चंद्रयान का रोवर चार्ज हो सकेगा और अपने मिशन को अंजाम देगा.
सवाल 3 – कितने दिन की यात्रा के बाद पहुंचा चंद्रयान-3?
40 दिन की यात्रा के बाद चंद्रयान-3 आज चांद पर पहुंचेगा.
सवाल 4 – चंद्रयान-3 मिशन पर कितना खर्चा आया?
चंद्रयान-3 मिशन पर 615 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. साल 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के असफल होने के बाद चंद्रयान-3 मिशन की शुरुआत हुई थी. इसे 2021 में ही लॉन्च करने का प्लान था. लेकिन कोविड महामारी की वजह से इसमें देरी हुई और आखिर में 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया.
– अगर चंद्रयान-2 मिशन के वित्तीय बजट की बात करें, तो इस प्रोजक्ट पर 978 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसमें से 603 करोड़ रुपये ऑर्बिटर, लैंडर, रोवर, नेविगेशन और ग्राउंड सपोर्ट नेटवर्क पर और 375 करोड़ रुपये जियो स्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल पर खर्च किए गए थे.
सवाल 5- कहां लैंड करेगा चंद्रयान-3?
‘चंद्रयान-3’ चांद के साउथ पोल रीजन में लैंड करेगा. यहां अभी तक कोई भी देश नहीं पहुंचा है. अगर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग होती है, तो भारत साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बन जाएगा.
सवाल 6- साउथ पोल इलाके में ही मिशन क्यों भेजा गया?
चंद्रमा के पोलर रीजन दूसरे रीजन्स से काफी अलग हैं. यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है. ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां बर्फ के फॉर्म में अभी भी पानी मौजूद हो सकता है. भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था. इस मिशन की लैंडिंग साइट चंद्रयान-2 जैसी ही है. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर. लेकिन इस बार एरिया बढ़ाया गया है. चंद्रयान-2 में लैंडिंग साइट 500 मीटर X 500 मीटर थी. अब, लैंडिंग साइट 4 किमी X 2.5 किमी है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट बन जाएगा. चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी स्पेसक्राफ्ट भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे हैं.
सवाल 7- इससे पहले चंद्रमा पर कौन कौन से देश पहुंचे?
चंद्रयान-3 अगर चांद पर सफल लैंडिंग करता है, तो भारत सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन जाएगा. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ये कारनामा कर चुके हैं.
अमेरिकाः 2 जून 1966 से 11 दिसंबर 1972 के बीच अमेरिका ने 11 बार चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई. इसमें सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट के पांच मिशन थे. छह मिशन अपोलो स्पेसक्राफ्ट के थे. इसी के तहत नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर पहला कदम रखा था. जिनके बाद 24 अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स चांद पर गए. अमेरिका का पहला लैंडर चंद्रमा पर 20 मई 1966 में उतरा था. रूस के लैंडर के उतरने के तीन महीने बाद.
रूस (तब सोवियत संघ): 3 फरवरी 1966 से 19 अगस्त 1976 के बीच आठ सॉफ्ट लैंडिंग वाले लूना मिशन हुए. जिसमें लूना-9, 13, 16, 17, 20, 21, 23 और 24 शामिल हैं. रूस कभी भी चांद पर अपने अंतरिक्षयात्रियों उतार नहीं पाया. 3 फरवरी 1966 में लूना-9 चांद पर उतरने वाला पहला मिशन था. लूना के दो मिशन चंद्रमा की सतह से नमूने लेकर भी वापस आए.
चीनः भारत के इस पड़ोसी देश ने 14 दिसंबर 2013 को पहली बार चांद पर चांगई-3 मिशन उतारा. 3 जनवरी 2019 को चांगई-4 मिशन उतारा. 1 दिसंबर 2020 को तीसरा मिशन चांगई-5 उतारा. इसमें से आखिरी वाला रिटर्न मिशन था. यानी चांद से सैंपल लेकर आने वाला.
सवाल 8- चांद पर 1 दिन का ही मिशन क्यों?
चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. 23 अगस्त को चांद के दक्षिण ध्रुव पर सूरज निकलेगा. यहां 14 दिन तक दिन रहेगा. इस वजह से चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर 14 दिनों तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा.
सवाल 9- लैंडिंग के बाद क्या-क्या होगा?
चांद पर शुक्रवार शाम 6.04 बजे लैंडर विक्रम लैंड करेगा. आज लैंडिंग के साथ ही लैंडर विक्रम अपना काम शुरू कर देगा. लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग सफल रही तो रैंप के जरिए छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आएगा और इसरो से कमांड मिलते ही चांद की सतह पर चलेगा. यह 500 मीटर तक के इलाके में चहलकदमी कर पानी और वहां के वातावरण के बारे में इसरो को बताएगा. इस दौरान इसके पहिए चांद की मिट्टी पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे.
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सवाल 10 – कितने दिन तक चलेगा चंद्रयान-3 मिशन?
चंद्रयान-2 में लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर था. जबकि चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर के बजाय स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल है. जरुरत पड़ने पर चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की मदद ली जाएगी. प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर को चंद्रमा की सतह पर छोड़कर, चांद की कक्षा में 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाता रहेगा. यह कम्यूनिकेशन के लिए है. इसरो वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैंडर-रोवर चंद्रमा पर एक दिन तक काम करेंगे. यानी पृथ्वी का 14 दिन. जहां तक प्रोपल्शन मॉड्यूल की बात है तो यह चार से 5 सालों तक काम कर सकता है. संभव है कि ये तीनों इससे ज्यादा भी काम करें. क्योंकि इसरो के ज्यादातर सैटेलाइट्स उम्मीद से ज्यादा चले हैं.
सवाल 11- लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर क्या काम करेंगे?
– विक्रम लैंडर में चार पेलोड्स लगे हैं. पहला रंभा (RAMBHA). यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा. दूसरा चास्टे (ChaSTE). यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा. तीसरा है इल्सा (ILSA). यह लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा. चौथा है लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (LRA). यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा. Vikram Lander चांद की सतह पर प्रज्ञान रोवर से संदेश लेगा. इसे बेंगलुरु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) में भेजेगा. जरुरत पड़ने पर इस काम के लिए प्रोपल्शन मॉड्यूल और चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की मदद ली जा सकती है. जहां तक बात रही प्रज्ञान रोवर की तो वो सिर्फ विक्रम से बात कर सकता है.
सवाल 12 – भारत के लिए कितना अहम है ये मिशन?
भारत के लिए चंद्रयान 3 काफी अहम मिशन माना जा रहा है. भारत चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग की कोशिश कर रहा है. अगर चंद्रयान 3 सफल लैंडिंग करता है. तो भारत साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बन जाएगा.
सवाल 13 – चंद्रयान-2 से कितना अलग है मिशन चंद्रयान-3?
चंद्रयान-2 में लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर था. जबकि चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर के बजाय स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल है. जरुरत पड़ने पर चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की मदद ली जाएगी. प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर को चंद्रमा की सतह पर छोड़कर, चांद की कक्षा में 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाता रहेगा. यह कम्यूनिकेशन के लिए है.
सवाल 14- चंद्रयान-2 क्यों फेल हो गया था?
इसरो इससे पहले साल 2008 में चंद्रयान-1 और 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च कर चुका है. चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था. चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर के साथ-साथ लैंडर और रोवर भी थे. चंद्रयान-3 को चंद्रयान-2 का फॉलोअप मिशन बताया जा रहा है. इसका मकसद भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना है. चंद्रयान-2 में विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग हो गई थी. तीन महीने बाद अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने इसका मलबा ढूंढा था.
सवाल 15- कितनी बार सफल लैंडिंग हुई है चांद पर?
चांद पर पिछले सात दशकों में अब तक 111 मिशन भेजे गए हैं. जिनमें 66 सफल हुए. 41 फेल हुए. 8 को आंशिक सफलता मिली. पूर्व इसरो प्रमुख जी माधवन नायर भी इस बात को बोल चुके हैं कि मून मिशन के सफल होने की संभावना 50 फीसदी रहती है. 1958 से 2023 तक भारत, अमेरिका, रूस, जापान, यूरोपीय संघ, चीन और इजरायल ने कई तरह के मिशन चांद पर भेजे. इनमें इम्पैक्टर, ऑर्बिटर, लैंडर-रोवर और फ्लाईबाई शामिल हैं. अगर 2000 से 2009 तक की बात करें तो 9 साल में छह लूनर मिशन भेजे गए थे. यूरोप का स्मार्ट-1, जापान का सेलेन, चीन का चांगई-1, भारत का चंद्रयान-1 और अमेरिका का लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर. 1990 से अब तक अमेरिका, जापान, भारत, यूरोपीय संघ, चीन और इजरायल ने कुल मिलाकर 21 मून मिशन भेजे हैं.