आईआईटी गांधीनगर में विकसित किया ढांचा,
ओडिशा में प्रयोग किया गया इस मॉडल पर
नयी दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा ढांचा (फ्रेमवर्क) विकसित किया है, जो समुद्र तटीय इलाकों में चक्रवात से विद्युत पारेषण प्रणाली (electric transmission system) को होने वाले नुकसान को कम कर सकता है।
शोधकर्ताओं के दल ने विद्युत पारेषण में इस्तेमाल टॉवर को होने वाले संभावित नुकसान का पता लगाने से जुड़ा एक मॉडल विकसित किया है।
इस मॉडल को तैयार करने के लिए ओडिशा में हाल ही में आए एक चक्रवात ‘फानी’ से हुए नुकसान और हवा की गति से संबंधित आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया।
आईआईटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकतम हवा की गति वाले क्षेत्रों (भारतीय मानक के अनुसार) में केवल उन खंभों का चयन सबसे कुशल रणनीति हो सकती है, जो एक बड़ी आबादी की सेवा करने वाले बिजलीघर से जुड़े हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक तट के नजदीक के खंभों को मजबूत करने से चक्रवात से क्षतिग्रस्त होने वाले टावर की संख्या को कुछ हद तक कम करने में मदद मिल सकती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि विद्युत पारेषण से जुड़े टावर की कार्यक्षमता में कमी काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि चक्रवात सबसे पहले किस स्थान पर आता है।
यदि चक्रवात सबसे पहले किसी बिजली घर के आसपास आता है, तो नुकसान अधिक होता है। अध्ययन के नतीजों से पता चला है कि क्षेत्र विशेष में मजबूत किए गए टावर की अधिक संख्या या टावर की मजबूती का स्तर बढ़ाने से बिजली पारेषण प्रणालियों की बेहतर कार्यक्षमता का मार्ग प्रशस्त होता है।
शोध दल के दावे के मुताबिक समुद्र तट के करीब के महत्वपूर्ण बिजली घर से जुड़ी पारेषण लाइन के टावर को मजबूत करने से प्रदर्शन में अधिकतम वृद्धि हुई यानी कम आबादी प्रभावित हुई। किसी बिजली घर के महत्वपूर्ण होने का आधार यह है कि वह कितनी आबादी की सेवा करता है।
आईआईटी, गांधीनगर के सहायक प्रोफेसर मनीष कुमार ने कहा, ‘‘यह ढांचा भारत के ओडिशा के अलावा तटीय राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र के विद्युत पारेषण टावर नेटवर्क को किफायत बनाने के साथ ही मजबूती प्रदान करने में उपयोगी हो सकता है।”
कुमार ने कहा कि टीम द्वारा विकसित ढांचा उन टावर को प्राथमिकता देने में मदद करता है जिन्हें मजबूत किया जाना चाहिए।
इससे विद्युत पारेषण कार्यक्षमता में कुल नुकसान को किफायती तरीके से कम किया जा सके। आईआईटी, गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर उदित भाटिया ने कहा कि आपदा के बाद के परिदृश्यों में निर्णय लेने वालों को हमेशा जनशक्ति, धन (बजट) और सामग्री की बाधा का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के बाद नुकसान को कम करने के लिए चयनित घटकों के समूह को मजबूत किया जाना चाहिए।”