आज जयंती पर विशेष-जनचेतना के प्रतीक
बिरसा मुंडा को याद कर रहा है समूचा देश
नई दिल्ली। केंद्र सरकार बिरसा मुंडा की जयंती को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मना रही है.इसके साथ ही 15 नवंबर की तारीख़ को बिरसा मुंडा की जयंती और झारखंड के स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इसी मौके पर रांची से सत्तर किलोमीटर दूर बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू पहुंची हैं जहां आज तक भारत का कोई राष्ट्रपति नहीं पहुंचा था.राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यहां पहुंचकर बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके श्रद्धांजलि अर्पित की.
स्थानीय ग्रामवासियों के लिए राष्ट्रपति का उनके गांव पहुंचना आत्मगौरव महसूस कराने वाले पल जैसा है. क्योंकि राष्ट्रपति स्वयं आदिवासी समुदाय से आती हैं.
समृद्ध विरासतें अगर चमकते वर्तमान की गारंटी होतीं, तो उलिहातू में सबकुछ चकाचक होता.कठहल और इमली के पेड़ों के साथ खड़े खंबे 24 घंटे बिजली आपूर्ति करते, हर घर में नल से पानी आता और यहां बने शौचालय खंडहरों में तब्दील नहीं हुए होते.
लेकिन, विरासतें विकास का सर्टिफिकेट नहीं होतीं. शायद इसी वजह से देश की आजादी की लड़ाई के बड़े नायक ‘भगवान’ कहे जाने वाले बिरसा मुंडा के पैतृक गांव उलिहातू में विकास के नाम पर काले पत्थरों और तारकोल (अलकतरा) से बनी सड़कें और लोगों की जेब में स्मार्ट फोन के अलावा कुछ और नहीं दिखता.
वैसे गांव को सजाया जा रहा है. रंग-रौगन हुआ है. बिरसा मुंडा के घर (जहां उनका जन्म हुआ था) की बाहरी दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग्स बनायी गई हैं. सड़कें साफ़ करा दी गई हैं. हैलिपैड बने हैं.अस्पताल में दवाईयों का इंतज़ाम हुआ है. गेंदे के पीले फूलों से सजे गेट बनाए गए हैं.
स्वागत के होर्डिंग्स लगे हैं और वे सारी कोशिशें की गई हैं, जिससे उलिहातू का बाहरी चेहरा साफ़ और सुंदर दिखे.झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह कुछ ही दिन पहले गांव का दौरा कर चुके हैं.उन्होंने अधिकारियों को ये सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त कराने का निर्देश दिया था.
खूंटी के उपायुक्त (डीसी) शशिरंजन और दूसरे अधिकारी इन व्यवस्थाओं की निगरानी कर रहे हैं.छह टोलों वाले क़रीब सवा हज़ार लोगों के गांव उलिहातू में बिरसा मुंडा के नाम और उनसे जुड़े स्मारकों के अलावा वैसा कुछ भी नहीं है, जो इसे दूसरे गांवों से अलग करे.यह देश के दूसरे गांवों जैसा ही है, जहां के लोगों को बुनियादी ज़रुरतों के लिए भी अपने हिस्से का संघर्ष रोज़ाना करना होता है.
यहां रहने वाली बहुतायत आबादी मुंडा आदिवासियों की है.इनका मुख्य पेशा खेती और मज़दूरी है. गांव के युवा रोज़गार की तलाश में पश्चिम बंगाल के आसनसोल, दुर्गापुर, मुर्शिदाबाद आदि शहरों के साथ-साथ मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में भी रह रहे हैं.
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 70 किलोमीटर दूर बसे खूंटी ज़िले के इस गांव को आदर्श गांव का दर्जा प्राप्त है. शहीद ग्राम विकास योजना समेत केंद्र और राज्य सरकार की कुछ योजनाएं चलाने का दावा भी है लेकिन गांव वालों की अपनी दिक्कतें हैं.जंगलों से घिरा यह इलाका कभी नक्सल प्रभावित हुआ करता था.अब स्थितियां बदली हैं.
गांव में अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है लेकिन सरकारी भवनों पर उनका कब्ज़ा ग्रामीणों के लिए दिक्कतों की वजहें भी बना हुआ है. गांव वाले दबी जुबान से इन दिक्कतों की चर्चा करते हैं.आदिवासियों को ‘ईसाई बनाने के ख़िलाफ़’ हिंदूवादी संगठनों की मुहिम का विवाद क्या है
बिरसा मुंडा के परपोते सुखराम मुंडा आज भी मिट्टी के घर में रहते हैं.बिरसा मुंडा की तीसरी और चौथी पीढ़ी के लोग यहां रहते हैं. बिरसा मुंडा की जन्मस्थली वाले स्मारक भवन के ठीक पीछे इनका खपरैल वाला मकान है.यहां रहने वाले उनके परपोते सुखराम मुंडा आज भी मिट्टी के घर में रहते हैं, क्योंकि उनके पास उतनी ज़मीन नहीं है कि उन्हें सरकारी पक्का मकान आवंटित किया जा सके.
लिहाजा, शहीद ग्राम विकास योजना के तहत बनने वाले पक्के घर की योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है. आम दिनों में वही बिरसा स्मारक की देखरेख और साफ़-सफ़ाई करते हैं. सुखराम मुंडा ने बीबीसी से कहा था कि “साल 2017 में अमित शाह यहां आए थे. तब रघुबर दास मुख्यमंत्री थे और उन्होंने ही यहां शहीद ग्राम विकास योजना की शुरुआत की थी. इसके अंतर्गत 150 से अधिक लोगों का पक्का घर बनना था लेकिन अभी तक एक भी घर पूरी तरह नहीं बन सका है.”
“इसी तरह हर घर नल लगना था, ताकि लोगों को पीने का पानी मिल सके. आजतक ये समस्याएं दूर नहीं हुईं. हर साल बड़े-बड़े नेता यहां आते रहते हैं. कई वादे किए जाते हैं लेकिन अधिकतर वादे पूरे नहीं होते.”
उन्होंने यह भी कहा था कि “अब राष्ट्रपति जी आ रही हैं तो हमारी उम्मीदें बढ़ी हैं. मेरी बेटी जौनी कुमारी खूंटी के बिरसा मुंडा कालेज से पीजी कर रही है. मेरे बेटों को सरकार ने फोर्थ ग्रेड की नौकरी दी है. अब हम राष्ट्रपति जी से अनुरोध करेंगे कि वे मेरी बेटी को भी सरकारी नौकरी दिला दें.
वे साल 2015 में भी मेरे गांव आयी थीं. तब वे यहां की राज्यपाल थीं. मैं उनसे मिल चुका हूं. मुझे आशा है कि वे मेरी बेटी को सरकारी नौकरी दिला देंगी.”
उलिहातू की सबसे बड़ी समस्या इसका ड्राई जोन में होना है. यहां पीने के पानी के साथ-साथ सिंचाई के लिए भी पानी की उपलब्धता बड़ी मुश्किल से हो पाती है.गांव के लोग धान और मड़ुआ की खेती करते हैं. धान के लिए पर्याप्त पानी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो पाने के कारण फसल प्रभावित होती है. पीने के पानी के लिए लोग हैंडपंप और कुओं पर निर्भर हैं.
यह गांव बाड़ी निजकेल पंचायत का हिस्सा है. यहां की मुखिया मरियत देवी ने बताया कि उलिहातू को ग्रामीण पेयजल आपूर्ति योजना से जोड़ा गया था लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. मुखिया मालती देवी ने कहा, “ग्रामीण पेयजल आपूर्ति योजना बेकार साबित हुई. इसका जलमीनार पांच साल से ख़राब पड़ा हुआ है. सोलर आधारित जलापूर्ति योजना से भी कुछ फायदा नहीं हुआ.
अगर हर जल नल योजना को ठीक तरीक़े से लागू करा दिया जाए, तभी गांव वालों के लिए शुद्ध पेयजल की आपूर्ति हो सकेगी. अभी जाड़े के मौसम में तो पानी फिर भी मिल जाता है लेकिन गर्मी में कुएं का पानी सूख जाने पर स्थिति गंभीर हो जाती है.”बिरसा मुंडा के मां-बाप ने प्रारंभिक शिक्षा के लिए उन्हें चाईबासा के एक मिशन स्कूल मे भर्ती कराया था. तब इस इलाके में स्कूल नहीं थे.
उलिहातू में अब बिरसा मुंडा के नाम पर बना आवासीय उच्च विद्यालय है लेकिन वहां रहने वाले छात्रों के लिए पानी का मुकम्मल इंतज़ाम नहीं है.यहां पढ़ने वाले करीब 300 छात्रों के लिए सिर्फ़ तीन स्थायी शिक्षक हैं. उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को खूंटी या रांची जाना पड़ता है.
झारखंड यूं तो खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) राज्य है लेकिन यहां बने अधिकतर शौचालय खंडहर में बदल चुके हैं. नतीजतन लोग खुले में शौच के लिए विवश हैं.गांव के कोटे मुंडा ने बताया कि जब ये शौचालय ठीक थे, तब भी पानी के अभाव में इसका इस्तेमाल नहीं हो पाता था. यह हालत तब है, जब यहां के सांसद अर्जुन मुंडा केंद्र सरकार में मंत्री हैं.
खूंटी के उपायुक्त (डीसी) शशिरंजन ने बताया कि उलिहातू गांव में पेयजल आपूर्ति के लिए करीब 14 करोड़ रुपये की योजना तैयार की गई है.उन्होंने कहा, “जल जीवन मिशन के तहत यहां अगले छह महीने के अंदर जलापूर्ति का लक्ष्य है. हम जल्दी ही यहां हर घर में नल से पीने का पानी उपलब्ध कराने वाले हैं. इसी तरह विकास की दूसरी योजनाओं पर भी काम हो रहा है. इसका लाभ ग्रामीणों को मिलना शुरू हो चुका है.”
डीसी शशिरंजन ने मीडिया से कहा, “शहीद ग्राम विकास योजना के अंतर्गत बनने वाले घरों की साइज को लेकर ग्रामीणों की आपत्तियां थीं. ग्राम सभा की कुछ बैठकों के बाद गांव वालों को इस योजना के लिए राजी कराया जा सका. इस कारण थोड़ी देर हुई लेकिन अब लाभार्थियों को घर निर्माण का पैसा दिया जा चुका है. कई घरों का निर्माण अंतिम चरण में है. जल्दी ही सारे मकान बना लिए जाएंगे.”