सम्मान देने जंगल को नाम दिया ‘मोलाई वन’ का, पद्मश्री से सम्मानित एक फॉरेस्ट मैन की जीजीविषा की अद्भुत कहानी
गुवाहाटी। आज दुनिया भर में फॉरेस्ट मैन के नाम से पहचाने जाने वाले जोरहाट (असम) निवासी जाधव ‘मोलाई’ पायेंग की जीजीविषा की कहानी भी अद्भुत है। उन्होंने अपने संकल्प से 1360 एकड़ में हरा-भरा जंगल तैयार कर दिया। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। दुनिया भर में उन पर तैयार डाक्यूमेंट्री को बेहद सुर्खियां मिली है।
42 साल पहले झकझोर दिया था सांपों की मौत ने
वर्ष 1979 में 10 वीं की परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहे थे। तभी उनकी नजर लगभग 100 मृत सांपों के विशाल गुच्छे पर पड़ी। यह देखकर वे अचंभे में पड़ गए। वे आगे बढ़ते गए तो देखा कि पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव-जंतुओं से अटा पड़ा एक मरघट-सा बन गया था। वहां जानवरों के शव के कारण पैर रखने को जगह नहीं थी। इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष मौत के दृश्य ने जाधव के किशोर मन को झकझोर दिया।
पर सब हंसते थे तब उनकी बातों
हज़ारों की संख्या में निर्जीव जीव-जंतुओं की निस्तेज फटी हुई मुर्दा आँखों ने जाधव को कई रात सोने न दिया। एक दिन जादव ने आसपास के बड़े लोगों से पूछा, “अगर इन्हीं सांपों की तरह एक दिन हम सब मर गए तो वे (बड़े लोग) क्या करेंगे?” उनकी इस बात पर सभी बड़े-बुजुर्ग लोग हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे, लेकिन वह (जादव) जानते थे कि उन्हें इस भूमि को हरा-भरा बनाना है।
ऐसे लिया जंगल उगाने का संकल्प
गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित जाधव से कहा जब पेड़-पौधे ही नहीं उग रहे हैं, तो नदी के रेतीले तटों पर जानवरों को बाढ़ से बचने का आश्रय कहाँ मिले? जंगलों के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले? यह बात जाधव पायेंग के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि उन मूक जीव-जंतुओं को बचाने के लिए पेड़-पौधे लगाने होंगे।
बिना किसी सरकारी मदद के लगा दिया जंगल
तब 50 बीज और बांस के 25 पौधे लेकर 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर रोपने। यह आज से 35 साल पुरानी बात है। वह दिन था और आज का दिन है, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इन 35 सालों में जाधव ने 1360 एकड़ (550 हेक्टेयर) एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला!
या आप भरोसा करेंगे कि एक अकेले आदमी के लगाये जंगल में 5 बंगाल टाइगर,100 से ज्यादा हिरन, जंगली सुअर, 150 जंगली हाथियों का झुंड, गेंडे और अनेक जंगली पशु घूम रहे हैं।
लुप्तप्राय जानवरों को मिला आसरा
उनके लगाए गए जंगल में लुप्त होने की कगार पर पहुंचे एक सींग वाले गैंडे और रॉयल बंगाल टाइगर को भी संरक्षण मिला है। और हाँ, सांप भी जिनकी सामूहिक मौत ने इस अद्भुत नायक को भावनाओं से भर दिया था।
जाधव पायेंग जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाने सुबह 9 बजे पांच किलोमीटर साइकिल से जाने के बाद, नदी पार करते और दूसरी तरफ वृक्षारोपण कर फिर सांझ ढले नदी पार कर साइकिल से 5 किलोमीटर की दूरी तय कर वापस घर पहुँचते।
वहां इनके लगाये पेड़ो में बांस, साल, सागौन, बरगद के अलावा जामुन, कटहल, सीताफल, अन्नानास, आम, शहतूत, आडू जैसे फलदार पेड़ भी हैं तो गुलमोहर व अन्य कई औषधीय पौधे भी शामिल हैं।
लेकिन सबसे आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सम्भव कर दिखाने वाले पुरुषार्थी साधक से महज़ पांच साल पहले तक देश अनजान था। अपनी धुन में अकेला यह अदम्य साहसी धरतीपुत्र असम के जंगलों में साइकिल पर पौधों से भरा एक थैला लटकाये अपने बनाए जंगल में गुमनामी में मेहनत कर रहा था।
बन चुकी अब तक तीन डाक्यूमेंट्री फिल्म
जाधव ‘मोलाई’ पायेंग सबसे पहले वर्ष 2010 में देश की नजर में आये जब वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर जीतू कलिता ने इन पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘The Molai Forest’ बनाई। यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी। दूसरी फिल्म ‘Foresting Life’ में आरती श्रीवास्तव ने जाधव की जिन्दगी के अनछुए पहलुओं और परेशानियों को दिखाया। इन पर बनी तीसरी फिल्म ‘Forest Man’ विदेशी फिल्म महोत्सव में काफी सराही गई।
एक अकेले व्यक्ति, जिसके पास पहचान-पत्र के रूप में राशन कार्ड तक नहीं है, ने वन विभाग की मदद के बिना, किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर इतने पिछड़े इलाके में हज़ारों एकड़ जमीन में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया। यह जानकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं।
उनके नाम पर हुई जंगलों की पहचान
आज जाधव ‘मोलाई’ पायेंग के नाम पर असम के इन जंगलों को ‘मिशिंग जंगल’ कहते हैं। इसके दो मतलब हैं, एक तो जाधव असम की मिशिंग जनजाति से हैं और दूसरा आज 1360 एकड़ (550 हेक्टेयर) में फैला यह जंगल पहले अस्तित्व में था ही नहीं। यह जंगल जोरहाट (असम) में कोकिलामुख के पास माजुली द्वीप पर स्थित है, और इसका नाम अब उनके नाम पर ‘मोलाई वन’ रख दिया गया है।
जीवन यापन करने के लिए इन्होंने गाय पाल रखी हैं। इनकी आजीविका के साधन इनके पालतू पशुओं को शेरों द्वारा खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम न हुई। इनका कहना था कि शेरों ने मेरा नुकसान किया क्योंकि वे अपनी भूख मिटाने के लिए खेती करना नहीं जानते। आप जंगल नष्ट करेंगे तो वे आपको नष्ट करेंगे।
मिला देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
वर्ष 2015 में राष्ट्रपति द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित होने वाले जाधव ‘मोलाई’ पायेंग आज भी जोरहाट में बांस के बने एक कमरे के छोटे-से कच्चे झोपड़े में अपनी पुरानी दिनचर्या में लीन हैं। साइकिल पर जंगली पगडंडियों में पौधों से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी-भरी प्रकृति की अनवरत साधनारत है यह निस्वार्थ पुजारी।
तमाम सरकारी प्रयासों, वृक्षारोपण के नाम पर लाखों रुपये के पौधे खरीद करके भी सरकारी पर्यावरण संरक्षण एवं वन-विभाग वह मुकाम हासिल नहीं कर पाया जो एक अकेले पुरुषार्थी साधक की इच्छाशक्ति ने कर दिखाया।
अब तो आप भी कहेंगे कि हां, अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है। ‘फ़ॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ को सौ-सौ सलाम!