एक ऐसा सामाजिक पर्व, जिसे मनाते हैं लाखों की तादाद में लोग
आलेख/शरद कोकास
महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र का अनोखा त्यौहार ‘मारबत’ The unique festival of Vidarbh region in Maharashtra ‘Marbat’ एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ा हुआ ऐसा सामाजिक पर्व है, जिसका उल्लेख कहीं इतिहास में है ना कहीं धर्म में।
देश में स्वच्छता अभियान चाहे जैसे चले लेकिन हमारी लोक परम्पराओं में यह अभियान जाने कब से चल रहा है और इस अभियान में सिर्फ कचरे की सफाई नहीं होती भ्रष्टाचारियों, घूसखोरों, बेईमानों और झूठ बोलने वालों की भी सफाई होती है।
इस अभियान को महाराष्ट्र में ‘मारबत’ पर्व के रूप मे मनाया जाता है। इस बार नागपुर में 27 अगस्त शनिवार को पूरी धूम के साथ मारबत निकली।
आईए, मेरे साथ मेरे बचपन के दिनों में…
आपको इस पर्व के बारे मे बताने के लिए मुझे आपको मेरे साथ मेरे बचपन में जाना होगा। चलिये चलते हैं। मुझे याद आती है गोंदिया में श्रावण मास की अमावस्या अर्थात महाराष्ट्र के बैलों के पर्व पोला के दिन मोहल्ले के बच्चे आसपास लगी बेशरम की झाड़ियाँ,कटीले पौधे या खेतों में उगी खरपतवार उखाड़ कर लाते थे और उन्हें लोगों के घरों के दरवाज़े पर रख देते थे। घर के लोग अपने बगीचों में लगी झाड़ियाँ भी उनमे शामिल कर देते।
फिर अगले दिन सुबह वही बच्चे आते और उन झाड़ियों को उठाकार एक जुलूस के रूप में स्टेशन जानेवाली रोड पर पारस मेटल वर्क्स के आगे एक नाले तक जाते और सारी झाड़ियाँ वहाँ फेंककर आ जाते।
रास्ते भर वे नारे लगाते रहते ”कचरा काड़ी,रोग राई,ढेकूण,मुंगस, मच्छर घेउन जा गे मारबत” इसका अर्थ होता है-”हे मारबत, तू अपने साथ कचरा, गन्दगी,बीमारी,खटमल मच्छर सब कुछ लेकर चली जा” सीधे-सीधे कहें तो दफ़ा हो जा।
भोसले कालीन इतिहास से भी जुड़ी है यह प्रथा
बरसात के बाद होने वाली गन्दगी को साफ़ करने और स्वच्छता का सन्देश देता हुआ मारबत का यह शगूफा दुनिया में केवल विदर्भ महाराष्ट्र में ही होता है और इसमें कहीं कोई धार्मिक दखल नहीं है। यह पूरी तरह से सामाजिक पर्व है लेकिन इसके बीच भोसले कालीन इतिहास में है।
पर्व का प्रारंभ इतिहास की एक घटना से हुआ या उसके पहले संभवतः किसानों द्वारा बुआई आदि के बाद खेतों से खरपतवार साफ़ करने,घरों व खेतों का कचरा दूर ले जाकर जलाने और सब कुछ साफ सुथरा करने के उद्देश्य से शुरू किया गया पता नहीं लेकिन इसने आगे चलकर इस तरह की ‘मारबत’ का रूप ले लिया।
विदर्भ के विभिन्न स्थानों में निकाले जाने वाले मारबत के इन जुलूसों में नागपुर की मारबत का जुलूस तो इतना प्रसिद्ध है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। स्वास्थ्य और स्वच्छता को लेकर साफ सफाई की यह परम्परा किसी सरकारी स्वच्छता अभियान से सैकड़ों साल पहले से चली आ रही थी लेकिन भोंसले काल में अर्थात सन 1881 में इसमें एक अध्याय और जुड़ गया।
बका बाई पर गद्दारी का आरोप, सजा देते हैं लोग
हुआ यह कि भोंसले घराने की एक स्त्री बका बाई Baka Bai a woman from the Bhonsle family तत्कालीन अंग्रेज शासकों से मिल गई और उसने कुछ रहस्य उन्हें बता दिए। माना जाता है कि इसके फलस्वरूप कालांतर में भोसला घराने का पतन हो गया।
अब अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव और साम्राज्यवादी लिप्सा के कारण भले भोंसले शासन Bhonsle rule का पतन हुआ हो लेकिन इलज़ाम बेचारी बका बाई पर आ गया।
अब उसे दंड देने के लिए लोगों ने बका बाई की एक प्रतिमा बनाई और उसे शहर की सीमा से बाहर ले जाकर जला दिया।उसके बाद हर साल पोला त्यौहार के दूसरे दिन मारबत का विसर्जन करते समय उसमे बका बाई की प्रतिमा जुड़ गई और लोगों ने उसे ‘काली मारबत’ नाम दे दिया। उसी के साथ सन 1885 से ‘पीली मारबत’ निकालने की परम्परा भी शुरू हुई।
बस उसके बाद से काली और पीली मारबत की प्रतिमाएँ बनाकर उनका जुलूस निकालने और अंत में उन्हें विसर्जित करने की यह परम्परा जो नागपुर में प्रारंभ हुई वह अब तक चल रही है।
कालांतर में जुड़ गई बड़ग्या की प्रतिमा भी
कुछ साल बाद इसमें बड़ग्या की प्रतिमा भी जुड़ गई। आप सोच रहे होंगे यह ‘बड़ग्या’ क्या है? वैसे तो कहा जाता है कि ‘बड़ग्या’ बका बाई के पति का प्रतीक है।
लोगों ने सोचा कि भोंसले शासन के पतन का दोष आखिर एक स्त्री को ही क्यों दिया जाए, इस राजनीतिक षड्यंत्र में उसका पति भी तो बराबर का हिस्सेदार था।
इसलिए उसका पुतला बनाकर भी जुलूस निकलने की यह परंपरा प्रारंभ हुइ और उसे ‘बड़ग्या’ नाम दिया गया। आगे चलकर जब लोगों को इस मारबत पर्व में आनंद आने लगा तो उन्होंने नए नए ‘बड़गे’ निकालने शुरू किये जिसमे भ्रष्टाचार का बड़गा, घूसखोरी का बड़गा, बेईमानी का बड़गा, दुश्मनी का बड़गा जैसे बड़गे के पुतले मशहूर हो गए। और अब तो कोरोना वायरस का बड़गा भी इसमें शामिल हो गया है।
नागपुर में मौजूद हैं परंपरागत कलाकार
इस तरह मारबत का यह त्यौहार जो एक सामाजिक त्यौहार है चल निकला। बड़गा और काली पीली मारबत बनाने वाले ढेर सारे कलाकार आज नागपुर में उपस्थित हैं, जिनमे 1885 में पीली मारबत के पुतले का निर्माण करने वाले स्व गणपत राव शेंडे के वंशज भीमाजी,उनके पुत्र गजानन शेंडे और उनके परिवार के लोग शामिल हैं। वहीं सदाशिव वस्ताद तकितकर की कई पीढ़ियां जिनमे जयवंत मणिराम तकितकर और उनके घर के कलाकार आज भी सक्रिय हैं। अब तो पीली मारबत की बेटी तरुण पीली मारबत का पुतला भी बनाया जाने लगा है।
घेऊन जा गे मारबत…पहचान है इस जुलूस की
कभी आप सावन की समाप्ति या अगस्त के माह में नागपुर जाएँ तो मारबत का यह जुलूस देखना न भूलें। और साथ में जोर से चिल्लाएँ….”घूसखोरी,भ्रष्टाचार करने वालों को,वादा खिलाफ़ी करने वालों को ,झूठ बोलने वालों को,बेईमानी करने वालों को,वैमनस्यता,नफ़रत फ़ैलाने वालों को घेऊन जा गे मारबत…”
वैसे प्रजातंत्र में आप यह काम अन्य माध्यमों से भी कर सकते हैं। क्योंकि असली मारबत तो हमारे देश मे चुनाव के समय होता है अगली बार जब चुनाव आएगा तो याद रखिएगा किन किन बड़गो को आपको ठिकाने लगाना है।