Rikshin Mata Mandir Kareli : धमतरी: जिला के छोटे करेली गांव, आप मन के अंतस मा ये सवाल उपजत होही कि आखिर इंहा का खास हे, धीर धरव… आप ला सब बताहूं ये लेख के माधियम ले…
Rikshin Mata Mandir Kareli : भारत भुइंया के मंझ मा बसे छत्तीसगढ़ ला देवी दाई के बड़ आसीस मिले हे। चारों खूंट मा अलग-अलग रूप मा बिराज के छत्तीसगढ़ ला अपन आसीस ले नवा अंजोर देवत हे। धमतरी जिला के छोटी करेली गांव मा महानदी के तीर मा बइठे रिक्छिन दाई हा घलव अपन आसीस सब भगत मन ला देवत हे। रिक्छिन दाई ला मां दुर्गा के रूप माने जाथे। गांव के लोगन मन अपन गांव के कुल देवी के रूप मा उंकर पूजा करथे। सियान मन यहू कहिथे कि रिक्छिन माता हा गांव के दाउ-दीवान मन के देवी आय, फेर गांव वाला मन येला अपन गांव के देवी मानथे।
मंदिर हे.. फेर मूरति नइ
Rikshin Mata Mandir Kareli : अलग-अलग जगा मा आय-जाय मा देखें बर मिलथे कि मंदिर बने हे ता ओमा देवी-देवता मन के मूरति पधारे जाथे या फेर कोनो आने परकार के चिन्हा राख के ओला साकार माने जाथे। करेली गांव के रिक्छिन दाई के संग अइसन किस्सा नइहे। महानदी के तीर मा एक बाड़ा कस परसार मा रिक्छिन देवी के मंदिर हावय, फेर अंदर मा कोनो मूरति नइहे। रिक्छिन देवी के चिन्हारी अलगेच्च ढंग ले होथे। रिक्छिन देवी के पहिचान लाल पालो माने डांग अउ घोड़ा आय। लोगन मन हा इखरे पूजा करथे। एक बछर मा दू बेर दसहरा अउ होरी मा ये मंदिर हा खुलथे। ये दूनों दिन दुरिहा-दुरिहा ले भगत मन मा रिक्छिन के दरस करे बर आथे। कहे जाथे कि मां रिक्छिन सबो झन के मनोकामना ला पूरा करथे।
पालो बनाय बर करना परथे नियम-धियम
Rikshin Mata Mandir Kareli :रिक्छिन माता के पहिचान पालो बनाय बर बड़ नियम-धियम के पालन करना परथे। येकर पालो बनाय के जिम्मेदारी गांव के एक झन दर्जी ला मिले हे। गांव के सियान मन बताथे कि ये लाल पालो ला बनाय के बेरा ये बात के धियान रखना परथे कि वोहा भुइंया मा नइ छुआना चाही। येकर ले बांचे बर पालो सिरजइया हा विसेस बेवस्था करथे। यहू बात घलो हे कि हर साल ये पालो ला नवा सिरजाय जाथे।
मांग भरके, मुड़ी ढ़ाक के नइ जाना हे मंदिर भीतर
Rikshin Mata Mandir Kareli :गंगरेल तीर के अंगारमोती मंदिर कस इंहचो माइलोगिन मन के मंदिर भीतर मांग भरके, मुड़ी ढांक के जाना मना हे। रिक्छिन दाई ला अंगारमोती माता कस कुंवारी माने गेहे। तिही पाय के इहां साज-सिंगार के साथ माइलोगिन मन मंदिर मा नइ जा सकय। मानता हावय कि अइसे करे ले देवी दाई नाराज हो जाथे अउ येकर परभाव देखा देथे। कोनो बड़का समसिया नियम टोरइया मनखे करा आ जाथे। हालांकि बाबू जात मन के जाय-आय बर कोनो परकार के प्रतिबंध नइहे।
माता खुद आथे मंदिर ले बाहिर
Rikshin Mata Mandir Kareli : दसराहा अउ होरी बछर भर मा दू दिन अइसे होथे, जब रिक्छिन दाई हा खुद भगत मन ला दरसन दे बर अपन ठांव ले बाहिर आथे। वइसे तो हफ्ता मा दू दिन मां रिक्छिन के मंदिर हा खुलथे, फेर दसराहा अउ होरी के दिन बनेच्च सुभ माने जाथे। दसराहा अउ होरी के दिन देव बाजा के संग दाई ला परघाय जाथे। येकर बाद आगु-आगु देवी सवारी यानी घोड़ा अउ ओकर बाद अस्त्र-शस्त्र ला धरके सब भगत मन रेंगथे। खचाखच भीड़ के बीच देवी दाई हा गांव के सीतला माता के मंदिर तक आथे। कहे जाथे कि मां सीतला अउ रिक्छिन दाई हा बहिनी आय। दूनों झन हा इही दिन एक दूसर ले भेंट-मुलाकात करथे अउ सुख-दुख ला बांटथे।
दसराहा मा दुरिहा-दुरिहा ले आथे भगत मन, बलि के परंपरा घलो चलथे
Rikshin Mata Mandir Kareli : कहे जाथे कि माता रिक्छिन ला अपन अंगना ले कोनो भगत खाली नइ भेजे। सबो के झोली भर देथे। तिही पाय के माता के भगत मन दसराहा के दिन आथे अउ मा रिक्छिन के दरसन करके मन्नत मांगथे। अवइया बछर तक मांग पूरा हो जाथे। जब भगत मन के आस हा पूरा हो जाथे ता अपन सरधा के अनुसार माता ला भेंट करथे। बोकरा के बलि देके मां रिक्छिन ला काम पूरा करे बर धन्यवाद देथे।
दसराहा के एक दिन बाद माता जाथे मगरलोड
Rikshin Mata Mandir Kareli : माता रिक्छिन हा केवल करेली गांव मा नइ, बल्कि आसपास के गांव मन मा घलो बड़ प्रसिद्ध हावय। दसराहा के एक दिन बाद माने एकादशी के दिन दाई रिक्छिन हा मगरलोड मा जाथे। मां रिक्छिन तो दसराहा के दिन अपन गांव मा रहिथे। अपन गांव वाला मन संग दसराहा मनाथे। दाई रिक्छिन के अगोरा मा मगरलोड के रहवइया मन एक दिन बाद दसराहा मनाथे। इहां के रहवईया परमेश्वर साहू बताथे कि मां रिक्छिन मन सात बहिनी हे। जेमे से एक झन बसकरहिन दाई मगरलोड म हवय। ये दिन माता रिक्छिन अउ ओकर बहिनी बसकरहिन के मुलाकात होथे।
रेणुका साहू
छात्र, एमए छत्तीसगढी, KTUJM, Raipur