बदलते परिवेश में अब ऐसे चरित्र रचे नहीं जा रहे हिंदी फिल्मों में
मुंबई। उनके कंधे पर लटका हुआ गमछा ही उनकी पहचान थी। उनका नाम या तो रामू काका या शंभू दादा या धरम दास या मकरध्वज (पहली झलक-1955) हो सकता है, जिससे उनकी हालत पर शायद ही कोई फर्क पड़ा हो।
उनका पहनावा दर्शकों को यह समझाने के लिए पर्याप्त था कि वह एक संपन्न परिवार के घरेलू सहायक हैं। जो घर का सारा काम तो करते ही हैं और जरूरत पड़ने पर नायक-नायिका की ‘मंझधार में फंसी नैया’ को पार लगाने आगे भी आते हैं।
आज हम इन्हें एक नाम ‘रामू काका’ से याद करेंगे। 90 के दशक तक की फिल्मों में हमारे ‘रामू काका’ एक जरूरी हिस्सा हुआ करते थे। शायद ही कोई ऐसी फिल्म होती होगी, जिसमें कंधे पर गमछा लटकाए एक विनम्र सेवक नजर ना आता हो। एक आज्ञाकारी स्वयंसेवक, काम के दबाव के बावजूद अपना आपा नहीं खोना, परिवार के सभी सदस्यों के लिए हमेशा मौजूद रहने वाले और सच्चा स्नेह ‘रामू काका’ के गुण में शामिल थे।
कोई हैरानी की बात नहीं कि घर के पुरुष और साथ ही महिला सदस्यों द्वारा उन्हें परिवार के सदस्य के रूप में माना जाता था। लगातार चौबीसों घंटे काम करने के अलावा, वह अपना समय बर्बाद करने में विश्वास नहीं करते थे और अपने ख़ाली समय के दौरान भी, अक्सर दर्शकों ने उन्हें अपने कंधे पर लटके हुए कपड़े से कमरे के फर्नीचर और कलाकृतियों की सफाई करते हुए पाया।
लेकिन अब यह सब बीते दिनों की बात हो गई है। अब तेजी से बदलते समय के साथ, फिल्मों का पैटर्न भी बदल गया है और वर्तमान फिल्म निर्माताओं को अपनी फिल्मों में घरेलू सहायिकाओं को पेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अफसोस की बात है कि रामू काका एक दिलचस्प किरदार है, जो हमारे जीवन काल में भुला दिया गया है। बीते दौर की ऐसी बहुत सी फिल्में है जिनमें हमारे ‘रामू काका’ की यादगार मौजूदगी रही है।
‘रामू काका’ के तौर पर कुछ चर्चित किरदारों की बात करें तो सबसे पहले देवकिशन का नाम सामने आता है। अक्सर बड़े परदे पर देखा गया एक जाना-पहचाना चेहरा थे देवकिशन। ह्रषिकेश मुखर्जी की ‘आनंद’ फिल्म मेें उन्हें देखा गया था। देवकिशन ने वही रात वही आवाज (1973) का निर्देशन भी किया था और ‘बंद दरवाजा’ (1990) फिल्म लिखी थी।
‘कालिया’ फिल्म में जेलर प्राण के सेवक के तौर पर उनकी यादगार भूमिका थी। रामलाल या श्रीनाथ नाम से पहचान कायम रखने वाले चरित्र अभिनेता को अमिताभ बच्चन के सेवक के रूप में फिल्म ‘मिली’ में देखा गया था। उस दौर में उन्होंने बड़े बजट की कई प्रमुख फिल्मों में काम किया। बिमल मित्र की ‘देवदास’ में चरित्र अभिनेता शैलेन बोस को कौन भूल सकता है जो घर के बाहर मरणासन्न पड़े देव (दिलीप कुमार) की खबर पारो (सुचित्रा सेन) को देता है।
सैलन बोस ने उस दौर में ‘हाफ टिकट’, ‘सुजाता’, ‘जालसाज’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘जागृति’ और ‘दो बीघा जमीन’ सहित कई प्रमुख फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं अदा की। नजीर कश्मीरी भी फिल्मों के जाने-माने चरित्र अभिनेता थे। उन्होंने ‘नया दौर’, ‘चौदहवीं का चांद’ और ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ सहित कई फिल्मों में घरेलू नौकर से लेकर जेलर और पुलिस अफसर तक की भूमिकाएं की।
हास्य अभिनेता अनंत बलवंत धुमाल भी एक जाना पहचाना चेहरा थे। मराठी और हिंदी फिल्मों में उन्होंने यादगार चरित्र भूमिकाएं की। उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में ‘हावड़ा ब्रिज’, ‘बम्बई का बाबू’, ‘कश्मीर की कली’, ‘लव इन टोकियो’, ‘दो बदन’ और ‘प्यार का मंदिर’ शामिल है।