रायपुर: Padma Awards 2024 गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया गया। इनमें छत्तीसगढ़ से भी तीन लोगों को पद्मश्री अवॉर्ड मिलेगा। जशपुर के जागेश्वर यादव , रायगढ़ के राम लाल बरेठ और नारायणपुर के हेमचंद मांझी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जशपुर के जागेश्वर यादव को फोन पर बधाई भी दी है।
इस बार 132 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना है। इनमें 5 को पद्म विभूषण, 17 को पद्म भूषण और 110 को पद्मश्री से नवाजा जाएगा। इससे पहले 23 जनवरी को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान भी किया गया। पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने वालों में छत्तीसगढ़ से एक और विभूति का नाम शामिल हुआ। पंडित रामलाल बरेठ को कला के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान मिला है। रायगढ़ जिले के राम लाल बरेठ कथक के नर्तक हैं ,पूर्व में इन्हें अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बरेठ को बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।
हेमचंद मांझी करते हैं जड़ी बूटियों से कैंसर व शुगर का इलाज
Padma Awards 2024 : 70 वर्षीय वैद्यराज हेमचंद मांझी विशेष प्रजाति की जड़ी बूटियों से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का इलाज करते है। अलग-अलग राज्य व महानगरों के कैंसर पीड़ित मरीज मांझी की दवाई लेने आते हैं। वे बताते हैं कि दवाइयों के बारे में ज्यादातर जानकारी किताबों एवं स्वयं के अनुभव से ही सीखी है। कैंसर, ब्लड कैंसर, हड्डी कैंसर, शुगर, ब्लड प्रेशर, दमा, लकवा, बवासीर, टीबी सिकलीन, टांसिल, गठिया, मिरगी, एड्स जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज करते हैं। कैंसर प्रथम या द्वितीय चरण तक के स्तर तक पूर्णतः उपचार योग्य है, परंतु लंबे समय तक दवा का सेवन कराना पड़ता है। मांझी ने बताया कि बचपन में मुझे एक बार चोट लग गई थी। पिता ने मां से तेल की रुई का गर्म फाहा बनाकर चोट वाली जगह पर लगाने को कहा। एक हफ्ते में जब यह घाव ठीक हुआ तो मुझे बेहद आश्वर्य हुआ और मैं खुशी से उस विषय पर पिता से बात कर रहा था। इस तरह मेरी रुचि घरेलू और जड़ी बूटियों से इलाज में पैदा हुई।
1989 से बिरहोर जनजाति के लिए कार्य कर रहे जागेश्वर यादव
जशपुर जिले के भीतरघरा गांव निवासी जागेश्वर राम यादव बिरहोर जनजाति के लिए काम करते हैं। वे ‘बिरहोर के भाई’ के नाम से प्रसिद्ध है। हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बुलाने पर वे नंगे पाव ही चले गए थे। उन्हें 2015 में शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान मिल चुका है। जागेश्वर बताते हैं कि बिरहोर जनजाति के बच्चे लोगों से घुलते-मिलते नहीं थे, बल्कि उन्हें देखकर भाग जाते थे। ज़मीन पर मिले जूतों के निशान को देखकर भी छिप जाते थे। पढ़ाई-लिखाई के लिए स्कूल जाना तो दूर की बात है। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब इस जनजाति के बच्चे भी स्कूल जाते हैं। लोगों से मिलते हैं। दरअसल जागेश्वर साल 1989 से इस जनजाति के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने जशपुर में आश्रम की स्थापना की। उन्होंने शिविर लगाकर निरक्षरता उन्मूलन और स्वास्थ्य सेवा मानकों को ऊंचा उठाने के लिए काम किया है। उनके प्रयासों से कोरोना के दौरान टीकाकरण की सुविधा, झिझक को दूर करने से शिशु मृत्यु दर को कम करने में भी मदद मिली। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उनका जुनून सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक रहा।