फिल्मों में संवाद लेखन को नया आयाम देने वाले कादर
खान ने असल जिंदगी में भोगा था गरीबी और भूखमरी को
आज जयंती
मुंबई। बॉलीवुड के दिवंगत अभिनेता कादर खान का बचपन बेहद की मुश्किलों में बीता। उनके माता-पिता काबुल, अफगानिस्तान के रहने वाले थे। लेकिन जब कादर खान का जन्म हुआ तब उनके माता-पिता उन्हें लेकर भारत आ गए। कादर खान और उनका परिवार मुंबई के कमाठीपुरा में आकर रुका जहां उन्होंने मुंबई की सबसे गंदी बस्ती में किराए पर उन्हें दो छोटे कमरे मिले।
कादर खान ने भारत आने की अपनी दिलचस्प कहानी बताई थी। उनसे पहले उनके जितने भी भाई बहन हुए काबुल में, सब की मौत हो जाती थी। कादर खान की मां को लगता था कि काबुल की हवा उनके बच्चों के लिए सही नहीं है, इसलिए बच्चे मर जा रहे हैं।
22 अक्टूबर 1937 को जब कादर खान पैदा हुए तो काबुल छोड़ कई महीनों पैदल चलकर उनका परिवार मुंबई आ गया। कादर खान मूलत: अफगानिस्तान में पख्तून के काकर जनजाति के थे।
इकबाल बेगम और अब्दुल रहमान की संतान कादर खान के तीन भाई शम्सुरहमान, फज़ल रहमान और हबीब उर रहमान थे। वहीं तीन बेटे अब्दुल कुद्दुस, शाहनवाज और सरफराज है। बड़े बेटे कुद्दुस की 1 अप्रैल 2021 को मौत हुई है। उनके बेटों में शाहनवाज़ ने 2 फिल्मों मिलेंगे-मिलेंगे और वादा में निर्देशक सतीश कौशिक को असिस्ट किया हैं। इसके अलावा उन्होंने राज कँवर की फिल्म हमको तुमसे प्यार हैं में राज कंवर को असिस्ट किया था।
अपराध, गरीबी और अपराध का बोलबाला था कमाठीपुरा में
कादर खान का परिवार जहां रहता था, वहां कमाठीपुरा में वेश्यावृत्ति और दूसरे तमाम अपराध का बोलबाला था। थर्ड फ्लोर पर परिवार को दो छोटे कमरे मिल गए। कादर खान का परिवार इतना गरीब था कि उन्हें भूखमरी और बदहाली देखनी पड़ी।
गरीबी से तंग आकर कादर खान की मां को उनके पिता ने छोड़ दिया। वैसे इलाके में अकेले रहना मुश्किल था इसलिए रिश्तेदारों के दबाव में कादर खान की मां ने दूसरी शादी कर ली। कादर खान के दूसरे पिता काम नहीं करते थे इसलिए घर की हालत और खराब हो गई।
यूनिवर्सिटी में पढ़ाया और ट्यूशन भी लेते थे
कादर खान 8 साल के थे और शांति की तलाश में हर रोज कब्रिस्तान में जाकर घंटों बैठते थे। उन्हीं दिनों अभिनेता अशरफ खान अपने नाटक के लिए एक छोटे बच्चे को ढूंढ रहे थे जो पढ़ा लिखा भी हो। कादर खान के बारे में जब उन्हें पता चला कि पढ़ने-लिखने वाला संजीदा लड़का है तो वो उनके पीछे कब्रिस्तान तक गए और उनसे पूछा कि क्या वो एक्टिंग करेंगे। कादर खान ने हां कर दिया और वहीं से उनके अभिनय करियर की शुरुआत हो गई।
कादर खान ने मुम्बई की म्यूनिसिपल स्कूल से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ली, कादर खान पढ़ाई में मेधावी छात्र थे। इसी कारण उन्होंने आगे चलकर इस्माइल युसूफ कॉलेज (जो कि मुम्बई युनिवर्सिटी से एफिलिएटेड थी) से अपनी इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन पूरी की।
उसके बाद कादर खान ने 1970 से लेकर 1975 तक मुम्बई यूनिवर्सिटी में पढ़ाया भी था। उन्होंने एमएच साबू सिद्दीक कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, बईकुला के सिविल इंजिनियर विभाग में बतौर प्रोफेसर के तौर पर पढाया था। वहीं वह बच्चों को इंजीनियरिंग की ट्यूशन भी दिया करते थे।
नाटकों के जरिेए फिल्मों में पहुंचे, नरेंद्र बेदी के बाद दिलीप कुमार ने दिया मौका
जब कादर ख़ान कॉलेज में थे तो वहां पर वो नाटक भी लिखा करते थे। फिर वो एक कॉलेज में लेक्चरर भी बने। भले ही वो नौकरी करने लगे लेकिन उन्होंने नाटक लिखना नहीं छोड़ा। फिर उन्होंने एक नाटक ‘लोकल ट्रेन’ लिखा। इसमें उन्होंने डायलॉग्स तो खुद लिखे ही, साथ ही इसका निर्देशन भी उन्होंने खुद ही किया।
कादर खान ने अपने नाटक “लोकल ट्रेन” के जरिए सम्मानित राष्ट्रीय स्तर के कॉम्पिटिशन में भाग लिया जिसे लेखक और फिल्ममेकर राजिन्द्र सिंह बेदी, नरेन्द्र बेदी और अभिनेता कामिनी कौशल ने जज किया। वो उनसे मंचन के बाद मिले और कादर को फिल्म के लिए लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
इस तरह से कादर खान ने 1500 रूपये में नरेंद्र बेदी की फिल्म ‘जवानी-दीवानी’ लिखी। ये फिल्म उनके लिए लेखन के क्षेत्र में मिल का पत्थर के जैसे साबित हुई। फिल्म ना केवल सफल रही बल्कि इसने कादर के लेखन में आगे के रास्ते भी खोल दिए, इसके बाद कादर ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा।
अभिनेता दिलीप कुमार को जब उनके नाटक के बारे में पता चला तो उन्होंने भी इसे देखने की इच्छा जताई, इसके लिए विशेष इंतजाम किये गये और कादर खान ने उनके लिए ही नाटक का मंचन किया।
जिसे देखकर दिलीप कुमार कादर खान से ना केवल प्रभावित हुए बल्कि उन्होंने खान को अपनी अगली 2 फिल्मों के लिए साइन भी कर लिया, जिनके नाम “सगीना महतो” और “बैराग” थे। उस समय फिल्म इंडस्ट्री में कादर खान जैसे नए व्यक्ति के लिए ये बहुत सम्मान और गर्व की बात थी।
700 से ज्यादा फिल्मों में योगदान
कादर खान ने 450 से ज्यादा फिल्मों में काम किया हैं और 250 से ज्यादा फिल्मों के लिए डायलॉग लिखे हैं। उन्हें 1974 में रोटी फिल्म के लिए डायलॉग लिखने पर पहली बार बड़ी राशि मिली थी।
वो सुप्रसिद्ध स्टार अमिताभ बच्चन के अलावा फिरोज खान और गोविंदा जैसे बड़े नामों साथ काम करने के लिए चर्चित रहे हैं। उनके कॉमेडी किरदारों को पहचान डेविड धवन की फिल्मों से ही मिली थी।
1981 में कादर खान ने नसीब फिल्म में काम किया था, जिसमें उनके साथ अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, ऋषि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा थे।
फिर 1982 में कादर खान ने वापिस अमिताभ के साथ ही एक और फिल्म सत्ते पे सत्ता भी की, जिसमें उनके साथ शक्ति कपूर और हेमा मालिनी भी थे। इसके बाद अगले साल 1983 में खान ने 4 फिल्मों में काम किया, जिनके नाम मव्वाली, जस्टिस चौधरी, जानी दोस्त और हिम्मतवाला थी, इनमे से 3 फ़िल्में जहाँ जितेन्द्र और श्रीदेवी की थी, वहीँ एक फिल्म जानी दोस्त में धर्मेन्द्र और परवीन बाबी थे।
1984 में बड़े पर्दे पर कादर खान अभिनीत फिल्मों की संख्या और बढ़ गयी। उन्होंने नया कदम, अंदर-बाहर, कैदी, अकल्मन्द, मकसद, तोहफा और इन्कलाब जैसी फिल्मों में काम किया। 1985 में कादर खान ने मास्टरजी, सरफरोश, बलिदान, मेरा जवाब और पत्थर दिल में काम किया।
1986 में कादर खान की इंसाफ की आवाज़, दोस्ती दुश्मनी, घर-संसार, धर्म अधिकारी, सुहागन, आग और शोला जैसी फिल्मे आई, जबकि 1987 में उनकी हिम्मत और मेहनत, हिफाजत, वतन के रखवाले, सिन्दूर, खुदगर्ज, औलाद, मजाल, प्यार करके देखो, जवाब हम देंगे और अपने-अपने आई।
फिर 1988 में इन्तेकाम, बीवी हो तो ऐसी, साज़िश, वक्त की आवाज़, घर-घर की कहानी, शेरनी, कब तक चुप रहूंगी, कसम, मुलजिम, दरिया दिल, प्यार मोहब्बत, सोने पे सुहागा थी। फिर 1989 में चालबाज़, कानून अपना-अपना, काला बाज़ार जैसी करनी वैसी भरनी, बिल्लू बादशाह, गैर कानूनी, वर्दी, हम भी इंसान हैं/ आदि फिल्मों में काम किया।
1990 में इन्होंने अपमान की आग, जवानी जिंदाबाद, मुक्कदर का बादशाह, घर हो तो ऐसा, किशन-कन्हैया, शानदार, बाप नम्बरी बेटा दस नम्बरी आदि फिल्मों में काम किया। 1991 में इनकी यारा दिलदार, साजन, इन्द्रजीत, क़र्ज़ चुकाना हैं, खून का क़र्ज़, हम, प्यार का देवता, मर दिल तेरे लिए आदि फिल्मे आई।
1992 में इन्होंने अंगार, बोल राधा बोल, सूर्यवंशी, दौलत की जंग, कसक, नागिन और लूटेरे जबकि 1993 में शतरंज, तेरी पायल मेरे गीत, धनवान, औलाद के दुश्मन, दिल तेरा आशिक, रंग, गुरुदेव, दिल है बेताब, ज़ख्मों का हिसाब, कायदा कानों, आशिक आवारा, आँखें और दिल ही तो हैं जैसी फिल्मे की।
1994 में मिस्टर आज़ाद, घर की इज्ज़त, मैं खिलाडी तू अनाडी, आग, इना मीना डीका, आतिश, पहला पहला प्यार, साजन का घर, अंदाज, खुद्दार, राजा बाबु आदि फिल्मे की। 1995 में हलचल, कुली नम्बर 1 ताक़त, तकदीरवाला, अनोखा अंदाज़, दी डॉन, मैदान-ए-जंग, सुरक्षा, वर्तमान, ओह डार्लिंग! यह हैं इंडिया नाम की फिल्मों में काम किया।
1996 में कादर खान ने “साजन चले ससुराल”, छोटे सरकार, रंगबाज, सपूत, माहिर, बंदिश और एक था राजा में काम किया। 1997 में आपने शपथ, भाई, मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी, दीवाना मस्ताना, हमेशा, ज़मीर, बनारसी बाबु, सनम, जुदाई, हीरो नम्बर वन, जुड़वाँ की।
फिर 1998 में नसीब, कुदरत, हीरो हिन्दुस्तानी, बड़े मिया छोटे मिया, जाने जिगर, दुल्हे-राजा, घरवाली-बाहरवाली, हिटलर, आंटी नम्बर 1, मेरे दो अनमोल रतन की। जबकि 1999 में जानवर, हिन्दुस्तान की कसम, हसीना मान जायेगी, सिर्फ तुम, राजाजी, अनाडी नम्बर 1 और आ अब लौट चले आदि फिल्में की. जबकि 2000 में तेरा जादू चल गया, धडकन, जोरू का गुलाम, क्रोध, आप जैसा कोई नहीं, कुंवारा जैसी फिल्मों में काम किया।
2001 में कादर खान की सिर्फ एक फिल्म आई जिसका नाम था इत्तेफाक। जबकि 2002 में खान के करियर ने फिर से गति पकड़ी और उन्होंने जीना सिर्फ मेरे लिए, अंखियों से गोली मारे, बधाई हो बधाई, हाँ! मैंने भी प्यार किया है, चलो इश्क लड़ाए, वाह! तेरा क्या कहना नाम की फिल्मे की।
फिर 2003 में फंटूश, परवाना की जबकि 2004 में मुझसे शादी करोगी, सुनो ससुरजी और कौन हैं जो सपनों में आया नाम की फिल्मे की।
2005 में खान ने कोई मेरे दिल में हैं, लकी, खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे में काम किया। जबकि 2006 में उमर, जिज्ञासा, फैमिली में कम किया, और 2007 में जहाँ जाइयेगा हमें पाइएगा, ओल्ड इज गोल्ड और अंडर ट्रायल में कम किया।
फिर 2008 में एक ही फिल्म आई महबूबा जबकि 2013 में “दीवाना मैं दीवाना आई” 2014 में ऊँगली तो 2015 में हो गया दिमाग का दही, लतीफ़ और इंटरनेशनल हीरो आई जबकि 2016 में अमन के फ़रिश्ते और 2017 में कादर खान की तबियत ख़राब होने के कारण कोई फिल्म नहीं आई।
कादर खान ने कुछ सीरियल भी किये थे जिनमें हँसना मत, मिस्टर धनसुख, हाए! पडोसी… कौन है दोषी?? और 2012 में सब टीवी पर आने वाला मूवर्स एंड शेखर्स में काम किया था। उन्होंने 1981 में एक फिल्म शमा भी प्रोड्यूस की थी।
कई अवार्ड मिले, नामांकन भी हुआ
1982 में कादर खान को “मेरी आवाज़ सुनो”के लिए बेस्ट डाइलोग के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। 1991 में बाप नम्बरी बेटा 10 नम्बरी के लिए बेस्ट फिल्मफेयर कॉमेडियन का अवार्ड मिला था। 1993 में अंगार में बेस्ट डाइलोग के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिला था।
इसके अलावा वो 1984 में हिम्मतवाला, 1986 में आज का दौर, 1990 में सिक्का, 1992 में हम, 1994 में आँखें, 1995 में मैं खिलाड़ी तू अनादी, 1996 में कुली नम्बरवन, 1997 में साजन चले ससुराल के लिए और 1999 में दुल्हे राज में बेस्ट कॉमेडी के लिए के लिए बेस्ट फिल्म फेयर अवार्ड में नामांकित किया गया।
कादर खान की सेहत और उनकी मौत की अफवाहें
वर्ष 2015 में कादर खान के हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ में एडमिट होने की खबर भी आई थी। कादर खान को क्रोनिक डाइबिटिज और कुछ अन्य तकलीफें भी थी। ये खबर भी आई थी की खान आश्रम में 3 सप्ताह तक रुकेंगे, और ये जानकारी रामदेव बाबा के सहायक आचार्य बालकृष्ण ने दी थी।
बालकृष्ण ने ये भी कहा कि वो कुछ समय पहले मुंबई में कादर से मिले थे, तब उन्होंने कादर को पतंजलि में आकर इलाज करवाने की सलाह दी थी। इस कारण कादर खान के बेटे ने उन्हें पतंजली में एडमिट करवा दिया। वैसे भी कादर खान को को जॉइंटस में दर्द की शिकायत थी, इस कारण वो व्हीलचेयर पर थे।
लगातार तबियत खराब रहने के कारण 2015 में कादर खान की मौत की खबरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी थी। जिसका उस समय कादर के सह-कलकार बार-बार खंडन कर रहे थे, लेकिन वो भी इन अफवाहों को रोक नहीं पा रहे थे।
ऐसे में उस समय उनकी मौत को लेकर उड़ी ख़बरों ने उनके प्रशंसकों को चिंता में डाल दिया था, इस कारण किसी एक फोटो का सामने आना जरुरी भी हो गया था और इसीलिए इन सभी झूठी खबरों का खंडन करने के लिए आखिर में कादर खान की एक फोटो सामने आई थी, जिस में कादर खान ने ब्लैक-स्ट्रिपड शर्ट और ट्राउजर पहनी थी और वो कैप के साथ अभिवादन कर रहे थे।
वास्तव में उस समय कादर खान अपने बड़े बेटे सरफ़राज़ के साथ कनाडा में थे, और शायद इसी कारण ऐसी अफवाहें चल रही थी कि कादर खान अपने घुटने का ऑपरेशन करवाने कनाडा गए थे। निर्देशक फौजिया अर्शी ने भी तब मीडिया में ये कहा था कि “वो पिछले 3-4 महीनो से कनाडा में हैं और सकुशल हैं। उनका बड़ा बेटा वहां रहता हैं इसलिए वो वहां हैं” अर्शी ने कादर की लास्ट फिल्म “दिमाग का दही हो गया” को निर्देशित किया था।
लेकिन पतंजली से लेकर कनाडा तक इलाज करवाने के बाद भी कादर खान की तबियत में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ, जिसे उनकी फिल्म “दिमाग का दही हो गया” के प्रमोशनल इवेंट में देखा गया। उस कार्यक्रम में कादर खान को चलने और बोलने में तकलीफ हो रही थी।
इसके बाद उनके बारे में शक्ति कपूर ने बताया था कि “हाँ! कादर खान अब व्हील चेयर पर हैं, इस बारे में बात करना बहुत दुखद हैं और मैं उनसे सम्पर्क बनाने की कोशिश कर रहा हूँ, वो अभी कनाडा में अपने बेटे के पास गये हैं और शायद उनकी पत्नी भी उनके साथ ही हैं।
कनाडा में ली आखिरी सांस
कादर खान लम्बे समय से बीमार चल रहे थे कनाडा में वे अपना इलाज करा रहे थे, जिसके दौरान 81 वर्ष में 1 जनवरी 2019 को उनकी मृत्यु हो गई। कादर खान की फिल्म, उनकी कॉमेडी को जनता हमेशा याद रखेगी।