चीता हमारे देश के लिए नया नहीं, कभी भरपूर आबादी थी इनकी
पंकज चतुर्वेदी
जयपुर में राजशाही के दिनों में एक मोहल्ला था जहां चीतों को कुत्तों की तरह पाला जाता था। चीता पालने का लायसेंस जारी किया जाता था और कोई मेहमान आने पर ये करतबबाज अपने चीतों को ले कर जाते और भागते जानवरों का शिकार करवाते। राजा लोग तो इस तरह खून और शिकार देखा बहुत खुश होते। आज भी यह ‘मौहल्ला चीतावालान’ जयपुर के रामगंज बाजार के नजदीक स्थित है।
यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं जब राज घराने अफीका और ईरान से चीते मंगवाते थे। इन चीतों की देखभाल के लिए वहीं से ही शिकारी परिवार यहां लाकर बसाए गए थे। ये चीतों को ट्रेनिंग देते थे और चीते रजवाड़ों के साथ शिकार पर जाया करते थे।
अंधाधुंध शिकार ने खत्म कर दी नस्ल
इस बात के प्रमाण हैं कि मुगल शासन में एक चीता पालक वाजिद खान अफगानिस्तान से परिवार सहित दिल्ली आया था। अकबर की अजमेर यात्रा के दौरान सांगानेर के जंगल में चीते से हिरण का शिकार कराया था। चीते तो राजस्थान में खूब थे लेकिन महज आनंद के लिए उनके शिकार ने उनकी नस्ल ही मिटा दी। ढूंढाड़ के घने जंगलों में चीतों की प्रजाति करीब सवा सौ साल पहले ही लुप्त हो गई थी।
उस दौर में सवाई माधो सिंह द्वितीय ने अगस्त, 1914 में हैदराबाद के तत्कालीन निजाम को पत्र लिख चीते भेजने का आग्रह किया था। जवाब में निजाम ने माधो सिंह को लिखा था कि हैदराबाद रियासत के जंगलों में भी चीतों की प्रजाति लुप्त हो चुकी है। सन 1921 में राज घराने के मेहमान रहे विल फ्रायड के परिवार ने ब्रिटेन से दो चीते समुद्री जहाज से बंबई और वहा से रेल से जयपुर भेजे थे जो सन 31 तक जिन्दा रहे।
महाराज जगत सिंह ने चीता पालक निजामुद्दीन को अलवर से बुलाकर जयपुर में बसाया था। चीता पालक चीते के मुंह पर छींका व गले में चमड़े की बेल्ट बांध बड़ी चौपड़ तक घुमाने लाते। चीते की आंखों में पट्टी बांध शिकार करवाने के लिए बैलगाड़ी से जंगल में ले जाया जाता था।
अंग्रेज़ मेहमानों को चीते से शिकार करने का चाव रहता था। ऐसे में अंग्रेज हाकिमों को खुश करने के लिए घने जंगल में शिकार कैंप लगाकर उनके सामने चीते को शिकार के लिए छोड़ा जाता। वह चीता शिकार को मुंह में दबा कर वापस जाता तब मेहमान ख़ुशी से झूम उठते। मोहल्ला चीतावालान के पूर्वज निजामुद्दीन का मकान निजाम महल कहलाता है। वर्ष 1928 में अजीमुद्दीन के पास चीता पालने का लाइसेंस था। बड़े बड़े राजे रजवाड़ों की अभिरुचियाँ रही है सात समंदर पार से चीते मंगवाना, और फिर उनसे शिकार करवा कर आनंदित होना – आम आदमी कोई इससे कम ही वास्ता रहा है।
हमेशा चीतों की जान ले लेता है शेर
भारत में नामीबिया के चीतों को बसाए जाने से कुछ लोग उत्साह में है। जाहिर है कि जानवरों के बारे में हमारी समझ बहुत ही भोथरी है। और हम उस समझ को बदलना भी नहीं चाहते। न ही इस बारे में कुछ पढ़ना-समझना चाहते हैं। यही कारण है कि कुछ पत्रकार इस तरह की खबरें चला रहे हैं कि भारत में ‘शेर अब चीता लेकर आया’ है। लेकिन, उन्हें शायद पता नहीं कि जंगल में शेर जब भी मौका मिले चीता को मार डालता है।
मांसाहारी जीव एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं। जब भी मौका मिलेगा एक बाघ किसी तेंदुए को मार देगा। जब भी मौका मिलेगा एक शेर चीते को मार डालेगा। जब भी मौका लगेगा बाघ और शेर में एक दूसरे को मारने की लड़ाई छिड़ जाएगी। वे एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं। यहां तक कि स्पाटेड हायना भी शेरों के बच्चों को मारने की फिराक में लगे होते हैं। शेर भी जहां मौका लगे।
अरब में पालतू है चीता
सोशल मीडिया पर चीता को लेकर टिप्पणियों की भरमार है। एक यूजर ने लिखा-रिपोर्ट के अनुसार अरब देशों में 1000 चीता प्राइवेट लोगों के यहां पालतू हैं। यहां 4 आ गए तो मीडिया ऐसे पगलाया हुआ है जैसे चीता न सही उसपे बैठ के साक्षात मां दुर्गा ही आ गई हों। जिस देश की भुखमरी में 116 में से 101 रैंक हो वहां की मीडिया चीता लाने पे इतनी खुश क्यों है ?