आज 9 दिसम्बर जन्मदिन पर विशेष
कनक तिवारी
सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय राजनीति में कई तरह के अपमान, उपेक्षा और पराजय झेलते कुछ इतिहास तो रचा है। उन्होंने अन्तरात्मा और सन्तानों की आवाज पर प्रधानमंत्री होना कुबूल नहीं किया।
लोकसभा चुनाव 2004 तथा 2009 में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस को मिला समर्थन राजनीतिज्ञों, मीडिया और विदेशियों को भी अचंभित कर गया।
‘फीलगुड‘ और ‘इंडिया शाइनिंग‘ को भाजपाई नारे फीलबैड करते रहे। मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना लेकिन सोनिया गांधी के यश और कांग्रेस के भविष्य-यश में इजाफा नहीं कर सका।
मनमोहन सिंह ने वित्तमंत्री की हैसियत में वल्ड बैंक, गैट, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, निजीकरण जैसे पश्चिमी शब्दों के अर्थ पढ़ाए ही थे। लोकतंत्र चाहता था देश पश्चिम का अनुवाद बनने के बदले पूरब का पाठ बने।
संघ परिवार और कम्युनिज़्म की कशमकश से जूझती सियासत में कांग्रेस ने लाॅटरी मनमोहन सिंह के नाम खोल दी। जवाहरलाल से लेकर सोनिया गांधी तक कांग्रेस कम्युनिस्टों से दोस्ती की कायल रही लेकिन मनमोहन सिंह ने अमेरिका से परमाणु संधि करते उसे अंगूठा दिखा दिया।
सोनिया गांधी का मानवीय पक्ष भी है। विदेश से आई युवती के जीवन में प्रौढ़ता आते ही वैधव्य छा गया। पचड़ेबाज इटली लौट जाने का तंज कसने लगे। गुमनामी के रेवड़ में रहने से बेहतर भारत में जिल्लत झेलने का साहस सोनिया ने दिखाया। संघ परिवार ने तो सोनिया को भारत में रहने पर अपराधी ही घोषित कर दिया।
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राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया ने प्रतिहिंसा के बदले हमलों पर बचाव की रणनीति के सहारे जीत दर्ज की। हमले झेलती सोनिया के लिए स्त्रियों की संवेदनशीलता ने राजनीति को नया तेवर दिया। सोनिया गांधी कोई पैगम्बर, मसीहा या अवतार नहीं हैं। उनके भाषणों में तालियां कम बजती रहती हैं।
बहुलवादी संस्कृति की कांग्रेस सोनिया के एकल प्रचारक होने में कैद होकर रह गई। हिन्दुत्व को भारत मानने वाली भाजपा स्टार प्रचारकों से लैस जश्नजूं रहती है। सोनिया गांधी इतिहास की हुंकार नहीं हैं। दीवार पर चढ़ती चींटी की कोशिश, दौड़ते भाजपाई खरगोश के मुकाबले कछुए की धीमी चाल और टिटहरी के आत्मविश्वास के साथ आकाश थामने के हौसले की पंचतंत्र कथाओं की किरदार जैसी मामूली लगती रहीं।
राजनीति का ककहरा ससुराल के अदब में रहकर सास से सीखा। सहनशीलता, कूटनीतिक बुद्धि और रहस्यमय धीरज के कारण सोनिया ने भारतीय जीवन में मर्तबा हासिल कर लिया, जो राजनीति में अनोखा है। आज कांग्रेस को असाधारण चुनौतियों और अपनी ही लगातार गलतियों से जूझना पड़ रहा है।
देश की दौलत देशी विदेशी काॅरपोरेटियों को औने पौने मोदी सरकार बेच रही है। बेशर्म लूट से प्राप्त धन विकास सूचकांक के रूप में गोदी मीडिया प्रचार कर रहा है। किसान आन्दोलन करें। आत्महत्या करें। मंत्री देश को लूटें। जनता के जीवन को पीटें। कांग्रेस में मजबूरी क्यों दिख रही है? सबसे पुराना राजनीतिक दल दरक सा क्यों हो रहा है? प्रियंका गांधी में राजनीतिक हैसियत, टेनिंग तथा अनुभव के बिना इन्दिरा गांधी को क्यों ठूंसा जा रहा है?
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केवल इतने लक्षणों से इतिहास नहीं बनेगा। कांग्रेस को सोचना है भारत का भविष्य कैसा होगा। वन, खनिज, सरकारी सरकारी उद्योगों और आदिवासी संपत्तियों की खुले आम सरकार डकैती कर रही है। काॅरपोरेटियों ने कोरोना काल में भी देश की बदहाली के वक्त बेईमानी और धूर्तता के साथ जनता की दौलत लूटी है।
अदानी, टाटा, अंबानी, वेदान्ता जैसे कई परिवार राजनीतिक जीवन में घुसपैठ कर चुके हैं। आदिवासियों की भूमि जबरिया हड़पना, सरकारी उद्यमों की खरीदफरोख्त और विशेष आर्थिक क्षेत्र बदनाम कुछ उदाहरण हैं। भारतीय पूंजीवाद वैश्विक पूंजीवाद का मुनीम बना है।
यही हाल रहा तो राजनीति में वह धड़कन धीमी हो जाएगी जो लोकतंत्र का अहसास है। एक व्यक्ति इतिहास में इतना बड़ा हो गया कि नारा लगवाए ‘आएगा तो मोदी ही।‘ कांग्रेस के नेतृत्व को इन सवालों से जूझने का वक्त घेर चुका है। कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले की बेमेल लड़ाई हो रही है। कांग्रेस को गांधी, नेहरू और इन्दिरा के कार्यक्रमों को समकालीन लेकिन लचीला करना होगा।
रणथंभौर में बेटे-बेटी संग जन्मदिन मना रहीं सोनिया
गुजरात, हिमाचल प्रदेश में चुनाव परिणामों के बाद और भारत जोड़ो यात्रा के बीच से ब्रेक लेकर राहुल गांधी समेत पूरा गांधी परिवार आज रणथंभौर नेशनल पार्क में है। परिवार यहां सोनिया गांधी का 76वां जन्मदिन सेलिब्रेट कर रहा है। गांधी परिवार गुरुवार 08 दिसंबर की शाम को ही यहां पहुंच गया था।
गुरुवार शाम की पारी में सोनिया, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने रणथंभौर में टाइगर सफारी की। इस दौरान उन्होंने मलिक तालाब की पाल पर बाघिन के दीदार किए।
इसी के साथ गूलर तलाई पर एक नर बाघ की अठखेलियों को देखा। इस दौरान पूरा गांधी परिवार जोगी महल भी पहुंचा। यहां पहुंचकर उन्होंने अपनी पुरानी यादों को ताजा किया। राजीव गांधी अपने परिवार के साथ जोगी महल में ही रुके थे।