आज पुण्यतिथि-फिल्मी संगीत में शास्त्रीयता
और लोक का पुट दिया वसंत देसाई ने
मनोहर महाजन
“हमको मन की शक्ति देना..”और “..ऐ मालिक तेरे बंदे हम..” सिर्फ़ ये दो बेहद शक्तिशाली प्रार्थनाएं ही जिसे संगीत की दुनिया में अमरत्व का दर्जा देने के लिये काफ़ी हैं उन संगीतकार वसंत देसाई का जन्म 9 जून,1912 को गोवा के कुदाल क्षेत्र में हुआ था जहां संगीत का क़ाफी प्रबल प्रभाव था।
यहां के धार्मिक,पौराणिक नाटकों में संगीत होता था और इस संगीत के प्रभाव से वसंत का बचपन भी अछूता नहीं रहा। कहा जा सकता है कि उनकी असल संगीत-यात्रा यहीं से शुरु हुई।
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संगीत के प्रति अपने जूनून के साथ वे महाराष्ट्र से कोल्हापुर आ गए शुरुआती दौर में वसंत ने वी.शांताराम के साथ काम शुरु किया,संगीतकार के रूप में नहीं बल्कि ऑफिस-ब्वॉय के रूप में। यहीं से उनकी किस्मत पलटी और उन्हें फिल्मों में अभिनय का मौक़ा मिला। साल 1930 में ‘प्रभात फ़िल्म्स’ की एक मूक फ़िल्म “ख़ूनी ख़ंजर” में उन्हें एक्टिंग करने का अवसर मिला।
संगीतकार के रूप में उनकी पहली फ़िल्म-“अयोध्या का राजा” थी जो मराठी में थी एवं साल 1932 में रिलीज़ हुई थी।इसमें उन्होंने ‘जय जय राजाधिराज’ गाने को आवाज़ भी दी थी। वसंत देसाई को असल पहचान साल 1934 में रिलीज़ फ़िल्म “अमृत मंथन” के गाने ‘बरसन लगी’…से मिली। बसंत ने संगीत करियर में ‘पार्श्वगायन’ और ‘संगीतकार’ में से ‘संगीतकार’ बनना चुना।
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संगीतकार के रुप में ढलने और संवरने के लिए उन्होंने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान जैसे ख्याति प्राप्त हस्तियों से संगीत की बारिकियां सीखी।वसंत ने साल 1942 में आई फ़िल्म “शोभा” के ज़रिए बतौर संगीतकार अपने करियर की शुरूआत की।
इसके बाद उन्होंने वी.शांताराम के साथ काम करना शुरु कर दिया और एक के बाद एक कई हिट रचनाएं हिंदी-सिनेमा और श्रोताओं को दीं। इनमें ‘दो आंखें बारह हाथ’ की प्रार्थना “ऐ मालिक तेरे बंदे हम” देश ही नहीं बल्कि कई मुल्क़ों के स्कूलों की प्रार्थना बनी जो आज भी क़ायम है। वसंत देसाई की ही ‘गुड्डी’ फिल्म की प्रार्थना “हमको मन की शक्ति देना” भी कई दशकों से लोगों के दिलों का आलम्बन बनी हुई है।
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उन्होंने तक़रीबन 4 दशक तक संगीत की दुनिया में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। ‘उमड़-घुमड़ कर आई रे घटा’ (दो आँखें बारह हाथ), ‘आई पारी रंग भरी किसने पुकारा’ (दो फूल), ‘तेरा ख़त ले के सनम,पाँव कहीं रखते हैं हम’ (अर्द्धांगिनी), ‘अंखियां भूल गई हैं सोना, दिल पे हुआ है जादू टोना’ (गूँज उठी शहनाईं), ‘डर लागे गरजे बदरिया’ (राम राज्य), ‘जीवन से लम्बे हैं बन्धु ये जीवन के रस्ते’ (आशीर्वाद) एवं ‘बोले रे पपीहरा, पपीहरा’ (गुड्डी) जैसे न जाने कितने अनमोल गीतों का तोहफ़ा हमें दिया जो हमेशा हमारी संगीत की भूख को शान्त करता रहेगा।
22 दिसंबर,1975 को वे अपने घर की लिफ्ट में एक हादसे के शिकार हो गए। अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई पर संगीतप्रेमियों के दिलों में वो हमेशा ज़िंदा रहेंगे।