बदलती जलवायु का सामना करने भारतीय
प्रदेशों के उपायों से सीख सकती है दुनिया
नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करना भविष्य के लिए सबसे बेहतर तरीका है। सदियों से भारतीय, इस कला में पारंगत रहे हैं। आइए भारत में इस्तेमाल होने वाले कुछ ऐसे तरीकों पर डालते हैं एक नज़र।
21वीं सदी में वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है जलवायु परिवर्तन। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, साल 2030 और 2050 के बीच, केवल Climate Change से कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और हीट स्ट्रेस के कारण प्रति वर्ष लगभग 2.5 लाख अतिरिक्त मौतें होने की संभावना है। इस ओर जागरूक होने और इसे नियंत्रित करने के लिए काम करने का यही सही समय है।
जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए हमेशा मॉडर्न तकनीक की ज़रूरत नहीं होती है। कभी-कभी, इसमें स्वदेशी ज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल से भी बेहतर काम किए जा सकते हैं।
भारत के कई हिस्सों में इसी कला का इस्तेमाल कर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया गया है, जिससे पूरी दुनिया सबक ले सकती है।
ओडिशा के लघु वन Odisha’s mini forests
ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में, जलवायु परिवर्तन Climate Change के असर को कम करने के लिए 20 गांवों ने मिलकर पौधे लगाए हैं और 50 एकड़ ज़मीन पर छोटा सा जंगल विकसित किया है। ये छोटे जंगल प्राकृतिक सायक्लोन बैरियर की तरह काम करते हैं।
साल 2020 में, साइंस ऑफ द टोटल एनवायर्नमेंट ने एक रीसर्च पेपर प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया था कि जिले में 2040 तक बाढ़ का जोखिम 12.55 प्रतिशत से बढ़कर 27.35 प्रतिशत तक हो सकता है। इसके अलावा, जगतसिंहपुर में पारादीप के बंदरगाह शहर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा देश के ‘गंभीर रूप से प्रदूषित’ शहरों में से एक होने का टाइटल भी मिला था।
इन सभी कारणों ने ग्रामीणों को मिनी जंगल बनाने के लिए प्रेरित किया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, “इस काम के लिए वन विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली सामयिक सहायता को छोड़कर, कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं था।”
पश्चिम बंगाल में एक बंजर पहाड़ पर दोबारा तैयार किया
जंगल Reforesting a barren mountain in West Bengal
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के एक गांव झरभगड़ा ने एक बंजर पहाड़ को फिर से जंगल में बदलकर न केवल अपने पानी की समस्या को हल किया और इलाके में पड़ने वाली भीषण गर्मी पर भी काबू पाया। यह गांव चारो तरफ से 50 किमी बंजर ज़मीन से घिरा हुआ था, जिस कारण वहां रहनेवाले लोगों को मौसम की चरम स्थिति का सामना करना पड़ता था।
1997 तक गांव के 300 परिवारों को मौसम की मार झेलनी पड़ रही थी। लेकिन आज, पहाड़ी और इसके आसपास की 387 एकड़ ज़मीन हरे-भरे जंगल से बदल गई है। ये जंगल कई वन्यजीव प्रजातियों का घर भी हैं। इसे टैगोर सोसाइटी फॉर रूरल डेवलपमेंट (TSRD) नाम के एक NGO की मदद से लागू किया गया था। गांव में अब ठंडी हवा रहती है और अंडरग्राउंड पानी का लेवल भी अच्छा हो गया है।
महाराष्ट्र के बाढ़ मुक्त गांव
Flood-free villages of Maharashtra
Climate Change के प्रभाव को कम करने के लिए, काजली नदी की जल-वहन क्षमता को बढ़ाकर, महाराष्ट्र के सखरपा और कोंगाओ गांव 70 साल बाद बाढ़ मुक्त हो गए हैं।
महाराष्ट्र के चिपलुण शहर में साल 2021 की बारिश में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। सखरपा और कोंगाओं गांवों को छोड़कर हर एक क्षेत्र प्रभावित हुआ था। यहां तक कि जिन गांवों के बीच नदी बहती थी, वे भी काफी प्रभावित हुए थे। साल 2015 में भीषण बाढ़ के बाद, 2019 और 2021 के बीच नदी के पुन:स्थापन का काम किया गया।
इस प्रक्रिया में ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट को हल करने के लिए काम करने वाला एनजीओ ‘नाम’, ग्रामीणों की मदद के लिए आगे आया है। नेचुरल सॉल्यूशंस नाम के एक अन्य एनजीओ ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया।
सिंचाई के लिए लद्दाख में बर्फ के स्तूपों का उपयोग
Using Ladakh’s ice stupas for irrigation
गर्मी के अप्रैल और मई के महीनों के दौरान, लद्दाख में आर्टिफिशिअल बर्फ के स्तूप की मदद से 1,500 पौधों की सिंचाई की जाती है। ये आर्टिफिशिअल बर्फ के स्तूप इन 1,500 पौधों के लिए दस लाख लीटर पानी उपलब्ध कराते हैं।
गर्मियों के दौरान, पानी जमा करने के लिए आर्टिफिशिअल ग्लेशिअर या स्तूप एक सरल सिंचाई प्रणाली है। लद्दाख में वसंत के मौसम में किसान, खेती करने के लिए इस तकनीक का उपयोग करते हैं। यह तकनीक इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस जगह की आबादी लगभग 3 लाख है, लेकिन यहां प्रति वर्ष, बारिश सिर्फ 10 सेंटीमीटर ही होती है।
सर्दियों के ताजे पानी को बड़े संरचनाओं में जमा करने और स्टोर करने की तकनीक को पहली बार 2013 में इंजीनियर सोनम वांगचुक द्वारा विकसित किया गया था।
महाराष्ट्र में Climate Change के प्रभाव को कम करने के लिए
वॉटरशेड मैनेजमेंट,Watershed management in Maharashtra
मध्य महाराष्ट्र अक्सर सूखे की चपेट में आता है। लेकिन वॉटरशेड मैनेजमेंट का इस्तेमाल करते हुए हिवरे बाजार के निवासियों ने भारत के सबसे समृद्ध गांवों में से एक के रूप में अपनी जगह बनाई है।
राज्य के अहमदनगर जिले के हिवरे बाजार इलाके में बारिश कम ही होती है। लगातार सूखा और फसल खराब होना यहां की सामान्य कहानियां थीं। साल 1998 में रोज़गार गारंटी योजना (ईजीएस) के तहत यहां जल संरक्षण का काम शुरू हुआ, जिससे ग्रामीणों, खासकर किसानों का जीवन बदल गया।
एक रिपोर्ट के अनुसार, “आज गांव के 216 परिवारों में से एक चौथाई करोड़पति हैं।” गाँव की प्रति व्यक्ति आय, देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में (2008 में) टॉप 10 प्रतिशत के औसत से दोगुनी है।
पेड़ की जटाओं से तैयार होता है पुल, शामिल है यूनेस्को की सूची में
मेघालय एक ऐसा राज्य है, जहां देश में सबसे ज्यादा बारिश होती है। लेकिन इससे बार-बार बाढ़ और सायक्लोन आने का खतरा रहता है। मानसून के दौरान, भारी-भरकम बहने वाली नदियाँ और तूफान, अनोखे लिविंग रूट ब्रिजों को छोड़कर सभी पुलों को बहा ले जाते हैं।
इसका मुकाबला करने के लिए मेघालय के 70 गांवों में 100 से अधिक प्राकृतिक पुल देखे जा सकते हैं। यह प्रकृति और मानव रचनात्मकता का एक मिश्रण हैं। सबसे पहले, नदी के दूसरे पार एक बांस की संरचना रखी जाती है। बाद में, पेड़ की जड़ें, आमतौर पर रबड़ के पेड़, संरचना के साथ तब तक जोड़े जाते हैं, जब तक कि यह मजबूत न हो जाएं।
फिर जड़ों को धीरे-धीरे बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। प्रतिष्ठित विश्व धरोहर स्थल की स्थिति के लिए रूट ब्रिज को यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल किया गया था।