रायपुर। शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कारोबारी अनवर ढेबर को 6 मई को PMLA 2002 के प्रावधान के तहत गिरफ्तार किया है। ईडी ने इससे पहले मार्च के महीने में कई स्थानों पर छापेमारी की थी और इसी प्रक्रिया में शामिल विभिन्न व्यक्तियों के बयान दर्ज किए हैं। इस बीच, इस गिरफ्तारी के बाद आज ईडी प्रेस नोट जारी की है। इसके मुताबिक ईडी ने इससे पहले मार्च के महीने में कई स्थानों पर तलाशी ली थी और कथित घोटाले में शामिल कई लोगों के बयान दर्ज किए थे। एजेंसी का दावा है कि उसने 2019 – 2022 के बीच 2000 करोड़ रुपए के बड़े भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के सबूत एकत्र किए हैं।
ईडी ने बयान जारी कर कहा कि पीएमएलए जांच से पता चला है कि अनवर ढेबर के नेतृत्व में एक संगठित आपराधिक सिंडिकेट छत्तीसगढ़ राज्य में काम कर रहा था। अनवर ढेबर को एक शख्स के अलावा राज्य के शीर्ष राजनेताओं और वरिष्ठ नौकरशाहों का वरदहस्त प्राप्त था। प्रेस नोट के अनुसार अनवर ने एक बड़ी साजिश रची और घोटाले को अंजाम देने के लिए लोगों और संस्थाओं का एक व्यापक नेटवर्क तैयार किया। इसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ में बेची जाने वाली शराब की प्रत्येक बोतल से अवैध रूप से पैसा एकत्र करना था। ईडी ने आरोप लगाया था कि उनकी जांच से पता चला है कि अनवर ढेबर के नेतृत्व वाला आपराधिक सिंडिकेट इन सभी उद्देश्यों के उलट काम कर रहा था। ईडी के बयान के मुताबिक राजनीतिक अधिकारियों के समर्थन के साथ, अनवर ढेबर सीएसएमसीएल के एक कमिश्नर और एमडी तक पहुंच बनाने में सफल रहा।
ईडी के अनुसार अनवर ने विकास अग्रवाल उर्फ सुब्बू और अरविंद सिंह जैसे करीबी सहयोगियों को सिस्टम में पहुंच बनाने के लिए काम पर रखा। अनवर ने निजी डिस्टिलर्स, FL-10A लाइसेंस धारकों, आबकारी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, जिला स्तर के आबकारी अधिकारियों, मैन-पावर सप्लायर्स, ग्लास बॉटल मेकर, होलोग्राम मेकर, कैश-कलेक्शन वेंडर आदि से लेकर शराब के कारोबार की पूरी चेन को नियंत्रित कर लिया और अधिकतम रिश्वत/कमीशन वसूलने के लिए इसका लाभ उठाया. कई अन्य हितधारकों को भी इस प्रक्रिया में अवैध रूप से लाभ हुआ। ईडी की जांच में पता चला है कि 2019-2020-2021-2022 में, इस तरह की अवैध बिक्री राज्य में शराब की कुल बिक्री का लगभग 30-40% रही थी. इससे 1200-1500 करोड़ रुपए का अवैध मुनाफा हुआ।
ये हैं घोटाले के तीन पैटर्न
पहला पैटर्न
ईडी ने कथित तौर पर पाया कि तीन अलग-अलग पैटर्न में सिंडिकेट राज्य में चल रहा था, जिसमें पहला पैटर्न था कि सीएसएमसीएल द्वारा जो खरीददारी की गई, उसके आपूर्तिकर्ताओं से सिंडिकेट द्वारा 75-150 रुपये प्रति केस (शराब के प्रकार के आधार पर) का कमीशन लिया गया था।
दूसरा पैटर्न
अनवर ढेबर अन्य लोगों के साथ षडय़ंत्र रचकर बेहिसाब देशी शराब बनवाकर सरकारी दुकानों के माध्यम से बेचने लगा। इस तरह वे राजकोष में 1 रुपया भी जमा किए बिना बिक्री की पूरी आय अपने पास रख सकते थे। डुप्लीकेट होलोग्राम दिए गए। नकली बोतलें नकद में खरीदी गईं, राज्य के गोदामों से गुजरते हुए शराब को डिस्टिलर से सीधे दुकानों तक पहुंचाया जाता था। अवैध शराब बेचने के लिए मैन पावर को प्रशिक्षित किया गया था, पूरी बिक्री नकद में की गई। पूरी बिक्री का कोई लेखा- जोखा नहीं था, इसमें डिस्टिलर, ट्रांसपोर्टर, होलोग्राम निर्माता, बोतल निर्माता, आबकारी अधिकारी, आबकारी विभाग के उच्च अधिकारी, अनवर ढेबर, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और राजनेता शामिल रहे।
तीसरा पैटर्न
यह एक वार्षिक कमीशन था जिसका भुगतान मुख्य डिस्टिलर्स द्वारा डिस्टिलरी लाइसेंस प्राप्त करने और सीएसएमसीएल की बाजार खरीद में निश्चित हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए किया जाता था। डिस्टिलर्स उन्हें आवंटित बाजार हिस्सेदारी के प्रतिशत के अनुसार रिश्वत देते थे। सीएसएमसीएल द्वारा इस अनुपात में सख्ती से खरीद की जाती थी।