राष्ट्रपति के हाथों भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के अवार्ड 30 सितंबर को
मुंबई। हिंदी सिनेमा की मशूहर अभिनेत्री आशा पारेख अपने अभिनय और फिल्मों के लिए इंडस्ट्री में जानी जाती हैं।
2 अक्टूबर, 1942 को जन्मी आशा ने बॉलीवुड की कई यादगार फिल्मों में काम किया अपनी खूबसूरती और अपने बेहतरीन अभिनय के जरिए लोगों के दिलों में जगह बनाने वाली आशा पारेख एक बार फिर सुर्खियों में हैं।
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने जानकारी दी कि इस साल का दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड अभिनेत्री आशा पारेख को दिया जाएगा।
इस एलान के बाद से ही आशा फिर एक बार सुर्खियों में आ गई है। 30 सितंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू विज्ञान भवन यह पुरस्कार प्रदान करेंगी।
बाल कलाकार के तौर पर
शुरू हुआ था करियर
आशा पारेख के परिवार में उनकी माता सुधा पारेख मुस्लिम और पन्नालाल पारेख हिंदू थे। अलग अलग धर्मों से होने के बावजूद पारेख परिवार साई बाबा का भक्त था। आशा पारेख ने बाल कलाकार के रूप में अपने अभिनय की शुरुआत सन 1952 में फ़िल्म ‘आसमान’ से की थी।
आशा तब शास्त्रीय नृत्य के स्टेज शो किया करतीं थी और ऐसे ही शो के उनको मशहूर निर्देशक विमल रॉय ने देखा। वो उनके नृत्य को देख कर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उसी समय आशा से पूछा कि क्या वह फिल्मों में काम करने के लिए तैयार है, आशा जी का जवाब हाँ था और इस तरह से उनका बॉलीवुड फिल्मों का सफ़र शुरू हुआ।
‘गूंज उठी शहनाई’ मिली
लेकिन दो दिन बाद बाहर
विमल रॉय के निर्देशन में 1954 में बनी फ़िल्म ‘बाप बेटी’ में आशा ने अभिनय किया, तब वह 10 वी कक्षा में पढ़ती थी। यह फ़िल्म बहुत ज्यादा नहीं चली। फिर 17 साल की उम्र में उन्हें ‘गूंज उठी शहनाई’ फिल्म मिली। जिसकी दो दिन की शूटिंग भी उन्होंने की लेकिन किन्हीं वजहों से निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें निकाल कर अमिता को ले लिया।
लेकिन आशा ने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश को जारी रखा। उन्हें 1959 में फ़िल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी द्वारा फ़िल्म ‘दिल दे के देखो’ का ऑफ़र मिला जिसका निर्देशन नासिर हुसैन कर रहे थे। यह फ़िल्म उस समय की हिट फ़िल्म रही और आशा फ़िल्म इंडस्ट्रीज में सफल अभिनेत्री बन गई फिर उनके सफलता का दौर निकाल पड़ा।
कई सुपरहिट फिल्में दर्ज
हैं आशा के खाते में
आशा पारेख ने कुल 90 फिल्मों में काम किया है उनकी सुपरहिट फिल्मों में ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘घराना’, ‘छाया’,‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘मेरी सूरत तेरी आँखे’, ‘भरोसा’, ‘बिन बादल बरसात’,‘बहारों के सपने’, ‘उपकार’, ‘प्यार का मौसम’, ‘साजन’, ‘महल’, ‘चिराग’, ‘आया सावन झूम के’,‘कारवां’, ‘कटी पतंग’ ‘नादान’, ‘जवान मोहब्बत’, ‘ज्वाला’, ‘मेरा गाव मेरा देश’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ और ‘जख्मी’ सहित कई अन्य फिल्में शामिल हैं।
60 और 70 के दशक में आशा पारेख इस कदर मशहूर थीं कि वह उस समय सबसे अधिक फीस चार्ज करने वाली अभिनेत्री थीं। लंबे समय तक फिल्मों में अपने योगदान के लिए एक्ट्रेस को 1992 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
असल जिंदगी में अधूरी रही
आशा-नासिर की प्रेम कहानी
पर्दे पर अपनी खूबसूरती से लाखों दिलों को चुराने वालीं आशा पारेख असल जिंदगी में बिल्कुल अकेली हैं। अपनी अधूरी प्रेम कहानी के चलते वह पूरी जिंदगी अकेली ही रहीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक आशा पारेख उस जमाने के जाने-माने निर्देशक नासिर हुसैन के साथ रिश्ते में थीं।
लेकिन नासिर पहले से ही शादी-शुदा थे, जिसके चलते उनका यह रिश्ता किसी मुकाम तक नहीं पहुंच सका। खबरों की मानें तो आशा नासिर हुसैन से इस हद तक प्यार करती थीं कि उन्होंने जीवन भर अकेले रहने का फैसला किया।
फिल्म मेकर नासिर हुसैन के साथ आशा ने ‘दिल देके देखो’, ‘तीसरी मंजिल’ और ‘कारवां’ सहित 7 फिल्मों में साथ काम किया। नासिर की बात करें तो आशा से प्यार में पड़ने के दौरान वह शादीशुदा थे और दो बच्चों के पिता थे।
उनका जिक्र आशा ने अपनी बायोग्राफी ‘द हिट गर्ल’ में भी किया था। यह बायोग्राफी खालिद मोहम्मद ने लिखी थी जो कि 2017 में पब्लिश की थी।
इस किताब की लॉन्चिंग पर आशा ने कहा था, मेरे जीवन में जो लोग मायने रखते हैं, अगर उनका जिक्र मैं अपनी आत्मकथा में ना करूं तो फिर इसे लिखने का कोई अर्थ ही नहीं है।
सेंसर बोर्ड की चेयरपर्सन भी रहीं
आशा पारेख वर्तमान में ‘कारा भवन’ नाम से एक डांस एकेडमी चलाती है। वहीं वह बहुत सारे सामाजिक कार्यों से भी जुडी हुई है।
इस वजह से उनके नाम पर मुम्बई में एक अस्पताल का नाम दिया गया है द आशा पारेख हॉस्पिटल। आशा पारेख भारतीय सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्ष भी रह चुकी है।
इसके साथ ही उन्होंने 1994 से लेकर 2000 तक भारतीय फ़िल्म सेंसर बोर्ड की महिला अध्यक्ष के पद भार को भी संभाला है।
सम्मान हासिल करने वाली 52 वीं
हस्ती और महिलाओं में 7 वीं
प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के अवार्ड पाने वाली फिल्म जगत की हस्तियों में आशा पारेख 52 वीं हैं। वहीं महिला के तौर पर देखा जाए तो आशा ऐसी 7 वीं महिला हैं।
उनसे पहले सिर्फ छह महिलाओं को यह अवार्ड मिला है। आशा पारेख से पहले यह सम्मान आशा भोसले को वर्ष 2000 में मिला था।
दादा साहब फाल्के अवार्ड आखिरी बार यह सम्मान वर्ष 2019 में साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत को मिला था। 79 साल की आशा पारेख को ये सम्मान 68वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड में दिया जाएगा।
महिलाओं में यह अवॉर्ड आशा भोंसले, लता मंगेशकर, दुर्गा खोटे, कानन देवी, रूबी मेयर्स और देविका रानी को मिल चुका है।
दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत वर्ष 1969 में दादा साहेब फाल्के के जन्म शताब्दी वर्ष में की गई। देविका रानी यह अवॉर्ड प्राप्त करने वाली पहली अभिनेत्री थीं।
फिल्म उद्योग के ‘पितामह’ कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के का पूरा नाम धुंडिराज गोविन्द फाल्के था।
दोस्ती बरकरार रही
आशा पारेख ने खुद का घर संसार नहीं बसाया लेकिन उन्होंने फिल्मी दुनिया में रिश्ते बेहद गर्मजोशी से निभाए हैं। उनके करियर के शुरूआती दौर की अभिनेत्री शम्मी, वहीदा रहमान और हेलन से दोस्ती अटूट रही।
किसी भी सार्वजनिक समारोहों में चारों एक साथ नजर आते रहे। हालांकि शम्मी अब हमारे बीच नहीं रहीं। ऐसे में सोशल मीडिया पर कई बार आशा, वहीदा और हेलन की टूर की फोटो नजर आ जाती हैं। इन तीनों की दोस्ती बरकरार है।