अमरजीत के मुस्लिम माता-पिता विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए थे,बरसो की आस अब जाकर पूरी हुई
चंडीगढ़। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के करतारपुर गुरुद्वारा साहिब Kartarpur Gurdwara Sahib में हाल ही में बेहद भावुकता से भरा माहौल था। अपने मुस्लिम माता-पिता से बिछड़ी संतान ने सिख बालक के तौर पर परवरिश पाई ।
अब उम्र के आखिरी पड़ाव में व्हील चेयर पर गुरुद्वारा पहुंचे इसी वयोवृद्ध ‘बालक’ ने पहली बार अपनी छोटी
जालंधर में रहने वाले अमरजीत सिंह Amarjeet Singh की खुशी का उस समय कोई ठिकाना नहीं रहा, जब वह 1947 में बंटवारे के समय अपने परिवार से अलग होने के 75 साल बाद करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में अपनी पाकिस्तानी मुस्लिम बहन कुलसुम अख्तर Kulsum Akhtar से मिले। मुलाकात के समय भाई-बहन के अलावा मौके पर मौजूद लोग भी बेहद भावुक हो गए।
अमरजीत सिंह के मुस्लिम माता-पिता विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए थे जबकि वह और उनकी एक अन्य बहन भारत में ही छूट गए थे।
बुधवार 7 सितंबर को पाकिस्तान में पंजाब प्रांत Punjab state of Pakistan के करतारपुर गुरुद्वारा दरबार साहिब में व्हीलचेयर पर बैठे अमरजीत सिंह की उनकी बहन कुलसुम अख्तर के साथ मुलाकात के दौरान सभी की आंखें नम हो गईं।
खबर के मुताबिक, अमर जीत सिंह अपनी बहन से मिलने के लिए वीजा लेकर वाघा बॉर्डर Wagha Border के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे थे।
65 वर्षीय कुलसुम अपने भाई अमरजीत को देखकर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाईं और दोनों एक दूसरे को गले लगाकर काफी देर रोते रहे।
कुलसुम बेटे शहजाद अहमद और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने भाई से मिलने के लिए फैसलाबाद से करतारपुर पहुंची थीं। मीडिया से बात करते हुए कुलसुम ने कहा, कि उनके माता-पिता 1947 में जालंधर के एक उपनगर से पाकिस्तान चले आये थे जबकि उनके भाई और एक बहन वहीं छूट गए थे।
कुलसुम ने कहा, कि वह पाकिस्तान में पैदा हुई थीं और भारत में छूटे अपने भाई और बहन के बारे में अपनी मां से सुनती थीं। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वह कभी अपने भाई और बहन से मिल पाएंगी।
उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले उनके पिता के एक दोस्त सरदार दारा सिंह भारत से पाकिस्तान आये और उनसे भी मुलाकात की।
उन्होंने बताया कि इस दौरान, उनकी मां ने सरदार दारा सिंह को भारत में छूटे अपने बेटे और बेटी के बारे में बताया। दारा सिंह को उनके गांव का नाम और अन्य जानकारी भी दी।
उन्होंने बताया कि इसके बाद दारा सिंह पडावां गांव स्थित उनके घर गए और उनकी मां को सूचित किया कि उनका बेटा जीवित है लेकिन उनकी बेटी की मौत हो चुकी है।
कुलसुम के अनुसार दारा सिंह ने उनकी मां को बताया कि उनके बेटे का नाम अमरजीत सिंह है जिसे 1947 में एक सिख परिवार ने गोद ले लिया था।
उन्होंने बताया कि भाई की जानकारी मिलने के बाद कुलसुम ने सिंह से व्हाट्सऐप पर संपर्क किया और बाद में मिलने का फैसला किया।
अमरजीत सिंह ने कहा कि जब उन्हें पहली बार पता चला कि उनके असली माता-पिता पाकिस्तान में हैं और मुसलमान हैं, तो यह उनके लिए एक झटका था।
उनके अनुसार हालांकि, उन्होंने खुद को दिलासा दिया कि उनके अपने परिवार के अलावा कई अन्य परिवार भी विभाजन के दौरान एक-दूसरे से अलग हो गए थे।
सिंह ने कहा, कि वह हमेशा से अपनी सगी बहन और भाइयों से मिलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि उनके तीन भाई जीवित हैं। हालांकि, एक भाई जो जर्मनी में था, उसका निधन हो चुका है।