न्यायमूर्ति गोस्वामी ने दिलाई शपथ,मुख्यमंत्री
बघेल सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे
रायपुर। विश्वभूषण हरिचंदन ने 23 फरवरी गुरुवार को राजभवन के दरबार हॉल में आयोजित गरिमामय समारोह में छत्तीसगढ़ के नौवें राज्यपाल के रूप में अपने पद की शपथ ली। उच्च न्यायालय, बिलासपुर के मुख्य न्यायधिपति न्यायमूर्ति अरूप कुमार गोस्वामी ने उन्हें शपथ दिलाई।
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राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन के छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण उपरांत प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुष्पगुच्छ भेंटकर अभिवादन किया और शुभकामनाएं दी। इस अवसर पर प्रथम महिला सुप्रभा हरिचंदन भी उपस्थित रहीं।
स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आते हैं नए राज्यपाल
हरिचंदन, उल्लेखनीय रहा है साहित्यिक योगदान
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छत्तीसगढ के नए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आते हैं। उनके पिता स्वर्गीयपरशुराम हरिचंदन एक साहित्यकार, नाटककार और स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता के बाद वे अविभाजित पुरी जिला परिषद के प्रारंभ से लेकर इसके उन्मूलन तक इसके उपाध्यक्ष रहे।
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विश्वभूषण हरिचंदन का जन्म 3 अगस्त 1934 को ओडिशा के खोरधा जिले के बानपुर में हुआ था। उन्होंने एस.सी.एस. कॉलेज, पुरी से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री और एम.एस. लॉ कॉलेज, कटक से एल.एल.बी. की डिग्री ली है। उनके परिवार में जीवनसाथी श्रीमती सुप्रभा हरिचंदन और पुत्रद्वय पृथ्वीराज हरिचंदन व प्रसनजीत हरिचंदन हैं।
वकील और एक राजनीतिक नेता के रूप में पाई प्रसिद्धि
ओडिशा में योद्धाओं और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आने वाले विश्वभूषण हरिचंदन, 1962 में ओडिशा के उच्च न्यायालय बार और वर्ष 1971 में भारतीय जनसंघ में शामिल हुए। उन्होंने काफी कम समय में अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर एक वकील और एक राजनीतिक नेता के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की।
उन्होंने ऐतिहासिक जे.पी. आंदोलन में लोकतंत्र के समर्थन की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जिसके लिए उन्हें आपातकाल के दौरान कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा था। हाई कोर्ट बार एसोसिएशन एक्शन कमेटी के अध्यक्ष के रूप में श्री हरिचंदन ने 1974 में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के अधिक्रमण के खिलाफ ओडिशा में वकीलों के आंदोलन का नेतृत्व किया।
5 बार ओडिशा में विधायक व 4 बार मंत्री
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ओडिशा की राजनीति के दिग्गज हरिचंदन पांच बार ओडिशा की राज्य विधानसभा के लिए वर्ष 1977, 1990, 1996, 2000 और 2004 में चुने गए। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में 95,000 मतों के अंतर से जीत हासिल की, जिसने ओडिशा में पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।
हरिचंदन ओडिशा सरकार में वर्ष 1977, 1990, 2000 मेेेें तथा 2004 से 2009 तक मंत्री बने रहे। अपने मंत्रिस्तरीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने राजस्व, कानून, ग्रामीण विकास, उद्योग, खाद्य और नागरिक आपूर्ति, श्रम और रोजगार, आवास, सांस्कृतिक मामले, संसाधन विकास विभाग,मत्स्य पालन और पशु-पालन जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला।
भारतीय जनता पार्टी ओडिशा के संस्थापक अध्यक्ष
माननीय राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन के शपथ ग्रहण समारोह के कुछ प्रमुख अंश… pic.twitter.com/zbWT3vDLyU
— Governor Chhattisgarh (@GovernorCG) February 23, 2023
हरिचंदन 1980 में ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष थे और 1988 तक तीन और कार्यकालों के लिए अध्यक्ष चुने गए। वे 13 वर्षों तक यानी 1996 से 2009 तक राज्य विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता भी रहे। मंत्री मंडल में रहते हुए उन्होंने प्रमुख भूमिकाएं निभाई, जिसके लिए वे सदैव जनता की नजरों में भी बने रहे। वह हमेशा लोगों के मुद्दों को उठाते हैं और उनके लिए लड़ते रहें हैं, जिस कारण से प्रशासकों और राजनेताओं द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता है, भले ही वे किसी भी पार्टी से जुडे़ रहे।
हरिचंदन ने हमेशा मानवाधिकार, लोकतंत्र, लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिक-अधिकारों, विशेष रूप से दलितों के अधिकारों और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी हैं। हरिचंदन एक प्रतिष्ठित स्तंभकार हैं जिन्होंने समकालीन राजनीतिक मुद्दों, ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों पर कई लेख लिखे हैं जो ओडिशा के सभी प्रमुख समाचार पत्रों और दिल्ली के कुछ अंग्रेजी साप्ताहिकों में प्रकाशित हुए हैं।
नाटक व एकांकी भी लिखी है हरिचंदन ने
राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन के छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण उपरांत छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अरूप कुमार गोस्वामी ने पुष्पगुच्छ भेंटकर अभिवादन किया और शुभकामनाएं दी। pic.twitter.com/GjDwhBq9XI
— Governor Chhattisgarh (@GovernorCG) February 23, 2023
हरिचंदन के प्रमुख साहित्यिक योगदान में अनेकों रचनाएं शामिल है जिसमें ‘‘महासंग्रामर महानायक‘‘, जो 1817 की पाइक क्रांति के सर्वोच्च सेनापति बख्शी जगबंधु पर केंद्रित एक नाटक है। उन्होंने छह एकांकी नाटक भी लिखे जो निम्नलिखित हैं -मरुभताश, राणा प्रताप, शेष झलक, जो मेवाड के महारानी पद्मिनी पर आधारित है।
अष्ट शिखा, जो तपांग दलबेरा के बलिदान, पर आधारित है। मानसी, (सामाजिक) और अभिशप्त कर्ण, (पौराणिक) नाटक है। उनकी 26 लघु कथाओं के संकलन का नाम ‘‘स्वच्छ सासानारा गहन कथा‘‘ है, तथा ‘‘ये मतिर डाक‘‘ उनके कुछ चुनिंदा प्रकाशित लेखों का संकलन है। ‘‘संग्राम सारी नहीं”, उनकी आत्मकथा है, जिसमें उनके लंबे सार्वजनिक जीवन के दौरान राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य क्षेत्रों में उनके संघर्षों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
जमाखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई ने उन्हें ओडिशा में बेहद लोकप्रिय बना दिया
छत्तीसगढ़ के नव मनोनीत राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन एवं राज्य की प्रथम महिला श्रीमती सुप्रभा हरिचंदन आज अपने परिजनों सहित रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर पहुंचे। उन्होंने मंदिर पहुंचकर महाप्रभु के दर्शन और विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की। pic.twitter.com/dCT3eAZWTl
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वर्ष 1977 में कैबिनेट मंत्री के रूप में हरिचंदन के कार्यकाल के दौरान, आवश्यक वस्तुएं, जिनकी आपातकाल के दौरान कमी पाई गयी थी। उन्होनें आवश्यक वस्तुओं को न केवल स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया बल्कि मूल्य-रेखा को लगातार बनाए रखा। कालाबाजारी करने वालों और जमाखोरों के खिलाफ उनकी कड़ी कार्रवाई जिसने उन्हें ओडिशा में बहुत लोकप्रिय बना दिया।
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ओडिशा में राजस्व मंत्री के रूप में हरिचंदन ने प्रशासन की सुविधा के लिए भूमि अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण, सरलीकरण और राजस्व कानूनों को संहिताबद्ध करने पर जोर दिया और 1956 के विनियम 2 में संशोधन करके और इसे और अधिक कठोर बनाकर अवैध रूप से और धोखाधड़ी से हस्तांतरित की गई आदिवासी भूमि की बहाली के लिए साहसिक कदम उठाए तथा राजस्व प्रशासन को और अधिक जनहितैषी बनाकर पुनर्गठित किया।
उनके गहन प्रयासों से बनी देश की सर्वश्रेष्ठ पुर्नवास एवं प्रतिस्थापन नीति
ओडिशा में उद्योग मंत्री के रूप में हरिचंदन ने सिंगल विंडो सिस्टम शुरू करने की पहल की और उद्योग सुविधा अधिनियम पारित करवाया। उनके गहन प्रयासों के कारण ही राज्य की ‘आरआर’ (पुर्नवास एवं प्रतिस्थापन) नीति, उस समय देश की सर्वश्रेष्ठ आरआर नीति बनी थी।
हरिचंदन ने कैबिनेट उप समिति के अध्यक्ष के रूप में इस नीति को अमलीजामा पहनाया, जिससे विस्थापितों के पुनर्वास के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया।राज्य सरकार के ऋणों की अदायगी के लिए सभी अधिशेष सरकारी भूमि की बिक्री के खिलाफ उन्होंने कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि जमीन की मालिक सरकार नहीं बल्कि राज्य होता है तथा सरकार के पास सिर्फ ट्रस्टी जैसी सीमित शक्तियां होती हैं। उन्होंने अधिशेष सरकारी भूमि की बिक्री का जोरदार विरोध किया जिस कारण राज्य मंत्रिमंडल को अपना निर्णय बदलना पड़ा।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ बख्शी जगबंधु के नेतृत्व में उड़िया लोगों द्वारा स्वतंत्रता के लिए ऐतिहासिक युद्ध 1817 के पाइक विद्रोह को राष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए वह 1978 वर्ष से निरंतर प्रयासरत रहे। परिणाम स्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर इसके द्विशताब्दी समारोह आयोजित करने के निर्देश दिये।